अपठित गद्यांश

निर्देश (गद्यांश १-३०) दिए गए गद्यांशों को ध्यान से पढ़िए और उसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के यथोचित उत्तर दीजिए।
गद्यांश १
प्राचीन भारत में शिक्षा, ज्ञान प्राप्ति का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता था।
व्यक्ति के जीवन को सन्तुलित और श्रेष्ठ बनाने तथा एक नई दिशा प्रदान
करने में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योगदान था। सामाजिक बुराइयों को उसकी जड़ों
से निर्मूल करने और त्रुटिपूर्ण जीवन में सुधार करने के लिए शिक्षा की
नितान्त आवश्यकता थी। यह एक ऐसी व्यवस्था थी, जिसके द्वारा सम्पूर्ण
जीवन ही परिवर्तित किया जा सकता था। व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व का
विकास करने, वास्तविक ज्ञान को प्राप्त करने और अपनी समस्याओं को दूर
करने के लिए शिक्षा पर निर्भर होना पड़ता था। आधुनिक युग की भाँति
प्राचीन भारत में भी मनुष्य के चरित्र का उत्थान शिक्षा से ही सम्भव था।
सामाजिक उत्तरदायित्वों को निष्ठापूर्वक वहन करना प्रत्येक मानव का परम
उद्देश्य माना जाता है। इसके लिए भी शिक्षित होना अनिवार्य है।
जीवन की वास्तविकता को समझने में शिक्षा का उल्लेखनीय योगदान रहता
है। भारतीय मनीषियों ने इस ओर अपना ध्यान केन्द्रित करके शिक्षा को
समाज की आधारशिला के रूप में स्वीकार किया। विद्या का स्थान किसी भी
वस्तु से बहुत ऊँचा बताया गया। प्रखर बुद्धि एवं सही विवेक के लिए शिक्षा
की उपयोगिता को स्वीकार किया गया। यह माना गया कि शिक्षा ही मनुष्य
को व्यावहारिक कर्त्तव्यों का पाठ पढ़ाने और सफल नागरिक बनाने में सक्षम
है। इसके माध्यम से व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक और आत्मिक अर्थात्
सर्वांगीण विकास सम्भव है। शिक्षा ने ही प्राचीन संस्कृति को संरक्षण दिया
और इसके प्रसार में मदद की।
विद्या का आरम्भ ‘उपनयन संस्कार’ द्वारा होता था। उपनयन संस्कार के
महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए मनुस्मृति में उल्लेख मिलता है कि गर्भाधान
संस्कार द्वारा तो व्यक्ति का शरीर उत्पन्न होता है पर उपनयन संस्कार द्वारा
उसका आध्यात्मिक जन्म होता है। प्राचीन काल में बच्चों को शिक्षा प्राप्त
करने के लिए आचार्य के पास भेजा जाता था। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार,
जो ब्रह्मचर्य ग्रहण करता है। वह लम्बी अवधि की यज्ञावधि ग्रहण करता है।
छान्दोग्योपनिषद् में उल्लेख मिलता है कि आरुणि ने अपने पुत्र श्वेतकेतु को
ब्रह्मचारी रूप से वेदाध्ययन के लिए गुरु के पास जाने को प्रेरित किया था।
आचार्य के पास रहते हुए ब्रह्मचारी को तप और साधना का जीवन बिताते
हुए विद्याध्ययन में तल्लीन रहना पड़ता था।
इस अवस्था में बालक जो ज्ञानार्जन करता था उसका लाभ उसको जीवन भर
मिलता था। गुरु गृह में निवास करते हुए विद्यार्थी समाज के निकट सम्पर्क में
आता था।
गुरु के लिए समिधा, जल का लाना तथा गृह-कार्य करना उसका कर्त्तव्य
माना जाता था। गृहस्थ धर्म की शिक्षा के साथ-साथ वह श्रम और सेवा का
पाठ पढ़ता था। शिक्षा केवल सैद्धान्तिक और पुस्तकीय न होकर जीवन की
वास्तविकताओं के निकट होती थी।
१. प्रस्तुत गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक निम्नलिखित में से कौन-सा
हो सकता है?
(१) शिक्षा के लाभ (२) प्राचीन भारत में शिक्षा का विकास
(३) प्राचीन भारत में शिक्षा (४) भारतीय शिक्षा प्रणाली
२. प्राचीन काल में विद्यार्थियों के कर्त्तव्य निम्नलिखित में से कौन-से थे?
A. ब्रह्मचर्य का पालन करना ँ. गुरु के साथ रहना
ण्. गुरु की सेवा करना D. गृहस्थ जीवन व्यतीत करना
(१) A और ँ (२) A, ँ और ण्
(३) ण् और D (४) ँ, ण् और D
Aह्रास १ : AहढR्नन्न् व्छस्श्च १५५
Aäास्ु र्ळैं
३. प्राचीन काल में विद्या का आरम्भ जिस संस्कार से होता था, उसके बारे
में वर्णन किस ग्रन्थ में मिलता है?
(१) छान्दोग्योपनिषद् (२) कठोपनिषद्
(३) महाभारत (४) मनुस्मृति
४. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?
(१) छान्दोग्योपनिषद् के अनुसार आरुणि का पुत्र श्वेतकेतु था।
(२) ब्रह्मचर्य के लाभ का उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में है।
(३) भारतीय मनीषियों ने शिक्षा को समाज की आधारशिला के रूप में स्वीकार
किया।
(४) प्राचीन भारत में मनुष्य का उत्थान धर्म-कर्म में लीन रहकर ही सम्भव था।
५. प्राचीन भारत में शिक्षा होती थी
(१) केवल पुस्तकीय (२) सैद्धान्तिक
(३) जीवन की वास्तविकताओं से परिपूर्ण (४) इनमें से कोई नहीं
६. प्रस्तुत गद्यांश में निम्नलिखित में से किस ग्रन्थ का उल्लेख नहीं है?
(१) शतपथ ब्राह्मण (२) मनुस्मृति
(३) छान्दोग्योपनिषद् (४) कठोपनिषद्
७. ‘उपनयन’ शब्द में कौन-सा समास है?
(१) बहुव्र्रीहि (२) द्वन्द्व (३) अव्ययीभाव (४) कर्मधारय
८. ‘सैद्धान्तिक’ शब्द है
(१) संज्ञा (२) क्रिया (३) विशेषण (४) क्रिया-विशेषण
९. ‘आध्यात्मिक’ का सन्धि-विच्छेद है
(१) आध्य + आत्मिक (२) अधि + आत्मिक
(३) आध + यात्मिक (४) आधि + यात्मिक
गद्यांश २
मुझे मालूम नहीं था कि भारत में ‘तिलोनिया’ नाम की कोई जगह है जहाँ
हमारे देश के समसामयिक इतिहास का एक विस्मयकारी पन्ना लिखा जा रहा
है, उस वक्त तक तिलोनिया के बारे में मुझे इतनी ही जानकारी थी कि वहाँ
पर एक स्वावलम्बी विकास-केन्द्र चल रहा है, जिसे स्थानीय ग्रामवासी,
स्त्री-पुरुष मिल-जुलकर चला रहे हैं। मुझे वहाँ जाने का अवसर मिला। बस्ती
क्या थी, कुछ पुराने और कुछ नए छोटे-छोटे घरों का झुरमुट थी।
वहाँ एक सज्जन ने बताया कि एक सुशिक्षित तथा उसके दो साथियों
टाइपिस्ट तथा फोटोग्राफर ने म्िालकर वर्ष १९७२ में इस संस्थान की स्थापना
की। संस्थान का नाम था—सामाजिक कार्य तथा शोध-संस्थान (एस. डब्ल्यू.
आर. सी.)।
मेरे मन में संशय उठने लगे थे। आज के जमाने में वैज्ञानिक उपकरणों की
जानकारी के बल पर ही तरक्की की जा सकती है। उससे हटकर और
अवहेलना करते हुए भी नहीं की जा सकती है। एक पिछड़े हुए गाँव के लोग
अपनी समस्याएँ स्वयं सुलझा लेंगे, यह असम्भव था। वह सज्जन कहे जा रहे
थे ‘‘हमारे गाँव आज नहीं’’ बसे हैं। इन गाँवों में शताब्दियों से हमारे पूर्वज
रहते आ रहे हैं। पहले जमाने में भी हमारे लोग सूझ और पहलकदमी के बल
पर ही अपनी दिक्कतें सुलझाते रहे होंगे। जरूरत इस बात की है कि हम
शताब्दियों की इस परम्परागत जानकारी को नष्ट न होने दें। उसका उपयोग
करें।’’ फिर मुझे समझाते हुए बोले ‘‘हम बाहर की जानकारी से भी पूरा-पूरा
लाभ उठाते हैं, पर मूलत: स्वावलम्बी बनना चाहते हैं, स्वावलम्बी
आत्मनिर्भर।’’ मुझे बार-बार गाँधीजी के कथन याद आ रहे थे। मैंने गाँधीजी
का जिक्र किया तो वह बड़े उत्साह से बोले ‘‘आपने ठीक ही कहा। यह
संस्थान गाँधीजी की मान्यताओं के अनुरूप ही चलता है सादापन, कर्मठता,
अनुशासन, सहभागिता। यहाँ सभी निर्णय मिल-बैठकर किए जाते हैं।
आत्म-निर्भरता …….. ।’’ आत्मनिर्भरता से मतलब कि ग्रामवासियों की छिपी
क्षमताओं को काम में लाया जाए और गाँधीजी के अनुसार, ग्रामवासी अपनी
अधिकांश बुनियादी जरूरत की वस्तुओं का उत्पादन स्वयं करें …….. ।
१. सामाजिक कार्य तथा शोध-संस्थान की स्थापना का उद्देश्य था
(१) उन्हें स्वावलम्बी, आत्मनिर्भर बनाना
(२) उन्हें प्राचीन परम्पराओं से परिचित कराना
(३) ग्रामवासियों को देश-विदेश की जानकारी प्रदान करना
(४) उन्हें केवल अनुशासित करना
२. लेखक का मानना था
(१) ग्रामवासियों को अपनी समस्याएँ स्वयं सुलझाने की आदत है।
(२) आधुनिक समय में वैज्ञानिक उपकरण और जानकारी से हटकर या उसकी
अवहेलना करके तरक्की नहीं की जा सकती है।
(३) आधुनिक समय में वैज्ञानिक उपकरणों और जानकारी के बल पर ही तरक्की
नहीं की जा सकती है।
(४) ग्रामवासी अपनी समस्याएँ स्वयं सुलझा सकते हैं।
३. संस्थान के निर्णय और संचालन में आधारभूत भूमिका इनमें से
किसकी है?
(१) उस गाँव में रहने वाले सभी लोगों की
(२) गाँव-प्रधान की
(३) संस्थापक की
(४) केवल गरीब और दलित महिलाओं की
४. ‘आत्म’ उपसर्ग किस शब्द में नहीं है?
(१) आत्मीय (२) परमात्मा
(३) आत्म-निर्भर (४) आत्म-सम्मान
५. लेखक के अनुसार ‘तिलोनिया’ गाँव में हमारे देश के आजकल के
इतिहास का विस्मयकारी पन्ना लिखा जा रहा है, इसका कारण है
(१) वहाँ के लोग अनुदान पर आश्रित हैं।
(२) केन्द्र में इतिहास पर विस्मयकारी शोध किया जा रहा है।
(३) ‘तिलोनिया’ गाँव पिछड़े गाँव के रूप में जाना जाता है।
(४) वहाँ एक स्वावलम्बी विकास केन्द्र चल रहा है।
६. ‘शताब्दी’
………. समास का उदाहरण है।
(१) तत्पुरुष (२) बहुव्रीहि (३) अव्ययीभाव (४) द्विगु
७. गाँधीजी ………. को मान्यता नहीं देते हैं।
(१) अकर्मण्यता (२) सादापन (३) आत्मनिर्भरता (४) कर्मठता
८. निम्नलिखित में से संज्ञा का उदाहरण नहीं है
(१) अनुशासन (२) अनुशासित (३) आत्मनिर्भरता (४) स्वावलम्बन
९. ‘उपयोगी’ शब्द का विलोम है
(१) अनपयोगी (२) उपयोगिता (३) अउपयोगी (४) अनुपयोगी
गद्यांश ३
गुलजार जी क्या लिखते समय पाठक आपके िंचतन में होते हैं।
देखिए जब मैं लिखता हूँ मेरे जेहन में मैं होता हूँ। मैं तय करता हूँ मुझे क्या
करना है? पाठक को सामने रखकर लिखने का कोई मतलब नहीं होता है।
दूसरी महत्त्वपूर्ण बात मैं महसूस करता हूँ वह है कम्युनिकेशन …………
अपनी बात को पाठक तक पहुँचाना ………… आर्ट ऑफ कम्युनिकेशन
………… हाँ मैं अपने लेखन को इस कसौटी पर रखता हूँ। मीडिया से जुड़े
होने के कारण कहने के तरीके को लेकर मैं सोचता अवश्य हूँ। विषय मेरे
होते हैं, मेरी बात सही है या नहीं आप अपनी ग्रोथ के साथ एक अहाता
बनाते चलते हैं। हर फाइन आर्ट लोगों तक पहुँचनी ही चाहिए। संगीत हो,
कला हो या लेखन हो वो अपने लक्ष्य तक पहुँचनी चाहिए, कहने का ऐसा
तरीका तो होना चाहिए।
१५६ ण्ऊEऊ ु³ुदु ‘स्ड्डैं्नa ढर्प्Ýेंr ्रस्fस् E्श्च् ढारसस्ड्ड़
१. जब गुलजार लिखते हैं, तो विषय किसके होते हैं?
(१) पाठकों के (२) फिल्म बनाने वालों के
(३) स्वयं उनके (४) मीडिया के
२. गुलजार के अनुसार लिखने वाले के जेहन में स्वयं लेखक होता है।
इसका आशय यह है कि
(१) लेखक स्वयं को सर्वोपरि मानता है
(२) लेखक पाठक की उपेक्षा करता है
(३) लेखक को अपनी ग्रोथ चाहिए
(४) लेखक की संवेदनाएँ आत्मानुभूति केन्द्र में होती हैं
३. एक लेखक के लिए दूसरी महत्त्वपूर्ण बात क्या है?
(१) सम्प्रेषण (२) मीडिया (३) कला (४) लेखन
४. किसी भी कला का लक्ष्य क्या है?
(१) वह सुन्दर तरीके से कही गई है (२) लोगों तक वह बात पहुँचे
(३) मीडिया द्वारा सराहा जाए (४) सरल भाषा का प्रयोग करना
५. गुलजार अपने लेखन को किस कसौटी पर कसते हैं?
(१) वह बात पाठक तक पहुँच रही है या नहीं
(२) वह व्यंग्य भरे अन्दाज में कही गई है या नहीं
(३) वह सब लोगों द्वारा सराही गई है या नहीं
(४) मेरी ग्रोथ हो रही है या नहीं
६. गुलजार लिखने से पहले क्या तय करते हैं?
(१) किसके लिए कहना है? (२) क्या कहना है?
(३) वैâसे कहना है? (४) क्योें कहना है?
७. ़जेहन का अर्थ है
(१) दिल (२) दिमाग
(३) ख्याल (४) सपना
८. ‘संगीत’ से विशेषण शब्द बनेगा
(१) संगीता (२) संगीतज्ञ
(३) संगीतवाला (४) संगीतवान
९. ‘कहने का ऐसा तरीका तो होना ही चाहिए।’ वाक्य में निपात शब्द हैं
(१)ऐसा, तो (२) तो, का
(३)ही, ऐसा (४) तो, ही
गद्यांश ४
कर्मों से बहुत कुछ बदला जा सकता है। दुनिया कर्म प्रधान है, कर्म से
किस्मत को भी बदला जा सकता है। जरूरत है इसकी शक्ति को पहचानने
और इसे पूर्ण निष्ठा और लगन से करने की। सत्य से प्रेरित कार्य व्यक्ति को
महान् बनाते हैं। ऐसा व्यक्ति सरल, सबल, सशक्त, प्रेमी, दानी, ज्ञानी और
कल्याणकारी होता है। कृत्य के बारे में कहावत है कि जैसा बोओगे, वैसा
काटोगे। कहते भी हैं कि बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहाँ से होए। गीता में
भी कहा गया है कि इंसान को केवल कर्म का ही अधिकार है, उसके फल
के बारे में िंचता करने का नहीं। गीता के अनुसार, अपनी किस्मत को बदलने
के लिए कर्मठता ही पहला और सबसे बड़ा रास्ता है। किसी दूसरे के साथ
पूर्ण रूप से जीने से बेहतर है कि हम अपने कर्म के अनुसार अपूर्ण जिए।
दूसरों के जीवन की उन्नति और सफलता से ईर्ष्या न कर अपने जीवन से
नकारात्मक विचारों को दूर कर अपनी आत्मा को उज्ज्वल बनाना चाहिए।
१. गद्यांश में दुनिया के किस रूप का चित्रण हुआ है?
(१) धर्म प्रधान के (२) कर्म प्रधान के
(३) जाति प्रधान के (४)राजनीति प्रधान के
२. व्यक्ति को महान् बनाने में किसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है?
(१) उसके भाग्य की (२) उसके कार्यों की
(३) उसके नाम की (४) उसके बल की
३. गद्यांश के अनुसार, अपने अंतर्मन को किस प्रकार प्रकाशित किया जा
सकता है?
(१) अपने कर्मों की िंचता करके
(२) कर्म की शक्ति को पहचानकर
(३) सभी के प्रति सकारात्मक भाव रखकर
(४) सभी के साथ प्रतिस्पर्द्धा करके
४. किसी दूसरे के जीवन के साथ जीने से तात्पर्य है
(१) सुख-दु:ख में साथ रहना (२) किसी को अकेला न छोड़ना
(३) दूसरे पर निर्भर होकर जीना (४) पूर्ण रूप से बेहतर जीवन जीना
५. गद्यांश के अनुसार, भाग्य-परिवर्तन के लिए अनिवार्य है
(१) कर्म के प्रति निष्ठा (२) सफलता के बारे में सोचना
(३) भाग्य के अनुसार जीना (४) धार्मिक ग्रन्थ का पाठ करना
६. ‘कर्मठता’ शब्द है
(१) विशेषण (२) विशेष्य (३) संज्ञा (४) क्रिया
७. ‘‘कर्म से किस्मत को भी बदला जा सकता है’’ में रेखांकित शब्द के
स्थान पर कौन-सा विकल्प उपयुक्त होगा?
(१) भाग्यवान (२) भाग्य
(३) भाग्यहीन (४) भाग्यशाली
८. यहाँ ‘‘जैसा बोओगे, वैसा काटोगे’’ से क्या तात्पर्य है?
(१) जैसे बीज बोते हैं, वैसी ही फसल होती है।
(२) जैसे बीज होंगे, वैसे ही फल होंगे।
(३) जैसे कर्म होंगे, वैसा ही परिणाम मिलेगा।
(४) जैसे कर्म होंगे, वैसा परिणाम नहीं मिलेगा।
९. ‘उन्नति’ का विलोम शब्द ………. है।
(१) अवनति (२) पतन (३) अधोगति (४) संगति
गद्यांश ५
स्थूल एवं बाह्य पदार्थ सूक्ष्म एवं मानसिक पदार्थों एवं भावों की अपेक्षा
अधिक महत्त्व के विषय नहीं हैं, जो व्यक्ति रचनात्मक कार्य करने में समर्थ
है, उसे भौतिक स्थूल लाभ अथवा प्रलोभन न तो लुभाते हैं और न ही
प्रोत्साहित करते हैं।
विश्व में विचारक दस में से एक ही व्यक्ति होता है। उसमें भौतिक
महत्त्वाकांक्षाएँ अत्यल्प होती हैं। ‘पूँजी’ का रचयिता कार्ल मार्क्स जीवनभर
निर्धनता से जूझता रहा। राज्याधिकारियों ने सुकरात को मरवा डाला, पर वह
जीवन के अन्तिम क्षणों में भी शान्त था, क्योंकि वह अपने जीवन के लक्ष्य
का भली-भाँति निर्वाह कर चुका था। यदि उसे पुरस्कृत किया जाता, प्रतिष्ठा
के अम्बारों से लाद दिया जाता, परन्तु अपना काम न करने दिया जाता, तो
निश्चय ही वह अनुभव करता कि उसे कठोर रूप में दण्डित किया गया है।
ऐसे अनेक अवसर आते हैं, जब हमें बाहरी सुख-सुविधाएँ आकर्षित करती
हैं, वे अच्छे जीवन के लिए अनिवार्य लगने लगती हैं, किन्तु महत्त्वपूर्ण यह है
कि क्या हमने जीवन का उद्देश्य प्राप्त कर लिया? यदि इसका उत्तर हाँ है,
तो बाह्य वस्तुओं का अभाव नहीं खलेगा और यदि नहीं है, तो हमें अपने को
भटकने से बचाना होगा और लक्ष्य की ओर बढ़ना होगा। डण्ऊEऊ एाज् २०१५़
१. मनुष्य को बाहरी सुख क्यों लुभाते हैं?
(१) सम्पन्नता के लिए (२) भरे-पूरे जीवन के लिए
(३) अच्छे जीवन के लिए (४) आराम के लिए
२. ‘‘जो व्यक्ति रचनात्मक कार्य करने में समर्थ है ……….. ।’’ वाक्य में
रेखांकित शब्द के स्थान पर कौन-सा शब्द प्रयुक्त नहीं किया जा
सकता है?
(१) क्षमतावान (२) सक्षम
(३) शक्तिशाली (४) सामर्थ्यवान
Aह्रास १ : AहढR्नन्न् व्छस्श्च १५७
ण्ऊEऊ
३. ‘प्रतिष्ठा के अम्बारों से लाद दिया जाता।’ रेखांकित का तात्पर्य है
(१) ढेर से (२) आभार से
(३) कृतज्ञता से (४) भार से
४. ‘भली-भाँति निर्वाह कर चुका था।’
उपरोक्त वाक्यांश में क्रिया-विशेषण है
(१) भली-भाँति (२) निर्वाह
(३) कर चुका (४) भली
५. ‘महत्त्वाकांक्षा’ किन शब्दों से मिलकर बना है?
(१) महत्त्व + आकांक्षा (२) महत्व + आकांक्षा
(३) महत्त्वा + कांक्षा (४) महत् + आकांक्षा
६. भौतिक लाभ किन्हें नहीं लुभाते?
(१) सामर्थ्यवान लोगों को (२) जीवन का लक्ष्य पूरा करने वालों को
(३)रचनात्मक कार्य करने वालों को (४) धन-सम्पन्न लोगों को
७. ‘पूँजी’ का रचयिता कार्ल मार्क्स कथन से संकेत मिलता है कि ‘पूँजी’
का अर्थ है
(१)एक विचार (२)एक ग्रन्थ
(३) विरासत (४) धन-सम्पत्ति
८. विचारकों की एक विशेषता यह है कि उनमें
(१) भौतिक महत्त्वाकांक्षाएँ कम होती हैं।
(२) पद-प्रतिष्ठा प्राप्त करने की इच्छा होती है।
(३)रचनात्मक कार्य करने की क्षमता होती है।
(४) महत्त्वाकांक्षाएँ नहीं होतीं।
९. सुकरात को अपना काम न करने देने की स्थिति कठोर दण्ड जैसी
प्रतीत होती, क्योंकि
(१) वह जीवन के कार्य समाप्त कर चुका था।
(२) वह स्थूल प्रलोभनों की अपेक्षा नहीं करता था।
(३) उसे जीवन का उद्देश्य प्राप्त करने से रोक दिया गया होता।
(४) वह अन्तिम क्षणों में भी शान्त था।
गद्यांश ६
‘गोदान’ प्रेमचन्द जी की उन अमर कृतियों में से एक है, जिसमें ग्रामीण
भारत की आत्मा का करुण चित्र साकार हो उठा है। इसी कारण कई मनीषी
आलोचक इसे ग्रामीण भारतीय परिवेशगत समस्याओं का महाकाव्य मानत े ह ैं
ता े कर्इ ा fवद्वान ् इस े ग्रामा rण-जा rवन आ ैर व ृâा fष-स ंस्व ृâा fत का शा ेक गा rत
स्वा rकारत े ह ैं। व âुछ ा fवद्वान ् ता े ए ेस े भा r ह ैं ा fक जा े इस उपन्यास का े ग्रामा rण
भारत का r आध ुा fनक ‘गा rता’ तक स्वा rकार करत े ह ैं। जा े व âुछ भा r हा े,
‘गा ेदान’ वास्तव म ें म ु ंशा r प्र ेमचन्द का एक ए ेसा उपन्यास ह ै, ा fजसम ें
आचार-ा fवचार, स ंस्कार आ ैर प्राव ृâा fतक पा fरव ेश, जा े गहन करुणा स े य ुव äत
ह ै, प्रा fता fबा fम्बत हा े उठा ह ै।
डॉ. गोपाल राय का कहना है कि ‘गोदान’ ग्राम-जीवन और ग्राम संस्कृति को
उसकी सम्पूर्णता में प्रस्तुत करने वाला अद्वितीय उपन्यास है न केवल हिन्दी
के वरन् किसी भी भारतीय भाषा के किसी भी उपन्यास में ग्रामीण समाज का
ऐसा व्यापक यथार्थ और सहानुभूतिपूर्ण चित्रण नहीं हुआ है। ग्रामीण जीवन
और संस्कृति के अंकन की दृष्टि से इस उपन्यास का वही महत्त्व है, जो
आधुनिक युग में युग जीवन की अभिव्यक्ति की दृष्टि से महाकाव्यों का हुआ
करता था। इस प्रकार डॉ. राय गोदान को आधुनिक युग का महाकाव्य ही
नहीं स्वीकारते वरन् सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य भी स्वीकारते हैं। उनके इस कथन का
यही आशय है कि प्रेमचन्द जी ने ग्राम-जीवन से सम्बद्ध सभी पक्षों का न
केवल अत्यन्त विशदता से चित्रण किया है, वरन् उनकी गहराइयों में जाकर
उनके सच्चे चित्र प्रस्तुत कर दिए हैं। प्रेमचन्द जी ने जिस ग्राम-जीवन का
चित्र गोदान में प्रस्तुत किया है, उसका सम्बन्ध आज ग्राम परिवेश से न
होकर तत्कालीन ग्राम-जीवन से है। ग्रामीण जीवन को वास्तविक आधार
प्रदान करने के लिए प्रेमचन्द जी ने चित्र के अनुरूप ही कुछ ऐसे खाँचे
अथवा चित्रफलक निर्मित किए हैं, जो चित्र को यथार्थ बनाने में सहयोगी
सिद्ध हुए हैं। ग्रामीण किसानों के घर-द्वार, खेत-खलिहान और प्राकृतिक
दृश्यों का ऐसा वास्तविक चित्रण अन्यत्र दुर्लभ है।
१. ‘गोदान’ है
(१) काव्यग्रन्थ (२) उपन्यास (३) कथाकृति (४) महाकाव्य
२. ‘गोदान’ को किसने महाकाव्य माना है?
(१) डॉ. रामविलास शर्मा ने (२) डॉ. गोपाल राय ने
(३) १ और २ दोनों (४) इनमें से कोई नहीं
३. ‘गोदान’ के सन्दर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?
(१) इसमें ग्रामीण परिवेश का चित्रण है।
(२) इसमें कृषकों की समस्याओं का चित्रण है।
(३) इसमें प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण नहीं है।
(४) इसमें ग्राम्य जीवन के सभी पहलुओं का चित्रण है।
४. ‘प्रतिबिम्बित’ शब्द है
(१) विशेषण (२) संज्ञा (३) क्रिया (४) प्रविशेषण
५. ‘गोदान’ को निम्नलिखित में से क्या नहीं कहा गया है?
(१) उपन्यास (२) गीता (३) महाकाव्य (४) काव्य
६. ‘विशदता’ से तात्पर्य है
(१) विस्तृत रूप से (२) विशालता सहित
(३) परिपूर्णता (४)इनमें से कोई नहीं
७. ‘सहानुभूति’ का सन्धि-विच्छेद है
(१) सह + अनुभूति (२) सहान + भूति
(३) सहा + अनुभूति (४) सहा + नुभूति
८. ‘महाकाव्य’ में कौन-सा समास है?
(१) अव्ययीभाव (२) तत्पुरुष (३) द्वन्द्व (४) कर्मधारय
९. गोदान को ग्रामीण जीवन का महाकाव्य कहने का क्या तात्पर्य है?
(१) गोदान में ग्रामीण जीवन के सभी पहलुओं का विस्तृत चित्रण हुआ है
(२) गोदान ग्रामीण जीवन का काव्य-ग्रन्थ है
(३) गोदान ग्रामीण जीवन के सभी काव्य-ग्रन्थों में श्रेष्ठ है
(४) उपरोक्त में से कोई नहीं
गद्यांश ७
माँ : रमेश, मीना क्यों रो रही है?
रमेश : मैंने चाँटा मारा था। मुझे पढ़ने नहीं दे रही थी।
माँ : लेकिन तुम इस समय क्यों पढ़ रहे हो? यह भी कोई पढ़ने का समय
है। क्या आजकल पढ़ाई चौबीसों घण्टे की हो गई है? दिमाग है या मशीन
और क्या पढ़ने के लिए बहन को पीटना जरूरी है?
रमेश : माँ, पढ़ूँगा नहीं तो कक्षा में अव्वल वैâसे आऊँगा? मुझे तो फर्स्ट
आना है। तुम भी तो यही कहती थी।
माँ : हाँ, कहती थी, पर तुम! हर वक्त खेल-खेल-खेल। फर्स्ट आना था तो
शुरू से पढ़ा होता अब जब परीक्षाएँ सर पर आ गईं तो रटने बैठे हो। तुम
क्या समझते हो कि ऐसे रटने से अव्वल आ जाओगे?
अरे! पढ़ना थोड़ी देर का ही काफी होता है, अगर नियम से मन लगाकर
पढ़ा जाए।
रमेश अब रहने दो माँ! मैं आज खेलने भी नहीं जाऊँगा। कोई आए तो मना
कर देना। अब मुझे पढ़ने दो-‘‘अकबर का जन्म ………….. अकबर का
जन्म ………….. अमरकोट में हुआ था ………….. अमरकोट में …………..
१५८ ु³ुदु ‘स्ड्डैं्नa ढर्प्Ýेंr ्रस्fस् E्श्च् ढारसस्ड्ड़
माँ ………….. अकबर का जन्म जहाँ भी हुआ हो, तुम्हारा जन्म यहीं हुआ है
और मैं तुम्हें रट्टू तोता नहीं बनने दूँगी। पढ़ने के समय पढ़ना और खेलने के
समय खेलना अच्छा होता है।
१. मीना और रमेश हैं, परस्पर
(१) मित्र (२) भाई-बहन
(३) सहपाठी (४) रिश्तेदार
२. रमेश ने मीना की पिटाई की, क्योंकि वह
(१) कक्षा में अव्वल आ सकती थी (२) अक्सर शैतानियाँ करती थी
(३) पढ़ नहीं रही थी (४) पढ़ने नहीं दे रही थी
३. कक्षा में प्रथम आने के लिए आवश्यक है
(१) शुरू से नियमित पढ़ाई करना (२) खेलकूद छोड़ देना
(३)रात-दिन पढ़ाई करना (४) पढ़ाई के दिनों परिश्रम करना
४. ‘‘यह भी कोई पढ़ने का समय है?’’ प्रश्न का आशय है
(१) पढ़ने का कोई समय नहीं होता। (२) वह समय पढ़ने का नहीं है।
(३) यह भी पढ़ने का एक समय है। (४) यह पढ़ने का ही कोई समय है।
५. जो शब्द शेष से भिन्न हो, उसे छाँटिए।
(१) परीक्षा (२) प्रथम (३) अव्वल (४) फर्स्ट
६. कौन-सा विशेषण रमेश के लिए उपयुक्त है?
(१)रट्टू तोता (२) लापरवाह
(३) पढ़ाकू (४) परिश्रमी
७. ‘पर तुम’ का भाव है
(१) पर तुमने पढ़ना छोड़ दिया (२) पर तुम पढ़ते ही रहे
(३) पर तुमने ध्यान नहीं दिया (४) पर तुमने रटना ही सीखा
८. अकबर का जन्म कहाँ हुआ था?
(१) आगरा (२) अमरकोट
(३) दिल्ली (४) फतेहपुरी
९. ‘बहुत निकट आना’ के लिए मुहावरा है
(१) अव्वल आना (२) तोता रटंत
(३) पास आना (४) सर पर आना
गद्यांश ८
भारतीय साहित्य भारतीय संस्कृति के आधार पर विकसित हुआ है। इस
संस्कृति में भारतीयता के बीज समाहित हैं। जब कभी-भी भारतीय अपनी
पहचान का व्याख्यान करने को उत्सुक होता है, उसे अपनी जड़ से जोड़कर
देखना चाहता है। यह केवल भारत व भारतीय के लिए ही आवश्यक नहीं है,
बल्कि किसी भी देश के प्रान्त से जुड़ा हुआ मसला है। अपने को अन्य से
जोड़कर तर्क दिए जाते हैं। उसे अपनी जड़ से जोड़कर ही देखते हैं। वर्तमान
में भारतीय संस्कृति व सभ्यता के बीच उपजी हुई विषय-वस्तु को ही आधार
बनाकर अपनी पहचान को जोड़ते हैं, जिसके कारण दक्षिण भारतीय या उत्तर
भारतीय सभी भारतीय संस्कृति की टूटी कड़ियों से जोड़कर अपने आपको
अलग स्थापित करते हैं। इसका परिणाम भारतीय स्तर पर विखण्डन के रूप
में भी देखने को मिलता है। इस परिणाम के तहत भाषा व संस्कृति के आधार
पर विभिन्न प्रान्तों का निर्माण भी सम्भव हो गया। यदि यही विखण्डित समाज
भारतीय संस्कृति के मूल से जोड़कर अपने को देखता होता तो भाषायी एकता
भी बनती और क्षेत्रवाद का काला धुआँ, जो भारतीय आकाश पर मण्डरा रहा
है, उसकी उत्पत्ति ही सम्भव नहीं हो पाती। इस सन्दर्भ में भारतीयता व उसके
समीप उपजे साहित्य को सीमाओं में जाँचना जरूरी है। इसकी प्रकृति की
खोज और इसके परिणामों की व्याख्या भारतीय साहित्य व भारतीयता के
सन्दर्भ में खोजनी होंगी।
भारतीयता के सन्दर्भ में साहित्य और समाज के सम्बन्धों को समझना
आवश्यक है। साहित्य का जन्म समाज में ही सम्भव हो सकता है, इसलिए
मानवीय संवेदनाओं को हम उनकी अभिव्यक्ति के माध्यम से समझ सकते हैं।
यह अभिव्यक्ति समाज और काल में अलग-अलग रूपों में प्रकट हुई है।
यदि हम पाषाण काल के खण्डों और उसके वन में ही रहने वालों की स्थिति
को देखें, तो उनके विचार शब्दों में नहीं, बल्कि रेखाचित्रों में देखने को
मिलते हैं। कई गुफाओं में इन समाजों की अभिव्यक्ति को पत्थर पर खुदे
निशानों में देख सकते हैं। ये निशान उनके जन-जीवन में घटने वाली घटनाओं
को प्रदर्शित करते नजर आते हैं। उनमें शिकार करते आदिमानव को देख
सकते हैं, जो जीवन-यापन के साधन हैं। उन चित्रों में हल चलाने वाले
किसानों की अभिव्यक्ति नहीं मिलती। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि
वह समाज वनाचरण व्यवस्था में ही सिमटी या उनका जीवन-यापन शिकार
पर ही केन्द्रित या सभ्यता के विकास की गाथा उसके जीवन में नहीं गाई जा
रही थी, लेकिन समय की पहली धारा में जो प्रभाव देखे जाते हैं, वह सभ्यता
के रूप में गिरे पड़े टूटे-फूटे प्राप्त ऐतिहासिक खोज में देख सकते हैं।
१. भारतीयता को समझने के लिए निम्नलिखित में से किसे समझना
आवश्यक है?
(१) भारतीय साहित्य को
(२) भारतीय साहित्य और समाज के सम्बन्धों को
(३) भारतीय समाज को
(४) उपरोक्त में से कोई नहीं
२. भारतीय साहित्य किसके आधार पर विकसित हुआ है?
(१) भारतीय समाज के (२) भारतीय राजनीति के
(३) भारतीय संस्कृति के (४) भारतीय इतिहास के
३. ‘संवेदना’ शब्द का सन्धि-विच्छेद है
(१) सम् + वेदना (२) स + वेदना
(३) सा + वेदना (४) सम् + वेदन
४. यदि उत्तर भारतीय एवं दक्षिण भारतीय संस्कृति को अलग कर नहीं
देखा जाता, तो इसका क्या लाभ होता?
(१) न क्षेत्रवाद पनपता और न ही भाषावाद
(२) भारतीय साहित्य का विकास नहीं होता
(३) दक्षिण भारतीय साहित्य का विकास होता
(४) उपरोक्त सभी
५. साहित्य का जन्म किससे सम्भव है?
(१) विज्ञान से (२) व्यक्ति से
(३) समाज से (४) इनमें से कोई नहीं
६. भारतीय अपनी पहचान के व्याख्यान के लिए क्या करता है?
(१) अपनी संस्कृति की अवहेलना करता है
(२) अपने समाज की अवहेलना करता है
(३) साहित्य को स्वयं से जोड़कर देखता है
(४) उपरोक्त सभी
७. ‘भारतीयता’ शब्द के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन
सत्य है?
(१) यह संज्ञा से बनी संज्ञा है (२) यह विशेषण से बनी संज्ञा है
(३) यह क्रिया से बनी संज्ञा है (४) यह संज्ञा से बना विशेषण है
८. ‘रेखाचित्र’ में कौन-सा समास है?
(१) अव्ययीभाव (२) तत्पुरुष
(३) द्वन्द्व (४) कर्मधारय
९. ‘समीप’ का तात्पर्य है
(१) समान (२) दूर
(३) निकट (४) अचानक
Aह्रास १ : AहढR्नन्न् व्छस्श्च १५९
गद्यांश ९
देश के विकास और समृद्धि के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण ची़ज है—शिक्षा। आज
हमारा देश परिवर्तन के जबरदस्त दौर से गु़जर रहा है। देश में लाखों लोग
ऐसे हैं, जिन्होंने साक्षरता तो पा ली है लेकिन उभर रहे आधुनिक विश्व और
भारत में नए ़जमाने के अनुरूप रो़जगार की योग्यताएँ अभी उन्हें पानी हैं। हमें
कमजोर तबके के लोगों पर अधिक ध्यान देना चाहिए, क्योंकि वे ही ऐसे
लोग हैं जो शिक्षा की पायदानें औरों की भाँति नहीं चढ़ पाते हैं। आज जरूरत
इस बात की है कि लोगों को यह स्वतन्त्रता हो कि वे अपने बच्चों को किसी
भी ऩजदीकी स्कूल में ले जाकर भर्ती करा सकें और इस विश्वास के साथ
घर लौट सकें कि उनके बच्चों को उस स्कूल में बेहतर और मूल्य आधारित
शिक्षा मिलेगी। भिन्न-भिन्न बालकों की भिन्न-भिन्न जरूरतें होती हैं। स्कूलों
में सभी को उनकी जरूरत के अनुरूप ध्यान दिया जाए ऐसी व्यवस्था स्कूलों
में होनी चाहिए। हमें शिक्षा के प्रति अपने ऐतिहासिक दृष्टिकोण में भी
बदलाव लाना होगा। हमें एक ऐसी शिक्षा पद्धति चाहिए, जो प्रभावी होने के
साथ-साथ स्वयं को नवीनीकृत करने की क्षमता रखती हो।
१. ‘आधुनिक विश्व’ में ‘आधुनिक’ शब्द है
(१) संज्ञा (२) विशेषण
(३) क्रिया विशेषण (४) प्रविशेषण
२. देश के विकास और समृद्धि के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है
(१)रीति-रिवाजों का पालन (२) शिक्षित समाज
(३) देश की सीमाएँ (४) देश की जनसंख्या
३. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
(१) सभी बच्चों की आवश्यकताएँ एक जैसी होती हैं।
(२) सभी बच्चों की आवश्यकताएँ सर्वथा भिन्न होती हैं।
(३) भिन्न बच्चों की आवश्यकताएँ भिन्न होती हैं।
(४) भिन्न बच्चों की आवश्यकताएँ एक जैसी होती हैं।
४. कम़जोर तबके के लोगों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि
वे
(१) शिक्षा में पिछड़ जाते हैं (२) शिक्षा में सबसे आगे हैं
(३) उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं (४) शिक्षा के अवसर अधिक प्राप्त करते हैं
५. ‘भिन्न-भिन्न’ शब्द हैं
(१) निरर्थक शब्द युग्म (२) पुनरुक्त शब्द
(३) विलोम शब्द (४) भिन्नार्थक शब्द
६. लोगों को किस बात की स्वतन्त्रता होनी चाहिए?
(१) अपने बच्चों को सरकारी विद्यालय में पढ़ाने की
(२) अपने बच्चों को पड़ोस के विद्यालय में पढ़ाने की
(३) अपने बच्चों को दूर के प्राइवेट विद्यालय में पढ़ाने की
(४) अपने बच्चों को नवोदय विद्यालय में पढ़ाने की
७. ‘आधारित’ शब्द में प्रत्यय है
(१) त (२)इत (३) रित (४)ईत
८. ‘साक्षरता’ का उपयुक्त विलोम शब्द है
(१) निरक्षरता (२) अक्षरश: (३) अशिक्षा (४) अनपढ़
९. हमें वैâसी शिक्षा पद्धति चाहिए?
(१) लचीली (२) परम्परागत (३) पाश्चात्य (४) रूढ़
गद्यांश १०
साहित्य को समाज का प्रतिबिम्ब माना गया है अर्थात् समाज का पूर्णरूप
साहित्य में प्रतिबिम्बित होता रहता है। अनादिकाल से साहित्य अपने इसी धर्म
का पूर्ण निर्वाह करता चला आ रहा है। वह समाज के विभिन्न रूपों का
चित्रण कर एक ओर तो हमारे सामने समाज का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करता है
और दूसरी ओर अपनी प्रखर मेधा और स्वस्थ कल्पना द्वारा समाज के
विभिन्न पहलुओं का विवेचन करता हुआ यह भी बताता है कि मानव समाज
की सुख-समृद्धि, सुरक्षा और विकास के लिए कौन-सा मार्ग उपादेय है? एक
आलोचक के शब्दों में- ‘‘कवि वास्तव में समाज की व्यवस्था, वातावरण,
धर्म-कर्म, रीति-नीति तथा सामाजिक शिष्टाचार या लोक व्यवहार से ही
अपने काव्य के उपकरण चुनता है और उनका प्रतिपादन अपने आदर्शों के
अनुरूप करता है।’’
साहित्यकार उसी समाज का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें वह जन्म लेता है।
वह अपनी समस्याओं का सुलझाव, अपने आदर्श की स्थापना अपने समाज
के आदर्शों के अनुरूप ही करता है। जिस सामाजिक वातावरण में उसका
जन्म होता है, उसी में उसका शारीरिक, बौद्धिक और मानसिक विकास भी
होता है। अत: यह कहना सर्वथा असम्भव और अविवेकपूर्ण है कि
साहित्यकार समाज से पूर्णत: निरपेक्ष या तटस्थ रह कर साहित्य सृजन करता
है। वाल्मीकि, तुलसी, सूर, भारतेन्दु, प्रेमचन्द आदि का साहित्य इस बात का
सर्वाधिक सशक्त प्रमाण है कि साहित्यकार समाज से घनिष्ठ रूप से सम्बन्ध
रखता हुआ ही साहित्य सृजन करता है। समाज की अवहेलना करने वाला
साहित्य क्षणजीवी होता है।
मानव का कला या साहित्य सृजन के प्रति उन्मुख होना उसके इन्द्रिय बोध
का परिणाम रहा है। रूप, रस, गन्ध, स्पर्श आदि के इन्द्रियबोध मानव और
पशु दोनों में ही विद्यमान हैं, परन्तु मानव में पशु की अपेक्षा अधिक मात्रा में।
मानव में एक विशिष्ट गुण, विवेक है। विवेक के द्वारा उसने सामाजिक जीवन
का विकास और अपने इन्द्रियबोध का परिष्कार किया है। समाज व्यवस्था
बदलने के साथ मनुष्य का इन्द्रियबोध, विचार और भावों की अपेक्षा स्थायी
रहता है। भाव और विचार दोनों ही साहित्य के मूलाधार हैं और इनका
उद्गम और परिष्कार सामाजिक परिवेश में ही सम्भव होता है, समाज से
कटकर निरपेक्ष रहने पर नहीं।
१. अनादिकाल से साहित्य अपने किस धर्म का निर्वहन करता आ रहा है?
(१) अपने प्रभुत्व बनाए रखने का
(२) समाज के पूर्णरूप को प्रतिबिम्बित करने का
(३) यूएनडीपी से सहयोग लेना
(४) निर्धन लोगों की सहायता करना
२. साहित्य हमें क्या बताता है?
(१) सामाजिक वर्चस्व करने के लिए क्या करना चाहिए
(२) समाज-व्यवस्था को बदलते रहना चाहिए
(३) मानव समाज की सुख-समृद्धि, सुरक्षा और विकास के लिए कौन-सा मार्ग
उपादेय है
(४) उपरोक्त सभी
३. मानव के इन्द्रियबोध का परिणाम है
(१) कला सृजन (२) साहित्य सृजन
(३) १ और २ दोनों (४)इनमें से कोई नहीं
४. साहित्यकार किस समाज का प्रतिनिधित्व करता है?
(१) जिस समाज में वह जन्म लेता है
(२) जिस समाज के बारे में वह लिखना चाहता है
(३) जिस समाज की वह अवहेलना करता है
(४) उपरोक्त सभी
५. कवि अपने काव्य के उपकरण कहाँ से चुनता है?
(१) धर्म-कर्म (२)रीति-नीति
(३) लोक व्यवहार (४) ये सभी
६. कवि का आदर्श होता है
(१) उसके समाज के आदर्श के अनुरूप (२) उसके स्वयं के आदर्श के अनुरूप
(३) उसके परिवार के आदर्श के अनुरूप (४) ये सभी
१६० ण्ऊEऊ ु³ुदु ‘स्ड्डैं्नa ढर्प्Ýेंr ्रस्fस् E्श्च् ढारसस्ड्ड़
७. ‘उपादेय’ का तात्पर्य होता है
(१) ग्रहण करने योग्य (२) श्रेष्ठ
(३) उत्तम (४) ये सभी
८. ‘इन्द्रियबोध’ में कौन-सा समास है?
(१) अव्ययीभाव (२) तत्पुरुष (३) द्वन्द्व (४) कर्मधारय
९. निम्नलिखित में से कौन-सा अव्यय है?
(१) प्रति (२) रूप (३) समाज (४) मानव
गद्यांश ११
मानव के मर्मस्थल में परोपकार और त्याग जैसे सद्गुणों की जागृति तभी हो
पाती है, जब वह अपने तुच्छ भौतिक जीवन को नगण्य समझकर
उत्साह-उमंग के साथ दूसरों की सेवा-शुश्रूषा तथा सत्कार करता है। यह
कठोर सत्य है कि हम भौतिक रूप में इस संसार में सीमित अवधि तक ही
रहेंगे। हमारी मृत्यु के बाद हमारे निकट सम्बन्धी, मित्र, बन्धु-बाँधव जीवन
भर हमारे लिए शोकाकुल और प्रेमाकुल भी नहीं रहेंगे। दु:ख मिश्रित इस
निर्बल भावना पर विजय पाने के लिए तब हमारे अन्तर्मन में एक विचार
उठता है कि क्यों न हम अपने सत्कर्मों और सद्गुणों का प्रकाश पैâलाकर
सदा-सदा के लिए अमर हो जाएँ।
सेवक-प्रवृत्ति अपनाकर हम ऐसा अवश्य कर सकते हैं। अपने नि:स्वार्थ
व्यक्तित्व और परहित कर्मों के बल पर हम हमेशा के लिए मानवीय जीवन
हेतु उत्प्रेरणा बन सकते हैं। अनुपम मनुष्य जीवन को सद्गति प्रदान करने के
लिए यह विचार नया नहीं है। ऐसे विचार सज्जन मनुष्यों के अन्तर्मन में सदा
उठते रहते हैं तथा इन्हें अपनाकर वे दुनिया में अमर भी हो गए। इस धरा पर
स्थायी रूप में नहीं रहने पर भी ऐसे परहितकारी कालान्तर तक पूजे जाते
रहेंगे। अमूल्य मनुष्य जीवन की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा यही है। यही सीखकर मनुष्य
का जीवन आनन्दमय और समृद्धिशाली हो सकता है।
यदि इस प्रकार मानव जीवन उन्नत होता है, तो यह सम्पूर्ण संसार स्वर्गिक
विस्तार ग्रहण कर लेगा। किसी भी मानव को अध्यात्मिकता का जो अन्तिम
ज्ञान मिलेगा, वह भी यही शिक्षा देगा कि धर्म-कर्म का उद्देश्य सत्कर्मों और
सद्गुणों की ज्योति पैâलाना ही है। डण्ऊEऊ व्ल्त् २०१९़
१. ऐसे परोपकारी लोग सदा पूजे जाते रहेंगे, जो
(१) आनन्दमय जीवन जीते रहे
(२) अमूल्य मानव जीवन में श्रेष्ठ शिक्षक रहे
(३) सेवक वृत्ति अपनाकर परहित करते रहे
(४) धरती पर स्थायी रूप से नहीं रहे
२. ‘कठोर सत्य’ किसे कहा गया है?
(१) भावनाओं पर नियन्त्रण न कर पाना
(२) निकट सम्बन्धियों का अस्थायी प्रेम
(३) भौतिक संसार की तुच्छता
(४) भौतिक शरीर की नश्वरता
३. निर्बल भावनाओं पर विजय पाने के लिए क्या किए जाने की
आवश्यकता बताई गई है?
(१) विजय पाने के लिए योजना बनाना
(२) ऐसी भावनाओं को मन में न आने देना
(३) अच्छे कर्मों से नाम अमर कर लेना
(४) सदा-सदा के लिए अमर हो जाना
४. हमारा जीवन सदा प्रेरणा बन सकता है, यदि हम
(१) सेवक प्रवृत्ति का प्रचार-प्रसार करें
(२) परहित और परोपकार करें
(३) नि:स्वार्थ भाव से परोपकार करें
(४) परसेवा के लिए सबको प्रेरित करें
५. धर्म के आचरण का उद्देश्य है
(१) अच्छे कर्मों और गुणों का प्रकाश पैâलाना
(२) कर्म पर आस्था रखना
(३) अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करना
(४) आध्यात्मिकता की शिक्षा प्रदान करना
६. ‘‘ऐसे विचार सज्जन मनुष्यों के
(क) (ख)
अन्तर्मन में सदा उठते रहे हैं।’’
(ग) (घ)
अनुच्छेद में प्रयुक्त उपर्युक्त अशुद्ध वाक्य को चार भागों में बाँट दिया
गया है, वह भाग पहचानिए, जिसमें अशुद्धि हो
(१) (घ) (२) (क)
(३) (ख) (४) (ग)
७. शेष शब्दों से भिन्न शब्द पहचानिए
(१) सत्यवादी (२) सद्गुण
(३) सद्गति (४) सत्कर्म
८. ‘नि:स्वार्थ’ शब्द का उपयुक्त विपरीतार्थी शब्द है
(१) परोपकारी (२) नि:स्वार्थी
(३) स्वार्थी (४) परार्थी
९. गद्यांश में प्रयुक्त ‘आध्यात्मिकता’ शब्द किन उपसर्ग-प्रत्ययों से बना है?
(१) आ, इ, कता (२) अधि, इक, ता
(३) अधि, इ, ता (४) आध्य, क, ता
गद्यांश १२
वर्ष १९१४ तक देश का औद्योगिक विकास बेहद धीमा रहा और साम्राज्यवादी
शोषण अत्यन्त तीव्र हो गया। गाँवों की अर्थव्यवस्था पंगु हो गई। सबसे
अधिक बुरा प्रभाव कारीगरों, हरिजनों और छोटे किसानों पर पड़ा। ग्रामीण
जन साम्राज्य और उनके भारतीय एजेण्ट जमींदारों के दोहरे शोषण की चक्की
में पिस रहे थे। ब्रिटिश काल में सूदखोर महाजनों का एक ऐसा वर्ग पैदा
हुआ, जिनसे एक बार क़र्ज लेने पर गाँव के किसान जीवन-भर गुलामी का
पट्टा पहनने पर मजबूर हो जाते थे। उनके हिसाब के सूद का भुगतान करने
में असमर्थ किसान महाजनों को खेत बेचने पर मजबूर होकर अपनी ़जमीन
पर ही म़जदूर होता गया। इस प्रकार देश में एक ओर तो बड़े किसानों की
संख्या बढ़ी, दूसरी ओर ़जमीन जोतने वाला किसान भूस्वामित्व के अधिकार
से वंचित होकर खेतिहर म़जदूर होने लगा। भुखमरी से बचने के लिए बड़ी
संख्या में ग्रामीण बड़े पैमाने पर रोजी-रोटी की तलाश में शहरों की ओर
भागने लगे, परन्तु इन असहाय लोगों का स्वागत करने के लिए वहाँ भी
कठिनाइयाँ और समस्याएँ ही थीं। प्रेमचन्द ‘गोदान’ में होरी और गोबर के
माध्यम से इस ऐतिहासिक प्रक्रिया को विस्तार से हमारे सामने प्रस्तुत करते
हैं। यह अकेले होरी की ट्रेजिडी नहीं है, पूरे छोटे किसानों के साथ
साम्राज्यवादी-पूँजीवादी व्यवस्था के शोषण-तन्त्र का क्रूर मजाक है, जो दूसरे
ढंग से आज भी जारी है। २०वीं शताब्दी के आरम्भ में ग्रामीण गरीबी का
प्रेमचन्द जो यथार्थ चित्रण करते हैं, यह यूरोप में किसी व्यक्ति के लिए
अकल्पनीय है- ‘‘टूटे-फूटे झोंपड़े, मिट्टी की दीवारें, घरों के सामने
कूड़े-करकट के ढेर, कीचड़ में लिपटी भैंसें, दुर्बल गायें, हड्डी निकले
किसान, जवानी में ही जिन पर बुढ़ापा आ गया है।’’
१. ‘गोदान’ के पात्र हैं
(१) होरी (२) गोबर
(३) १ और २ दोनों (४) प्रेमचन्द
Aह्रास १ : AहढR्नन्न् व्छस्श्च १६१
ण्ऊEऊ
२. वर्ष १९१४ तक देश का औद्योगिक विकास धीमा रहने का मुख्य कारण
क्या हो सकता है?
(१) साम्राज्यवादी शोषण (२) गाँव की पंगु अर्थव्यवस्था
(३) सूदखोर महाजन (४) गरीब किसान
३. ग्रामीण अर्थव्यवस्था के कमजोर होने का कुप्रभाव किस पर पड़ा?
(१) कारीगर (२) छोटे किसान
(३) दलित वर्ग (४) ये सभी
४. ग्रामीण लोग शहरों की ओर क्यों पलायन कर रहे थे?
(१) रोजी-रोटी की तलाश में (२) भुखमरी से बचने के लिए
(३) १ और २ दोनों (४) इनमें से कोई नहीं
५. गाँवों के लोगों का शोषण कौन कर रहा था?
(१) साम्राज्य (२) साम्राज्य के एजेण्ट
(३) सूदखोर महाजन (४) ये सभी
६. छोटे किसानों के खेतिहर मजदूर बनने का कारण क्या था?
(१) क़र्ज चुकाने के लिए खेत बेचना
(२) स्वरो़जगार की शुरुआत करने के लिए खेत बेचना
(३) खेती से लाभ न होना
(४) खेती में कोई रुचि न लेना
७. प्रस्तुत गद्यांश में आए शब्द ‘पंगु’ का तात्पर्य क्या है?
(१) बिगड़ना (२) पागुर करना
(३) सुधरना (४) अच्छा न होना
८. जिसकी कल्पना न की जा सके, उसे कहते हैं
(१) अकल्पित (२) अकल्प (३) अकल्पनीय (४) असम्भव
९. ‘बुढ़ापा’ शब्द है
(१) जातिवाचक संज्ञा (२) भाववाचक संज्ञा
(३) व्यक्तिवाचक संज्ञा (४) द्रव्यवाचक संज्ञा
गद्यांश १३
जब से नव उदारवाद की बयार चली है तब से कहा जा रहा है कि सारा
विश्व अमेरिकी रंग में, देर-सबेर सराबोर हो जाएगा, यानी सब मुल्कों का
अमेरिकीकरण हो जाएगा। ऐसा दावा भूतपूर्व अमेरिकी विदेशमन्त्री डॉ. हेनरी
कििंसगर ने १२ अक्टूबर, १९९९ को आयरलैण्ड की राजधानी डब्लिन के
ट्रिनिटी कॉलेज में अपने व्याख्यान के क्रम में किया : ‘बुनियादी चुनौती यह
है कि जिसे भूमण्डलीकरण कहा गया है, वह अमेरिका द्वारा वर्चस्व जमाए
रखने सम्बन्धी भूमिका का ही दूसरा नाम है। बीते दशक के दौरान अमेरिका
ने अभूतपूर्व समृद्धि हासिल की, पूँजी की उपलब्धता को व्यापक और सघन
किया, नई प्रौद्योगिकियों की विविधता के निर्माण, उनके विकास और विस्तृत
वितरण हेतु धन की व्यवस्था की, अनगिनत सेवाओं और वस्तुओं के बाजार
बनाए। आर्थिक दृष्टि से इससे बेहतर कुछ और नहीं किया जा सकता।
उन्होंने आगे कहा कि इन सबको देखते हुए अमेरिकी विचारों, मूल्यों और
जीवन शैली को स्वीकारने के अलावा विश्व के पास कोई अन्य विकल्प नहीं
बचा है।
‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ के स्तम्भकार टॉमस एल. प्रिâडमैन घोषणा करते दिखते हैं
कि हम अमेरिकी एक गतिशील विश्व के समर्थक मुक्त बाजार के पैरोकार
और उच्च तकनीक के पुजारी हैं। हम चाहते हैं कि विश्व हमारे नेतृत्व में रहे
और लोकतान्त्रिक तथा पूँजीवादी बने। इतिहास के अन्त की घोषणा करने वाले
प्रâांसिस फुकुयामा का मानना है कि विश्व का अमेरिकीकरण होना ही
चाहिए, क्योंकि कई दृष्टियों से अमेरिका आज विश्व का सर्वाधिक उन्नत
पूँजीवादी समाज है। उसके संस्थान इसी कारण बाजार की शक्तियों के तर्क
संगत विकास के प्रतीक हैं। यदि बाजार की शक्तियों को वैश्वीकरण
संचालित करता है, तो भूमण्डलीकरण के साथ-साथ अमेरिकीकरण अनिवार्य
रूप से होगा। ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ से जुड़े भारतीय मूल के टिप्पणीकार आकाश
कपूर ने उपरोक्त चर्चा को आगे बढ़ाया है। कपूर के पिता भारतीय और माँ
अमेरिकी हैं। वे पले-बढ़े हैं अमेरिका में, परन्तु अरसे से पुदुचेरी (पाण्डिचेरी) में
रहते हैं। उनके लेख ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ और उनके भूमण्डलीय संस्करण
‘इण्टरनेशनल हेराल्ड ट्रिब्यून’ में नियमित रूप से प्रकाशित होते हैं।
१. नव उदारवाद का प्रभाव हो सकता है
(१) संयुक्त राष्ट्र संघ के महत्त्व में वृद्धि (२) भूमण्डलीकरण के महत्त्व में कमी
(३) पूँजी की उपलब्धता की व्यापकता (४) अमेरिका के वर्चस्व में वृद्धि
२. लेखक प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से क्या कहना चाहता है?
(१) उदारवाद कितना घातक है?
(२) उदारवाद और भूमण्डलीकरण के कारण अमेरिका के वर्चस्व में किस तरह
वृद्धि होगी?
(३) भूमण्डलीकरण दुनिया के लिए सही नहीं है
(४) उपरोक्त सभी
३. इतिहास के अन्त की घोषणा किसने की थी?
(१) डॉ. हेनरी कििंसगर ने (२) टॉमस एल. प्रिâडमैन ने
(३) प्रâांसिस फुकुयामा ने (४)इनमें से कोई नहीं
४. ट्रिनिटी कॉलेज कहाँ है?
(१) अमेरिका में (२) लन्दन में
(३) न्यूयॉर्क में (४) डब्लिन में
५. टॉमस एल. प्रिâडमैन किस समाचार-पत्र में स्तम्भ लिखते थे?
(१) न्यूयॉर्क टाइम्स (२) लन्दन टाइम्स
(३) द टाइम्स ऑफ इण्डिया (४) टोक्यो टाइम्स
६. आकाश कपूर कहाँ रहते हैं?
(१) नई दिल्ली में (२) न्यूयॉर्क में
(३) पाण्डिचेरी में (४) डब्लिन में
७. जिसका निवारण न किया जा सके, उसे कहते हैं
(१) अनिवारण (२) अनिवारणीय
(३) अनिवार्य (४) आवश्यक
८. वैश्वीकरण शब्द है
(१) संज्ञा से बनी संज्ञा (२) विशेषण से बनी संज्ञा
(३) संज्ञा से बना विशेषण (४) क्रिया से बना विशेषण
९. ‘बयार’ का तात्पर्य है
(१) बया पक्षी (२)हवा (३) मेल (४) शुरुआत
गद्यांश १४
खबर के बिकने की खबर पुरानी होकर भी पुरानी नहीं हुई। यह पूछने के
बावजूद कि जब मीडिया मण्डी में है और मण्डी में धर्म, ईमान, पाखण्ड, ईश्वर,
सत्य, कला सभी कुछ बिक रहा है, तो खबर बिकने पर चौंकना, परेशान होना
अथवा दु:खी होना क्यों? परेशान होना जरूरी है। मीडिया का भ्रष्टाचार लोकतन्त्र
को भारी नुकसान पहुँचाने वाला है। पैसे लेकर समाचार छापने की खबर ने
हड़कम्प मचा दिया। धन का लोभ क्या-क्या नहीं करवाता? बताया गया कि
मुनाफाखोरी के दबाव में कुछ मीडिया संगठनों ने पत्रकारिता के ऊँचे आदर्शों की
हत्या कर दी। कुछ समय पहले तक रिपोर्टरों अथवा संवाददाताओं को नकद या
अन्य छोटे-छोटे उपहार दिए जाते थे, देश-विदेश में किसी कम्पनी या किसी
शख्स के बारे में अनुकूल खबर छापने पर अच्छे होटलों में लंच-डिनर के साथ
नकद भुगतान का लिफाफा दिया जाता था। ऐसी खबर हर सूरत में वस्तुनिष्ठ
होते हुए व्यक्ति, पद या संस्था की प्रशंसा कर रही होती थी, परन्तु फिर बड़ा
बदलाव आया। कामकाज की शैली और नियम बदल गए। मूल्यों को निश्चित
१६२ ु³ुदु ‘स्ड्डैं्नa ढर्प्Ýेंr ्रस्fस् E्श्च् ढारसस्ड्ड़
करने की गलाकाट प्रतियोगिता के अतिरिक्त बड़ा मुनाफा पाने के लिए एक नई
टर्म मार्वेâिंटग का सहारा लिया जाने लगा। उसूलों के उल्लंघन के जवाब तलाश
कर लिए गए। कहा गया कि एजेन्सियों जैसे बिचौलियों को खत्म करने में कुछ
भी बुरा नहीं। प्रेस-परिषद् ने कुछ दायित्व समझते हुए ‘पैसे के बदले समाचार’
पर एक कमेटी का गठन किया, जिससे चुनाव के दौरान नेताओं अथवा
राजनीतिक दलों से पैसा लेकर समाचार प्रकाशित करने वाले जिम्मेदार कारकों
को कठघरे में खड़ा किया जा सके, परन्तु कॉर्पोरेट मीडिया की दृश्य-अदृश्य
शक्ति के सामने ऐसा हो न सका। सुप्रसिद्ध पत्रकार प्रभाष जोशी ने भी इस अनर्थ
को रोकने की कोशिश की, परन्तु मीडिया-समूह और राजनीति के कार्यकर्ताओं के
बीच दलाली पैकेज में सभी कुछ चल रहा है।
१. किस मण्डी में धर्म और ईश्वर बिक रहा है?
(१) सब्जी मण्डी (२) पत्रकारिता की मण्डी
(३) कपड़े की मण्डी (४) ये सभी
२. लोकतन्त्र को किससे नुकसान हो रहा है?
(१) पत्रकारिता के उत्थान से (२) मीडिया के प्रभाव से
(३) मीडिया के बिक जाने से (४) ये सभी
३. लेखक के अनुसार
(१) मीडिया में पहले किसी प्रकार का भ्रष्टाचार नहीं था
(२) मीडिया में पहले भी भ्रष्टाचार था
(३) मीडिया के बिकने पर पाखण्ड का बिकना स्वाभाविक नहीं है
(४) धर्म और ईमान का मीडिया से कोई लेना-देना नहीं है
४. पैसे के बदले समाचार पर कमेटी का गठन किसके द्वारा किया गया?
(१) प्रेस-परिषद् के (२) न्यूज चैनल के
(३) समाचार-पत्र संगठन के (४) ये सभी
५. पैसे लेकर समाचार को प्रकाशित करने की स्थिति को रोकने की
कोशिश किस पत्रकार ने की?
(१) दीपक चौरसिया ने (२) प्रभु चावला ने
(३) प्रभाष जोशी ने (४)राजदीप सरदेसाई ने
६. निम्नलिखित में से कौन-सा सामासिक पद नहीं है?
(१) कठघरा (२) गलाकाट (३) मुनाफाखोरी (४)ईश्वर
७. ‘हड़कम्प’ का तात्पर्य है
(१) धूम मचाना (२) हिलाना (३) हाड़ मिलाना (४)हराना
८. ‘पत्रकार’ में कौन-सा समास है?
(१) अव्ययीभाव (२) तत्पुरुष (३) द्वन्द्व (४) कर्मधारय
९. ‘उल्लंघन’ का सन्धि-विच्छेद है
(१) उल + लंघन (२) उल्ल + अंघन (३) उत् + लंघन (४) उल् + लंघन
गद्यांश १५
प्राचीन भारत में स्त्रियों की सामाजिक परिस्थिति से सम्बन्धित अधिकांश
अकादमिक अध्ययन ब्राह्मण साहित्य पर आधारित है। इस साहित्य में धार्मिक
और वैधानिक बिन्दुओं पर मुख्य रूप से चर्चा की गई है। धार्मिक कर्मकाण्ड
सम्पादित करने का अधिकार, कर्मकाण्ड-सम्पादन का उद्देश्य, विधवाओं के
अधिकार, पुनर्विवाह, नियोग संस्था की प्रासंगिकता, सम्पत्ति का अधिकार
आदि कुछ ऐसे उल्लेखनीय बिन्दु हैं, जिन पर विशद् चर्चा की गई है। स्त्रियों
की शिक्षा-दीक्षा, सार्वजनिक गतिविधियाँ सामाजिक समारोहों में उनकी
उपस्थिति या अनुपस्थिति स्त्रियों की सामाजिक स्थिति के आकलन के
महत्त्वपूर्ण आधार रहे हैं।
स्त्रियों के अधिकार-सम्बन्धी अधिकांश चर्चा परिवार को केन्द्र में रखकर,
परिवार के सदस्य के रूप में पारिवारिक भूमिकाओं के निर्वहन के सन्दर्भ में
की गई है। ज्यादातर उल्लेख पत्नी की भूमिका और पत्नी के रूप में दिए
जाने वाले अधिकार से सम्बन्धित हैं। ऐसे सन्दर्भ न के बराबर हैं, जिनमें
समाज के एक स्वतन्त्र सदस्य के रूप में स्त्री अधिकारों की चर्चा की गई हो
या उस पर विचार-विमर्श किया गया हो। गणिकाओं को इस्ा सन्दर्भ में
अपवाद माना जा सकता है, किन्तु ब्राह्मण साहित्य पितृवंशीय समाज में स्त्री
अधिकारों को सन्दर्भित करता है। गणिकाओं को इस समाज का अंग नहीं
माना गया है। चूँकि स्त्रियों की सामाजिक-आर्थिक परिस्थिति का ये पूरा
प्रारम्भिक विवेचन ब्राह्मण ग्रन्थों पर आधारित था, इसलिए यह सिर्फ
ब्राह्मणवादी नजरिए को प्रस्तुत करता है। ब्राह्मणेत्तर (श्रमणिक) नजरिए से
हमें परिचित नहीं कराता, इसलिए ऐसी कोई अवधारणा बनाना कि समाज में
इन नियमों का शब्दश: पालन होता रहा होगा गलत होगा। वास्तविक समाज
निश्चय ही इन ग्रन्थों की अपेक्षाओं के आदर्श समाज से अलग रहा होगा।
१. प्राचीन भारत में स्त्रियों की क्या स्थिति थी? यह जानने का स्रोत है
(१) ब्राह्मण ग्रन्थ (२) संगम साहित्य
(३) अर्थशास्त्र (४) इनमें से कोई नहीं
२. स्त्रियों की सामाजिक स्थिति के आकलन के महत्त्वपूर्ण आधार रहे हैं
(१) शिक्षा (२) सार्वजनिक गतिविधियाँ
(३) सामाजिक समारोहों में उपस्थिति (४) ये सभी
३. स्त्रियों के अधिकार सम्बन्धी अधिकांश चर्चा किसको केन्द्र में रखकर
की गई है?
(१) समाज (२) देश (३) परिवार (४) ये सभी
४. निम्नलिखित में से किसे इस समाज का अंग नहीं माना गया था?
(१) स्त्री (२) पुरुष (३) ब्राह्मण (४) गणिका
५. ब्राह्मण साहित्य में स्त्रियों के अधिकार सम्बन्धी उल्लेख किससे
सम्बन्धित हैं?
(१) माँ एवं उसकी भूमिका
(२) बहन एवं परिवार में उसकी भूमिका
(३) पत्नी एवं परिवार में उसकी भूमिका
(४) गणिका एवं समाज में उसकी भूमिका
६. ‘वास्तविक’ का विपरीतार्थक शब्द है
(१) सच (२) झूठ (३) अवास्तविक (४) अनिश्चित
७. ‘निर्वहन’ में कौन-सा उपसर्ग है?
(१) निर (२) नि: (३) निर्व (४) नीरव
८. ‘नियोग’ में कौन-सा समास है?
(१) अव्ययीभाव (२) तत्पुरुष
(३) द्वन्द्व (४) कर्मधारय
९. पुनर्विवाह का सन्धि-विच्छेद है
(१) पुनर् + विवाह (२) पुन: + विवाह
(३) पुन + विवाह (४) पुनर्वि + वाह
गद्यांश १६
गाँधीजी ने माना कि अहिंसा ईश्वर की कल्पना की तरह अनिर्वचनीय एवं
अगोचर है, पर जीवन में इसके आभास होते रहते हैं। वर्ष १९४० में कलकत्ता के
समीप मलिकन्दा में अपने शीर्षस्थ साथियों की सभा में गाँधीजी ने कहा था,
‘‘अिंहसा अगर व्यक्तिगत गुण है, तो यह मेरे लिए त्याज्य है। मेरी अिंहसा की
कल्पना व्यापक है मैं तो उसका सेवक हूँ, जो चीज करोड़ों की नहीं हो सकती,
वह मेरे लिए त्याज्य है और मेरे साथियों के लिए भी त्याज्य होनी चाहिए। हम
तो यह सिद्ध करने के लिए पैदा हुए हैं कि सत्य और अिंहसा केवल व्यक्तिगत
आधार के नियम नहीं हैं। यह समुदाय, जाति और राष्ट्र की नीति हो सकती है।’’
उन्होंने आगे कहा, ‘‘मैंने इसी को अपना कर्त्तव्य माना है। चाहे सारा जगत् मुझे
छोड़ दे, तो भी मैं इसे नहीं छोड़ूँगा। इसे सिद्ध करने के लिए ही मैं जीऊँगा और
उसी प्रयत्न में मैं मरूँगा।’’
Aह्रास १ : AहढR्नन्न् व्छस्श्च १६३
वास्तव में, महानायक बनने में उनके जिस विचार ने सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण
भूमिका निभाई वह उनका अिंहसा का ही विचार था। इसलिए देश की
आजादी को अति महत्त्वपूर्ण लक्ष्य मानते हुए भी वह उसे अिंहसा को
त्यागकर प्राप्त करना नहीं चाहते थे। अंग्रेजों से लड़ने के लिए िंहसा के बदले
अिंहसा को हथियार बनाने का कारण भी यही था।
महात्मा गाँधी के दक्षिण अप्रâीका प्रयास पर यदि हम एक विहंगम दृष्टि डालें,
तो स्पष्ट होगा कि एक साधारण से व्यक्ति के रूप में पहुँचे गाँधीजी ने
२२ वर्ष की लम्बी लड़ाई में अपमान, भूख, मानसिक सन्ताप व शारीरिक
यातनाएँ झेलते हुए न केवल राजनीतिक, बल्कि सामाजिक व नैतिक क्षेत्र में
जो उपलब्धियाँ प्राप्त कींr, उसकी मिसाल अन्यत्र मिलना असम्भव है। उनके
भारत लौटने पर गुरुदेव टैगोर ने कहा था–‘‘भिखारी के लिबास में एक
महान् आत्मा लौटकर आई है।’’ वर्ष १९१९ से लेकर १९४८ में अपनी मृत्यु
तक भारत के स्वाधीनता आन्दोलन के महान् ऐतिहासिक नाटक में गाँधीजी
की भूमिका मुख्य अभिनेता की रही। उनका जीवन उनके शब्दों से भी बड़ा
था। उनका आचरण विचारों से महान् था और उनकी जीवन प्रक्रिया तर्क से
अधिक सृजनात्मक थी।
१. महात्मा गाँधी ने किसे अगोचर माना है?
(१) ईश्वर को (२) कल्पना को
(३) अिंहसा को (४) ये सभी
२. महात्मा गाँधी ने स्वयं को किसका सेवक कहा है?
(१) देश का (२) कलकत्ता के लोगों का
(३) अपने साथियों का (४) अिंहसा का
३. प्रस्तुत गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक निम्नलिखित में से क्या हो
सकता है?
(१) अिंहसा (२) गाँधीजी और अिंहसा का विचार
(३) गाँधीजी और गुरुदेव (४) अिंहसा का महत्त्व
४. गुरुदेव ने किसे भिखारी जैसा माना है?
(१) महात्मा गाँधी को (२) गाँधीजी के लिबास को
(३) अिंहसक विचारों को (४) ये सभी
५. गाँधीजी ने किस क्षेत्र में विशेष उपलब्धियाँ अर्जित कींr?
(१) राजनीतिक क्षेत्र (२) सामाजिक क्षेत्र
(३) नैतिक क्षेत्र (४) ये सभी
६. ‘स्वतन्त्रता आन्दोलन’ यदि एक नाटक था, तो इसका नायक कौन था?
(१) रवीन्द्रनाथ टैगोर (२) स्वतन्त्रता सेनानी
(३) महात्मा गाँधी (४)इनमें से कोई नहीं
७. ‘सृजनात्मक’ शब्द है
(१) क्रिया (२) संज्ञा (३) विशेषण (४) क्रिया-विशेषण
८. ‘महानायक’ में कौन-सा समास है?
(१) अव्ययीभाव (२) तत्पुरुष (३) द्वन्द्व (४) कर्मधारय
९. ‘जिसका वचन द्वारा वर्णन न किया जा सके’ उसे कहते हैं
(१) अवचन (२) अनिर्वचनीय (३) कुवचन (४) निर्वचनीय
गद्यांश १७
पर्यावरण प्रदूषण आज विश्वव्यापी समस्या है। वर्तमान एवं आने वाले दशकों
में पृथ्वी की सम्पदा पर अधिक दबाव होगा। इस समस्या का मूल कारण है
जनसंख्या की तीव्र गति से वृद्धि, प्रदूषण एवं उपलब्ध साधनों का अधिकतम
प्रयोग। सहस्राब्दियों तक मनुष्य ने प्राकृतिक साधनों के साथ अपनी संगति को
कायम रखा है। मानवीय सभ्यता और प्राकृतिक वैभव की युगल-बन्दी चलती
रही। मनुष्य तो प्रकृति का आराधक था। प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य का उसने
सुख लिया, उसके छलछलाते स्नेह से अपने को आप्लावित किया और उसके
सुर से सुर मिलाकर जीवन के संगीत की रचना की, परन्तु आश्चर्य है कि
आज मनुष्य अपनी लालसा, गुणात्मक जीवन और भौतिक सुख-सुविधा के
लिए प्राकृतिक सम्पदाओं का दोहन व्यवस्थित रूप से नहीं करते हुए संरक्षण
करने के बदले प्रकृति का निजी स्वार्थ हेतु विध्वन्स करने में लग गया है।
आज विनाश की जो पटकथा लिखी जा रही है, उसके पीछे लालच,
लूट-खसोट और लिप्सा की दृष्टि उत्तरदायी है। आज गुमराह इन्सान प्रकृति
के पाँचों तत्त्वों से छेड़खानी कर रहा है। प्रकृति न तो पाषाणी है और न
मूकदर्शिनी। उसे बदला लेना आता है। प्रकृति की त्यौरियाँ और तेवर बता रहे
हैं कि वह बदला लेने पर आमदा है। दोनों तरफ मोर्चे खुल चुके हैं जाने
कब क्या हो जाए। वन-विनाश, अन्धाधुन्ध प्रदूषण, संसाधनों का अनर्गल
शोषण, नाभिकीय अस्त्रों की मूर्खतापूर्ण अन्धी दौड़ और औद्योगिक या
प्रौद्योगिक उन्नति के नाम पर प्रकृति से अधिक छेड़छाड़ एवं हवा, पानी और
मिट्टी जैसे प्राकृतिक साधनों के दुरुपयोग ने मनुष्य जाति को ही नहीं, सम्पूर्ण
जीव-जड़ को विनाश के कगार पर खड़ा कर दिया है।
१. किस समस्या का मूल कारण जनसंख्या वृद्धि है?
(१) पृथ्वी की सम्पदा (२) पृथ्वी की सम्पदा पर अधिक दबाव
(३) विश्वव्यापी समस्या (४) इनमें से कोई नहीं
२. मानव सभ्यता ने अपनी प्रगति के लिए किसका सहारा लिया?
(१) अपने ज्ञान का (२) प्राकृतिक सौन्दर्य का
(३) प्राकृतिक सम्पदा का (४) ये सभी
३. आज के मानव के सन्दर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?
(१) उसे प्राकृतिक सम्पदा से कोई लेना-देना नहीं है
(२) वह स्वार्थी नहीं बनना चाहता
(३) वह प्राकृतिक सम्पदाओं के दोहन में लगा है
(४) उपरोक्त में से कोई नहीं
४. मानव अपने किस निजी स्वार्थ के लिए प्रकृति के विध्वन्स में लगा है?
(१) भौतिक सुख-सुविधा (२) आध्यात्मिक स्वार्थ
(३) राजनीतिक स्वार्थ (४) सामाजिक स्वार्थ
५. प्रस्तुत गद्यांश में प्रकृति के कितने तत्त्वों से छेड़खानी की बात की
गई है?
(१) दो (२) तीन (३) पाँच (४) चार
६. ‘विध्वन्स’ का विपरीतार्थक शब्द है
(१) बनावट (२) बुनाई (३) निर्वाण (४) निर्माण
७. प्राकृतिक स ंसाधना ें व âे द ुरुपया ेग स े ा fकसका न ुकसान सम्भव ह ै?
(१) केवल मनुष्य (२) मनुष्य को छोड़कर अन्य जीव-जन्तु
(३) न मनुष्य न जीव-जन्तु (४) सम्पूर्ण जीव-जगत्
८. ‘उत्तरदायी’ में कौन-सा समास है?
(१) अव्ययीभाव (२) तत्पुरुष (३) द्वन्द्व (४) कर्मधारय
९. ‘मूकदर्शिनी’ शब्द का प्रयोग किसके लिए हुआ है?
(१) पृथ्वी (२) पाषाणी (३) प्रकृति (४) जीव-जन्तु
गद्यांश १८
आधुनिक शिक्षण संस्थाएँ ही नहीं, बल्कि परिवार एवं समाज के अन्य सदस्य
भी अपने कार्य एवं व्यवहार से मनुष्य के शिक्षण में सहायक होते हैं। किसी
भी क्षेत्र विशेष के लोगों पर उसके क्षेत्र का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा
सकता है। यह प्रभाव भाषा ही नहीं व्यवहार में भी दिखाई पड़ता है। इस तरह
की शिक्षा को अनौपचारिक शिक्षण के अन्तर्गत रखा जाता है। इस तरह
सामान्य रूप से शिक्षा की दो प्रणालियाँ होती हैं–औपचारिक शिक्षा एवं
अनौपचारिक शिक्षा। मुक्त विद्यालय एवं विश्वविद्यालय अनौपचारिक शिक्षा के
ही उदाहरण हैं। इनके अलावा परिवार के सदस्य भी बालकों की शिक्षा में
१६४ ण्ऊEऊ ु³ुदु ‘स्ड्डैं्नa ढर्प्Ýेंr ्रस्fस् E्श्च् ढारसस्ड्ड़
प्रत्यक्ष रूप से अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हैं। समुदाय के अन्य सदस्यों की
भी इसमें सहभागिता होती है। बालक अपनी परम्परा एवं अपने रीति-रिवाजों
को समाज के अन्य सदस्यों द्वारा ही सीखता है। बालकों पर उसके परिवेश
उसके साथियों का भी प्रभाव पड़ता है। गलत संगति में बालकों में गलत
आदतों का विकास अथवा आपराधिक प्रवृत्तियों में लिप्त हो जाना इसका
उदाहरण है। औपचारिक शिक्षा में शिक्षण का स्थान सुनिश्चित होता है, जबकि
अनौपचारिक में ऐसा नहीं होता। औपचारिक शिक्षा में प्रवेश के लिए
आयु-सीमा निर्धारित होती है, जबकि अनौपचारिक शिक्षा में ऐसी कोई बाध्यता
नहीं होती है। अनौपचारिक शिक्षा के द्वारा शिक्षा से वंचित समाज के पिछड़े
लोगों एवं प्रौढ़ों को शिक्षित करने में सहायता मिलती है। अनौपचारिक शिक्षा में
औपचारिक शिक्षा जैसे कठोर नियम नहीं होते ये अत्यधिक लचीले होते हैं।
अनौपचारिक शिक्षा के जरिए औपचारिक शिक्षा से वंचित समाज के पिछड़े
लोगों को शिक्षित करने में सहायता मिलती है। प्रौढ़ शिक्षा एवं स्त्री शिक्षा इसी
का उदाहरण है।
औपचारिक शिक्षा समाजीय व्यवस्था की एक उपव्यवस्था के रूप में कार्य
करती है। इस पर परिवार, संस्कृति, राज्य, धर्म, अर्थव्यवस्था एवं समाज का
स्पष्ट प्रभाव होता है, क्योंकि यह इन सभी से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से
सम्बन्धित होता है। सिर्फ शिक्षा पर ही समाज का प्रभाव नहीं होता, बल्कि
शिक्षा भी समाज को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। शिक्षा के
परिणामस्वरूप ही भारत में स्त्रियों की स्थिति में सुधार हुआ है। शहरीकरण,
सामाजिक स्थितियों में बदलाव, संयुक्त परिवारों का एकल परिवारों के रूप में
विभाजन ये सभी शिक्षा का समाज पर प्रभाव स्पष्ट करते हैं।
१. मानव किसकी सहायता से शिक्षा प्राप्त करता है?
(१) स्कूल (२) समाज (३) परिवार (४) ये सभी
२. व्यक्ति की भाषा एवं व्यवहार में उसके क्षेत्र विशेष का प्रभाव स्पष्ट
दिखाई पड़ता है, इसे निम्नलिखित में से किसके अन्तर्गत रखा जा
सकता है?
(१) स्कूली शिक्षा (२) व्यक्ति पर सामाजिक प्रभाव
(३) अनौपचारिक शिक्षा (४) ये सभी
३. गलत संगति में बालकों में गलत आदतों का विकास किसका उदाहरण है?
(१) स्कूल का प्रभाव (२) परिवेश का प्रभाव
(३) परिवार का प्रभाव (४) इनमें से कोई नहीं
४. औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा में प्रमुख अन्तर किससे सम्बन्धित है?
(१) प्रवेश की आयु-सीमा (२) शिक्षा की प्रकृति
(३) विषय वस्तु (४) ये सभी
५. निम्नलिखित में से कौन शिक्षा पर समाज के प्रभाव को स्पष्ट करता है?
(१) सामाजिक स्थितियों में बदलाव
(२) शहरीकरण
(३) संयुक्त परिवारों का एकल परिवारों के रूप में विभाजन
(४) उपरोक्त सभी
६. निम्नलिखित में से किसके नियम कठोर होते हैं?
(१) अनौपचारिक शिक्षा (२) औपचारिक शिक्षा
(३) सामाजिक शिक्षा (४) ये सभी
७. निम्नलिखित में से किस शब्द का विपरीतार्थक शब्द प्रस्तुत गद्यांश में
नहीं दिया गया है?
(१) औपचारिक (२) प्रत्यक्ष (३) सामान्य (४) लचीला
८. ‘उपव्यवस्था’ में कौन-सा समास है?
(१) अव्ययीभाव (२) तत्पुरुष (३) द्वन्द्व (४) कर्मधारय
९. ‘अप्रत्यक्ष’ में कौन-सा उपसर्ग है?
(१) अप (२) अ (३) अप्र (४) यक्ष
गद्यांश १९
विद्यालय समाज की एक ऐसी संस्था है, जिसके कुछ सुनिश्चित एवं
सुनिर्धारित लक्ष्य होते हैं, जबकि समुदाय का तात्पर्य ऐसे समूह से है जिसमें
एक प्रकार के लोग होते हैं। यह एकत्व आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक या
नागरिक गुणों में हो सकता है। कई समुदाय अपने लिए अलग विद्यालय की
स्थापना भी कर लेते हैं। अपनी औपचारिक भूमिकाओं के अलावा अन्य
भूमिकाओं के निर्वहन में भी विद्यालय समुदाय की सहायता करता है। इसके
लिए आवश्यकता पड़ने पर समुदाय के क्रिया-कलापों में वह हस्तक्षेप भी
करता है। उदाहरणस्वरूप प्रौढ़ शिक्षा, स्त्री शिक्षा, स्वास्थ्य सम्बन्धी
जानकारियों को अभिभावकों तक पहँुचाने में भी विद्यालय यथासम्भव
समुदाय की सहायता करता है एवं आवश्यकता पड़ने पर हस्तक्षेप भी करता
है। अभिभावक एवं विद्यालय एक-दूसरे के सम्पर्क में रहते हैं। अभिभावक
समुदाय की आवश्यकताओं से परिचित होते हैं तथा विद्यालय को भी इनसे
अवगत कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाकर बीच की व्यवहार्य कड़ी का
काम करते हैं। उदाहरणस्वरूप समुदाय की आवश्यकताओं के अनुरूप
अभिभावकगण प्रौढ़ शिक्षा, स्त्री शिक्षा इत्यादि में सहायता के लिए विद्यालय
से अनुरोध करते हैं। इस तरह वे विद्यालय एवं समुदाय के बीच की
व्यवहार्य कड़ी हैं।
समुदाय के साथ निकट से जुड़कर कार्य करने की स्थिति में विद्यालय
अधिक प्रभावशाली हो जाता है। समुदाय और विद्यालय को जोड़ने में
समाज के लोगों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। समुदाय के क्रिया-कलापों
में विद्यालय की भागीदारी होती है। यही कारण है कि विद्यालयों के लिए
पाठ्यवस्तु को इतना लचीला बनाया जाता है कि उसमें समाज के विभिन्न
समुदायों की विशेषताएँ स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती हैं। पर्यावरण को स्वच्छ
रखने की शिक्षा देने के लिए आवश्यक है कि विद्यालय परिसर को स्वच्छ
रखा जाए। जल-संरक्षण की शिक्षा देने के लिए आवश्यक है कि विद्यालय
परिसर में भी इनके संरक्षण के नियमों का पालन होता हो। इस तरह
समुदाय की वास्तविकताओं को प्रायोगिक रूप से विद्यालय परिसर में प्रयोग
कर उसे अधिगम अनुभवों में रूपान्तरित किया जा सकता है।
१. विद्यालय किसके सम्पर्क में रहता है?
(१) नेता (२) समाज (३) अभिभावक (४) ये सभी
२. समुदाय और विद्यालय को जोड़ने में किसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है?
(१) राजनीतिक लोगों की (२) धार्मिक लोगों की
(३) सामाजिक लोगों की (४) ये सभी
३. एक समुदाय में कितने प्रकार के लोग रहते हैं?
(१) एक (२) तीन (३) दो (४) चार
४. प्रस्तुत गद्यांश में किसके द्वारा हस्तक्षेप की चर्चा की गई है?
(१) समुदाय (२) विद्यालय (३) व्यक्ति (४) प्रशासक
५. विद्यालय को समुदाय की आवश्यकता से कौन अवगत कराता है?
(१) विद्यार्थी (२) शिक्षक (३) अभिभावक (४) ये सभी
६. विद्यालय अधिक प्रभावशाली वैâसे हो सकता है?
(१) अपने विद्यार्थियों से जुड़कर (२) सामाजिक वर्चस्व प्राप्त कर
(३) समुदाय से जुड़कर (४) राजनीतिक वर्चस्व प्राप्त कर
७. ‘यथासम्भव’ में कौन-सा समास है?
(१) कर्मधारय (२) बहुव्रीहि (३) अव्ययीभाव (४) द्वन्द्व
८. ‘पाठ्यवस्तु’ में कौन-सा समास है?
(१) अव्ययीभाव (२) तत्पुरुष (३) द्वन्द्व (४) कर्मधारय
९. ‘रूपान्तरित’ का सन्धि-विच्छेद है
(१) रूप + अन्तरित (२) रूप + आन्तरित
(३) रूपा + अन्तरित (४) रूपा + आन्तरित
Aह्रास १ : AहढR्नन्न् व्छस्श्च १६५
ण्ऊEऊ
गद्यांश २०
भाषा, साहित्य, कला, दर्शन, जीवन और संस्कृति इन सबका अन्योन्याश्रित
सम्बन्ध है। इन्हीं से बनती है–हमारी पहचान, परिभाषित होती है हमारी अस्मिता।
किसी भी राष्ट्र की पहचान है–उसका साहित्यिक और सांस्कृतिक संसार, जिसे
जीवित रखने का कार्य करती है ‘भाषा’। साथ ही भाषा समाज के भावनात्मक
और सांस्कृतिक संघटन को दृढ़ बनाती है। यद्यपि भाषा का सम्बन्ध किसी मजहब
से नहीं होता, किन्तु यह भी सच है कि प्रत्येक भाषा किसी-न-किसी जाति की
होती है और यही वैज्ञानिक दृष्टि भी है, क्योंकि भाषा को बोलने वालों का और
उसे अपने धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक सांस्कृतिक व्यवहार में लाने
वाले लोगों का सम्बन्ध धर्म से होता है। इसलिए धीरे-धीरे अपनी धार्मिक छवि
और रूढ़ विचारधाराओं के कारण भाषा, ‘मजहब’ विशेष की बन जाती है।
दुनिया के विभिन्न धर्मों की अपनी-अपनी रूढ़ भाषाएँ इस बात का स्पष्ट प्रमाण
हैं। धार्मिक विचारों की अभिव्यक्ति के लिए प्रयुक्त धर्म विशेष की भाषा उस पर
अपना विशिष्ट ‘मजहबी’ ठप्पा लगा देती है और वह जन सामान्य के लिए
‘पवित्र भाषा’ या ‘देववाणी’ का मिथक बन जाती है। हिन्दुओं की मजहबी भाषा
‘संस्कृत’, मुसलमानों की ‘अरबी’, जैनों की ‘प्राकृत’, सिखों की ‘पंजाबी’ भाषा
इसी मजहबी ठप्पे का उदाहरण है। यद्यपि भाषा बार-बार इस धर्म और जाति के
दायरे को नकारती हुई जन-मन के भावानुकूल अपना रूप बदलती है, विस्तारित
होती है, किन्तु धर्म के ठेकेदार सदा-सदा से उसे रूढ़िबद्ध करने का प्रयास करते
रहे हैं। यहाँ तक कि नदी, पर्वत, वन-प्रदेश, समुद्र, वनस्पति जो समूची धरती पर
विद्यमान हैं; धार्मिक आस्थाओं के, विश्वासों के चलते विशिष्ट धर्मस्थली बन जाते
हैं। सांस्कृतिक नैतिक व्यवहार की तरह धर्म जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग है।
मानव की दुर्बलता भी और सबलता भी। रूढ़ अन्धविश्वासों के सहारे धर्म के
ठेकेदार पण्डे-पुजारी, मुल्ला-मौलवी, पोप-पादरी सभी अपने-अपने लाभ-लोभ
को भुनाते रहते हैं और उनकी इस ठगी का शिकार बनती है अन्धविश्वासों से
ग्रस्त भयाक्रान्त जनता। शासन तन्त्र इस स्थिति का भरपूर लाभ उठाता है और
भाषा के नाम पर समुदायों और जाति में जनता को बाँट उसका दोहरा शोषण
किया जाता है। यहीं से जुड़ाव होता है भाषायी जातीय सम्बन्ध का। शासन-वर्ग
का हस्तक्षेप राजसत्ता तक ही नहीं रहता। भाषा, प्रशासन की भाषा के रूप में
शासक के इंगित पर अपना स्वरूप रचती है। तद्नुरूप उसकी सत्ता बनती एवं
बिगड़ती है। शासन के धर्म और विचार के अनुकूल भाषा का दायरा निर्धारित
होता है। प्राय: भाषा दो रूपों में बँटी रहती है एक प्रशासन की भाषा दूसरी
जनसामान्य की।
१. हमारी पहचान किससे बनती है?
(१) साहित्य (२) कला
(३) दर्शन (४) ये सभी
२. भाषा किसे जीवित रखने का कार्य करती है?
(१) लेखन को (२) प्रकाशन को
(३) राष्ट्र की पहचान को (४) ये सभी
३. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?
(१) भाषा का सम्बन्ध किसी धर्म से नहीं होता।
(२) भाषा पर धार्मिक प्रभाव पड़ सकता है।
(३) दुनिया के विभिन्न धर्मों की अपनी-अपनी रूढ़ भाषाएँ हैं।
(४) भाषा को किसी धर्म विशेष का बनाने में राजनेताओं की भूमिका प्रमुख होती है।
४. जैन धर्म के विचारों की अभिव्यक्ति किस भाषा में हुई है?
(१) संस्कृत (२) प्राकृत (३) हिन्दी (४) राजस्थानी
५. भाषा को धर्म के बन्धनों में बाँधने में सर्वाधिक भूमिका किसकी होती है?
(१) नेता की (२) समाज की
(३) धर्म के ठेकेदार की (४)इनमें से कोई नहीं
६. धर्म निम्नलिखित में से क्या नहीं है?
(१) मानव की सबलता (२) मानव की दुर्बलता
(३) जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग (४) भाषा का स्रोत
७. ‘तद्नुरूप’ शब्द का सन्धि-विच्छेद है
(१) तत् + अनुरूप (२) तद + अनुरूप
(३) तद् + अनुरूप (४) तदन + उरूप
८. ‘अन्धविश्वास’ में कौन-सा समास है?
(१) अव्ययीभाव (२) तत्पुरुष
(३) द्वन्द्व (४) कर्मधारय
९. निम्नलिखित में से कौन-सा शब्द विशेषण नहीं है?
(१) अनुकूल (२) दुर्बलता (३) सबल (४) शासन
गद्यांश २१
मनु बहन ने पूरे दिन की डायरी लिखी, लेकिन एक जगह लिख दिया,
‘सफाई वगैरह की।’ गाँधीजी प्रतिदिन डायरी पढ़कर उस पर अपने
हस्ताक्षर करते थे। आज की डायरी पर हस्ताक्षर करते हुए गाँधीजी ने लिखा,
‘‘कातने की गति का हिसाब लिखा जाए। मन में आए हुए विचार लिखे
जाएँ। जो-जो पढ़ा हो, उसकी टिप्पणी लिखी जाए। ‘वगैरह’ का उपयोग नहीं
होना चाहिए। डायरी में ‘वगैरह’ शब्द के लिए कोई स्थान नहीं है।’’
जिसने जो पढ़ा हो, वह लिखा जाए। ऐसा करने से पढ़ा हुआ कितना पच
गया है, यह मालूम हो जाएगा। जो बातें हुई हों, वे लिखी जाएँ। मनु ने
अपनी गलती का अहसास किया और डायरी विधा की पवित्रता को
समझा।
गाँधीजी ने पुन: मनु से कहा— ‘‘डायरी लिखना आसान कार्य नहीं है।
यह इबादत करने जैसी विधा है। हमें शुद्ध व सच्चे रूप से प्रत्येक
छोटी-बड़ी घटना को निष्पक्ष रूप से लिखना चाहिए, चाहे कोई बात
हमारे विरुद्ध ही क्यों न जा रही हो। इससे हमें सच्चाई स्वीकार करने की
शक्ति प्राप्त होगी।’’ डण्ऊEऊ व्ल्ह २०११़
१. मनु को अपनी किस गलती का अहसास हुआ?
(१) उन्होंने डायरी में ‘वगैरह’ शब्द का प्रयोग किया था
(२) उन्होंने गाँधीजी की बात नहीं मानी थी
(३) मनु ने डायरी में कातने की गति का हिसाब लिखा था
(४) उन्होंने डायरी में सही-सही बातें लिखी थीं
२. गाँधीजी ने ‘वगैरह’ शब्द पर अपनी आपत्ति क्यों जताई?
(१) वे चाहते थे कि बातों को ज्याें-का-त्यों लिखा जाए
(२) ‘वगैरह’ शब्द की जगह ‘आदि’ शब्द का प्रयोग सही है
(३) गाँधीजी चाहते थे कि सही भाषा का प्रयोग हो
(४) ‘वगैरह’ शब्द में कार्य और विचार की स्पष्टता नहीं है
३. गाँधीजी ने डायरी लिखने को इबादत करने जैसा क्यों कहा है?
(१) दोनों में सच्चाई और ईमानदारी होनी चाहिए
(२) दोनों में समय लगता है
(३) दोनों कार्य हमारे कर्त्तव्यों में शामिल हैं
(४) दोनों कार्य रोज किए जाते हैं
४. डायरी लिखना इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि
(१) इससे व्यक्ति का समय अच्छा गुजर जाता है।
(२) इसमें व्यक्ति स्वयं का विश्लेषण करता है और स्व-मूल्यांकन भी करता है।
(३) इससे व्यक्ति पूरे दिन किए गए जमा-खर्च का हिसाब-किताब कर
सकता है।
(४) गाँधीजी इसे महत्त्वपूर्ण मानते हैं।
१६६ ु³ुदु ‘स्ड्डैं्नa ढर्प्Ýेंr ्रस्fस् E्श्च् ढारसस्ड्ड़
ढ्व्न्न् ्fस़् ‘| हब्र्‍्नद व्E र्ळैं
५. गाँधीजी प्रतिदिन डायरी पढ़कर क्या करते थे?
(१) हस्ताक्षर करते थे, ताकि जाँच का प्रमाण दिया जा सके
(२)हस्ताक्षर करते थे, क्योंकि यह नियम था
(३) लोगों को उनकी गलती का अहसास कराते थे
(४) डायरी पर हस्ताक्षर करते थे और यह देखते थे कि व्यक्ति अपने कार्य और
विचार में किस दिशा में जा रहा है
६. ‘प्रतिदिन’ शब्द में कौन-सा समास है?
(१) तत्पुरुष समास (२) द्वन्द्व समास
(३) अव्ययीभाव समास (४) द्विगु समास
७. ‘पढ़ा हुआ कितना पच गया है’ का अर्थ है
(१) पढ़ा हुआ कितना आत्मसात् किया है
(२) कितना सही उच्चारण के साथ पढ़ा है
(३) पढ़े हुए का कितना विश्लेषण किया है
(४) पढ़ा हुआ कितना समझ में आया है
८. ‘कार्य’ शब्द का तद्भव रूप बताइए
(१) काम (२) सेवा (३) कारज (४) काज
९. ‘विचार’ में इक प्रत्यय लगाकर शब्द बनेगा
(१) वैचारिक (२) वैचारीक (३) विचारिक (४) विचौरिक
गद्यांश २२
समस्याओं का हल ढूँढ़ने की क्षमता पर एक अध्ययन किया गया। इसमें
भारत में तीन तरह के बच्चों के बीच तुलना की गई, एक तरफ वे बच्चे जो
दुकानदारी करते हैं स्कूल नहीं जाते, दूसरा समूह, ऐसे बच्चे जो दुकान
सँभालते हैं और स्कूल भी जाते हैं और तीसरा समूह उन बच्चों का था, जो
स्कूल जाते हैं, पर दुकान पर कोई सहायता नहीं करते।
उनसे गणना के व इबारती सवाल पूछे गए। दोनों ही तरह के सवालों में उन
स्कूली बच्चों ने जो दुकानदार नहीं हैं, मौखिक गणना या मनगणित का प्रयोग
बहुत कम किया, बनिस्बत उनके जो दुकानदार थे। स्कूली बच्चों ने ऐसी
गलतियाँ भी कीं, जिनका कारण नहीं समझा जा सका। इससे यह साबित होता
है कि दुकानदारी से जुड़े हुए बच्चे हिसाब लगाने में गलती नहीं कर सकते,
क्योंकि इसका सीधा असर उनके काम पर पड़ता है, जबकि स्कूलों के बच्चे
वही हिसाब लगाने में अक्सर भयंकर गलतियाँ कर देते हैं।
इससे यह स्पष्ट होता है कि जिन बच्चों को रोजमर्रा की जिन्दगी में इस तरह
के सवालों से जूझना पड़ता है, वे अपने लिए जरूरी गणितीय क्षमता हासिल
कर लेते हैं, लेकिन साथ ही इस बात पर भी गौर करना महत्त्वपूर्ण है कि इस
तरह की दक्षताएँ एक स्तर तक और एक कार्य-क्षेत्र तक सीमित होकर रह
जाती हैं। इसलिए वे सामाजिक व सांस्कृतिक परिवेश जोकि ज्ञान को बनाने व
बढ़ाने में सहायता करते हैं, वही उस ज्ञान को संकुचित और सीमित भी कर
सकते हैं। डण्ऊEऊ व्aह २०१२़
१. समस्याओं का हल खोजने पर आधारित अध्ययन किस विषय से जुड़ा
हुआ था?
(१) दुकानदारी (२) सामाजिक विज्ञान
(३) गणित (४) भाषा
२. किन बच्चों ने सवाल हल करने में मौखिक गणना का ज्यादा प्रयोग
किया?
(१) जो दुकानदारी करते हैं
(२) जो केवल स्कूल जाते हैं
(३) जो बच्चे न तो दुकानदारी करते हैं और न ही स्कूल जाते हैं
(४) जो स्कूली बच्चे दुकानदारी नहीं करते
३. अनुच्छेद के आधार पर कहा जा सकता है कि
(१) बच्चों को गणित सीखने के लिए दुकानदारी करनी चाहिए।
(२) बच्चे रोजमर्रा के जीवन में काम आने वाली दक्षताओं को स्वत: ही हासिल कर
लेते हैं।
(३) केवल दुकानदार बच्चे ही गणित सीख सकते हैं।
(४) बच्चों को गणित सीखना चाहिए।
४. दुकानदार बच्चे हिसाब लगाने में प्राय: गलती नहीं करते, क्योंकि
(१) वे जन्म से ही बहुत ही दक्ष हैं।
(२) वे कभी भी गलती नहीं करते।
(३) गलती का असर उनके काम पर पड़ता है।
(४)इससे उन्हें माता-पिता से डाँट पड़ेगी।
५. जो दक्षताएँ हमारे दैनिक जीवन में काम नहीं आतीं, उनमें हमारा
प्रदर्शन अक्सर
(१) अच्छा होता है। (२) खराब-अच्छा होता रहता है।
(३) सन्तोषजनक होता है। (४) खराब होता है।
६. अनुच्छेद के आधार पर बताइए कि सामाजिक व सांस्कृतिक परिवेश
ज्ञान को
(१) संकुचित कर सकता है।
(२) सीमित कर सकता है।
(३) बनाने में सहायता भी करता है और उसे संकुचित, सीमित भी कर सकता है।
(४) बनाने में सहायता करता है।
७. ‘इक’ प्रत्यय का उदाहरण है
(१) संकुचित (२) सांस्कृतिक
(३) चूँकि (४) सीमित
८. ‘मनगणित’ का अर्थ है
(१) मन-ही-मन हिसाब लगाना (२) कठिन गणित
(३) मनगढन्त गणित (४) मनपसन्द गणित
९. संयुक्त क्रिया का उदाहरण है
(१) अध्ययन किया गया (२) दुकान सँभालते हैं
(३) हिसाब लगाते हैं (४) स्कूल जाते हैं
गद्यांश २३
समाज में पाठशालाओं, स्कूलों अथवा शिक्षा की दूसरी दुकानों की कोई कमी
नहीं है। छोटे-से-छोटे बच्चे को माँ-बाप स्कूल भेजने की जल्दी करते हैं।
दो-ढाई साल के बच्चे को भी स्कूल में बिठाकर आ जाने का आग्रह भी हर
घर में बना हुआ है।
इसके विपरीत हर घर की दूसरी सच्चाई यह भी है कि कोई भी माँ-बाप
बालकों के बारे में, बालकों की सही शिक्षा के बारे में और साथ ही सच्चा
एवं अच्छा माता-पिता अथवा अभिभावक होने का शिक्षण कहीं से भी प्राप्त
नहीं करता। माता-पिता बनने से पहले किसी भी नौजवान जोड़े को यह नहीं
सिखाया जाता है कि माँ-बाप बनने का अर्थ क्या है? इससे पहले किसी भी
जोड़े को यह भी नहीं सिखाया जाता कि अच्छे और सच्चे दाम्पत्य की
शुरुआत वैâसे की जानी चाहिए? पति-पत्नी होने का अर्थ क्या है? यह भी
कोई नहीं बताता। परिणाम साफ है कि जीवन शुरू होने से पहले ही घर
टूटने-बिखरने लगते हैं। घर बसाने की शाला न आज तक कहीं खुली है और
न खुलती दिखती है। समाज और सत्ता दोनों या तो इस संकट के प्रति सजग
नहीं हैं या फिर इसे अनदेखा कर रहे हैं। डण्ऊEऊ व्ल्त् २०१३़
१. ‘भी’ शब्द है
(१) क्रिया (२) क्रियाविशेषण
(३) सम्बन्धवाचक (४) निपात
२. ‘इसके विपरीत हर घर की दूसरी सच्चाई यह भी है कि…’ वाक्य के
रेखांकित अंश का समानार्थी शब्द है
(१) सूक्ति (२) वास्तविक
(३) वास्तविकता (४) सद्वचन
Aह्रास १ : AहढR्नन्न् व्छस्श्च १६७
३. घर के टूटने-बिखरने का मुख्य कारण क्या है?
(१) बच्चों के बारे में न जानना (२) माता-पिता बनने का अर्थ न जानना
(३) दाम्पत्य का अर्थ न जानना (४) घर बसाने की जल्दी करना
४. हर घर में किस चीज का आग्रह बना हुआ है?
(१) बच्चों को स्कूल न भेजने का
(२) बहुत छोटे बच्चे को स्कूल में पढ़ाने का
(३) बहुत छोटे बच्चे को दुकान भेजने का
(४) बहुत छोटे बच्चे को स्कूल में बिठाकर आने का
५. लेखक के लिए किसका शिक्षण प्राप्त करना आवश्यक है?
(१) पति-पत्नी बनने का
(२) बच्चों को किसी भी प्रकार की शिक्षा देने का
(३) अच्छे माता-पिता बनने का
(४) छोटे-छोटे बच्चों का उच्च विद्यालयों में प्रवेश दिलाने का
६. माता-पिता को बच्चों की सही शिक्षा के बारे में जानना क्यों
आवश्यक है?
(१) ताकि बच्चों को ज्ञानवान बनाया जा सके
(२) ताकि बच्चों को उच्च डिग्रियाँ प्राप्त करवाई जा सकें
(३) ताकि बच्चे स्वयं प्रवेश लेने योग्य बन सकें
(४) जिससे बेहतर समाज का निर्माण किया जा सके
७. समाज और सत्ता किसके प्रति सजग नहीं हैं?
(१) अभिभावकों के द्वारा शिक्षा प्राप्त न करने के प्रति
(२) ज्ञानवान समाज न बन पाने के घोर संकट के प्रति
(३) घर बसाने की शिक्षा देने वाली शाला खोलने के प्रति
(४) माता-पिता द्वारा बच्चों का पालन-पोषण न करने के प्रति
८. लेखक के अनुसार, सबसे पहले क्या जानना आवश्यक है?
(१) दाम्पत्य की शुरुआत वैâसे की जानी चाहिए?
(२) बच्चों के बारे में
(३) बच्चों की शिक्षा के बारे में
(४) माता-पिता के शिक्षा-स्तर को
९. ‘माता-पिता’ शब्द-युग्म है
(१) सार्थक-निरर्थक (२) सार्थक (३) निरर्थक (४) पुनरुक्त
गद्यांश २४
शिक्षा की बैंकीय अवधारणा (बैंिंकग कॉन्सेप्ट) में ज्ञान एक उपहार होता है,
जो स्वयं को ज्ञानवान समझने वालों के द्वारा उनको दिया जाता है, जिन्हें वे
नितान्त अज्ञानी मानते हैं। दूसरों को परम अज्ञानी बताना उत्पीड़न की
विचारधारा की विशेषता है। वह शिक्षा और ज्ञान को जिज्ञासा की प्रक्रिया नहीं
मानती। शिक्षक अपने छात्रों के समक्ष स्वयं को एक आवश्यक विलोम के
रूप में प्रस्तुत करता है, उन्हें परम अज्ञानी मानकर वह अपने अस्तित्व का
औचित्य सिद्ध करता है। छात्र, हेगेलीय द्वन्द्ववाद में वर्णित दासों की भाँति,
अलगाव के शिकार होने के कारण अपने अज्ञान को शिक्षक के अस्तित्व को
औचित्य सिद्ध करने वाला समझते हैं—लेकिन इस फर्क के साथ कि दास तो
अपनी वास्तविकता को जान लेता है (कि मालिक का अस्तित्व उसके
अस्तित्व पर निर्भर है), लेकिन ये छात्र अपनी इस वास्तविकता को कभी नहीं
जान पाते कि वे भी शिक्षक को शिक्षित करते हैं। डण्ऊEऊ इां २०१४़
१. शिक्षा की बैंकीय अवधारणा शिक्षा को किस रूप में प्रस्तुत करती है?
(१) शिक्षा की प्रक्रिया में केवल परम अज्ञानी शामिल होते हैं।
(२) शिक्षा ज्ञान के लेन-देन की प्रक्रिया है।
(३) शिक्षा में केवल छात्र शिक्षकों को शिक्षित करते हैं।
(४) शिक्षा में उपहारों का लेन-देन होता है।
२. गद्यांश के अनुसार, छात्र अपनी किस वास्तविकता को नहीं जान पाते?
(१) शिक्षक ज्ञानवान है (२) शिक्षा में ज्ञान ही सर्वोपरि है
(३) शिक्षक पूर्णत: शिक्षित नहीं है (४) वे अज्ञानी हैं
३. इस गद्यांश के अनुसार शिक्षा की प्रक्रिया सम्पन्न होने के लिए अनिवार्य
शर्त है
(१) शिक्षक की उपस्थिति (२) शिक्षक का परम ज्ञानवान होना
(३) छात्र का परम अज्ञानी होना (४) छात्रों का सीखने के लिए उत्सुक होना
४. गद्यांश के अनुसार, उत्पीड़न की विचारधारा की विशेषता क्या है?
(१) शिक्षा ज्ञान का उपहार है
(२) शिक्षक ‘श्रेष्ठ’ है और छात्र ‘हीन’ है
(३) आदर्श शिक्षक सदैव उत्पीड़क होता है
(४) परम अज्ञानियों का शोषण अनिवार्य है
५. गद्यांश में …… पर करारा व्यंग्य किया गया है।
(१) ज्ञानवान व्यक्तियों (२) उत्पीड़ितों की दशा
(३) शिक्षितों की दशा (४) शिक्षक और छात्र के मध्य सम्बन्ध
६. ‘जिज्ञासा’ शब्द से बनने वाला विशेषण है
(१) जिज्ञासी (२) जिज्ञासावाला
(३) जिज्ञासु (४) जिज्ञासाशील
७. किस शब्द में दो प्रत्ययों का प्रयोग हुआ है?
(१) वास्तविकता (२) ज्ञानवान
(३) विशेषता (४) विचारधारा
८. प्रस्तुत गद्यांश में ‘नितान्त’ शब्द का अर्थ है
(१) केवल (२) एकांत
(३) बहुत (४) बिल्कुल
९. ………
‘‘उन्हें परम अज्ञानी मानकर वह अपने अस्तित्व का औचित्य
सिद्ध करता है।’’ रेखांकित शब्द की जगह किस शब्द का प्रयोग किया
जा सकता है?
(१) प्रमाणित (२) प्रतिफलित
(३) अन्तर्निहित (४) प्रतिस्थापना
गद्यांश २५
सारा संसार नीले गगन के तले अनन्त काल से रहता आया है। हम थोड़ी दूर
पर ही देखते हैं क्षितिज तक, जहाँ धरती और आकाश हमें मिलते दिखाई देते
हैं। लेकिन जब हम वहाँ पहँुचते हैं, तो यह नजारा आगे खिसकता चला जाता
है और इस नजारे का कोई ओर–छोर हमें नहीं दिखाई देता है। ठीक इसी
तरह हमारा जीवन भी है।
जिन्दगी की न जाने कितनी उपमाएँ दी जा चुकी हैं लेकिन कोई भी उपमा
पूर्ण नहीं मानी गई, क्योंकि जिन्दगी के इतने पक्ष हैं कि कोई भी उपमा उस
पर पूरी तरह फिट नहीं बैठती। बर्नार्ड शॉ जीवन को एक खुली किताब मानते
थे और यह भी मानते थे कि सभी जीवों को समान रूप से जीने का हक है।
वह चाहते थे कि इन्सान अपने स्वार्थ में अन्धा होकर किसी दूसरे जीव के
जीने का हक न मारे। यदि इन्सान ऐसा करता है, तो यह बहुत बड़ा अन्याय
है। हमारे विचार स्वाभाविक रूप से एक-दूसरे से मेल नहीं खाते हैं लेकिन
इसका मतलब यह नहीं होता कि हम दूसरों को उसके जीने के हक से वंचित
कर दें।
यह खुला आसमान, यह प्रकृति और यह पूरा भू-मण्डल हमें दरअसल यही
बता रहा है कि हाथी से लेकर चींटी तक, सभी को समान रूप से जीवन
बिताने का हक है। जिस तरह से खुले आसमान के नीचे हर प्राणी बिना
किसी डर के जीने, साँस लेने का अधिकारी है, उसी तरह से मानव-मात्र का
स्वभाव भी होना चाहिए कि वह अपने जीने के साथ दूसरों से उनके जीने का
हक न छीने। यह आसमान हमें जिस तरह से भय से छुटकारा दिलाता है,
उसी तरह से हमें भी मानव-जाति से इतर जीवों को डर से छुटकारा दिलाकर
उन्हें जीने के लिए पूरा अवसर देना चाहिए। दूसरों के जीने के हक को
छीनने से बड़ा अपराध या पाप कुछ नहीं हो सकता। डण्ऊEऊ इां २०१५़
१६८ ण्ऊEऊ ु³ुदु ‘स्ड्डैं्नa ढर्प्Ýेंr ्रस्fस् E्श्च् ढारसस्ड्ड़
१. ‘क्षितिज’ किसे कहते हैं?
(१) जहाँ धरती और आसमान मिले हुए दिखाई देते हैं
(२) जहाँ धरती और आकाश पास-पास होते हैं
(३) जहाँ तक धरती दिखाई पड़ती है
(४) जहाँ से धरती और आकाश दिखाई पड़ते हैं
२. यदि किसी का ओर-छोर नहीं है, तो
(१) उसके बहुत से सिरे हैं (२) उसका सिरा नहीं मिलता
(३) उसकी सीमा नहीं है (४) उसका विस्तार अधिक है
३. ‘फिट’ और ‘इन्सान’ शब्द है
(१) देशज (२) आगत
(३) तत्सम (४) तद्भव
४. बर्नार्ड शॉ ने जीवन की उपमा किससे दी है?
(१) पढ़ी जा रही पुस्तक से (२) खुली पुस्तक से
(३) सभी जीवों से (४) क्षितिज से
५. हम बहुत बड़ा अन्याय कर रहे होते हैं, यदि
(१) किसी से दुश्मनी रखते हैं
(२) किसी को लूट लेते हैं
(३) किसी को टिकने नहीं देते
(४) किसी को जीने का अधिकार नहीं देते
६. प्रकृति और खुला आसमान बता रहे हैं कि सबको
(१) निडर बने रहना चाहिए (२) मनमर्जी करने का हक है
(३) प्रकृति से प्रेम करना चाहिए (४) जीने का हक है
७. आसमान हमें दिलाता है
(१) रक्षा करने का वचन
(२) साथ-साथ रहने का अनुशासन
(३) भय से छुटकारे का आश्वासन
(४) भयभीत न करने का आग्रह
८. किस शब्द में ‘इक’ प्रत्यय का प्रयोग नहीं किया जा सकता?
(१) भय (२) जीव
(३) स्वभाव (४) प्रकृति
९. ‘अपराध’ शब्द है
(१) भाववाचक संज्ञा (२) पदार्थवाचक संज्ञा
(३) व्यक्तिवाचक संज्ञा (४) जातिवाचक संज्ञा
गद्यांश २६
लघु उद्योग उन उद्योगों को कहा जाता है, जिनके समारम्भ आयोजन के लिए
भारी-भरकम साधनों की आवश्यकता नहीं पड़ती। वे थोड़े-से स्थान पर,
थोड़ी पूँजी और अल्प साधनों से ही आरम्भ किए जा सकते हैं। फिर भी
उनसे सुनियोजित ढंग से अधिकाधिक लाभ प्राप्त करके देश की निर्धनता,
गरीबी और विषमताओं से एक सीमा तक लड़ा जा सकता है। अपने
आकार-प्रकार तथा साधनों की लघुता व अल्पता के कारण ही इस प्रकार के
उद्योग-धन्धों को कुटीर उद्योग भी कहा जाता है। इस प्रकार के उद्योग-धन्धे
अपने घर में भी आरम्भ किए जा सकते हैं और अपने सीमित साधनों का
सदुपयोग कर आर्थिक लाभ कमाया जा सकता है और सुखी-समृद्ध बना जा
सकता है। भारत जैसे देश के लिए तो इस प्रकार के लघु उद्योगों का महत्त्व
और भी बढ़ जाता है, क्योंकि यहाँ युवाओं की एक बहुत बड़ी संख्या
बेरोजगार है। इसी कारण महात्मा गाँधी ने मशीनीकरण का विरोध किया था।
उनकी यह स्पष्ट धारणा थी कि लघु उद्योगों को प्रश्रय देने से लोग
स्वावलम्बी बनेंगे, मजदूर-किसान फसलों की बुआई-कटाई से फुर्सत पाकर
अपने खाली समय का सदुपयोग भी करेंगे। इस प्रकार आर्थिक समृद्धि तो
बढ़ेगी ही, साथ ही लोगों को अपने घर के पास रोजगार मिल सकेगा।
डण्ऊEऊ एाज् २०१६़
१. उन उद्योगों को लघु उद्योग कहा जाता है
(१) जिन्हें निर्धन व्यक्ति आयोजित करते हैं
(२) जिनसे अल्प लाभ मिलता है
(३) जो अल्प अवधि तक चलते हैं
(४) जो कम साधनों से शुरू किए जा सकते हैं
२. ‘मशीनीकरण’ से तात्पर्य है
(१) मशीनों का अधिकाधिक उपयोग (२) मशीनों का अधिकाधिक निर्माण
(३) मशीनों की अधिकाधिक उपलब्धता (४) मशीनों की अधिकाधिक खरीद
३. लघु उद्योगों को प्रश्रय देने के सन्दर्भ में गाँधीजी की क्या धारणा थी?
(१) किसानों को बुआई-कटाई से फुस&त मिल सके
(२) मशीनीकरण का विरोध किया जा सके
(३) लोगों को आथि&क रूप से आत्मनिभ&र बनाया जा सके
(४) समय का सदुपयोग किया जा सके
४. भारत जैसे देश के लिए लघु उद्योग-धन्धों का महत्त्व क्यों बढ़ जाता है?
(१) क्योंकि यहाँ मशीनों की उपलब्धता बहुत कम है
(२) क्योंकि यहाँ के युवा वग& को मशीनों पर काम करना नहीं आता
(३) क्योंकि यहाँ कम पूँजी वाले लोग अधिक संख्या में हैं
(४) क्योंकि यहाँ बहुत-से लोगों को काम की आवश्यकता है
५. ‘विषमता’ का विपरीताथी& शब्द है
(१) सामान्यत: (२) समानता (३) असमानता (४) प्रतिकूलता
६. ‘समृद्ध’ शब्द में भाव है
(१) समथ& होने का (२) रोजगार पाने का
(३) खुशहाल होने का (४) धनी होने का
७. ‘अल्पता’ शब्द है
(१) तत्सम (२) देशज
(३) विदेशी (४) तद्भव
८. कौन-सा शब्द-युग्म शेष से भिन्न है?
(१) भारी-भरकम (२) पशु-पक्षी
(३) माता-पिता (४) दिन-रात
९. गद्यांश के अनुसार ‘प्रश्रय’ शब्द का भाव है
(१) नियुक्ति करना (२) अनुमोदन करना
(३) स्वीकृति देना (४) संरक्षण देना
गद्यांश २७
राष्ट्रीय पवों& और सांस्कृतिक समारोहों के दौरान गीत गाए जाएँ, कविताएँ
सुनी और सुनाई जाएँ, इसे लेकर माता-पिता, स्कूल और समाज में व्यापक
सहमति है, लेकिन गीत-कविताएँ बच्चों के जीवन में रच-बस जाएँ, वे
उनका भरपूर आनन्द लेने लगें, खुद तुकबन्दियाँ करने लगें, रचने लगें, यह
माता-पिता को मंजूर नहीं। माता-पिता को लगता है ऐसा करते हुए तो वे उस
राह से भटक जाएँगे, जिस राह पर वे उन्हें चलाना चाहते हैं। जिस राह से वे
उन्हें अपनी सोची हुई मंजिल पर पहुँचाना चाहते हैं। उनकी इस इच्छा में यह
निहित है कि बच्चे वैसा कुछ भी नहीं करें जो वे करना चाहते हैं, बल्कि वे
वैसा करें जैसा माता-पिता चाहते हैं। उनके भीतर बच्चे के स्वतन्त्रतापूण&
सीखने की प्रक्रिया के प्रति सतत् सन्देह और गहरा डर बना रहता है। यही
हाल स्कूल का भी है। गीत-कविता स्कूल और कक्षाओं की रोजमरा& की
गतिविधि का हिस्सा बन जाएँ यह स्कूल को मंजूर नहीं। स्कूल को लगता है
कि इस सबके लिए समय कहाँ है। यह पाठ्य-पुस्तक से बाहर की गतिविधि
है। शिक्षक और शिक्षा अधिकारी चाहते हैं कि शिक्षक पहले परीक्षा परिणाम
बेहतर लाने के लिए काम करें।
दूसरी ओर हमारी संस्कृति और समाज में गीत-कविता की जो जगहें थीं वे
जगहें लगातार सीमित हुई हैं। गीत गाने, सुनने-सुनाने के अवसर हुआ करते
Aह्रास १ : AहढR्नन्न् व्छस्श्च १६९
थे, वे अवसर ही गीत-कविताओं को गुनगुनाते रह सकने के लिए याद करने
को प्रेरित करते थे। सहेजने और रचने के लिए प्रेरित करते थे। उनमें कुछ
जोड़ने के लिए प्रेरित करते थे। इन सबके लिए अतिरिक्त प्रयासों की जरूरत
नहीं पड़ती थी, वह जीवन-शैली का स्वाभाविक हिस्सा था। बच्चों के लिए
पढ़ाई से अधिक खेलने-कूदने के लिए समय और जगहें थीं। खेलने-कूदने
की मस्ती के दौरान ही उनके बीच से स्वत: ही नए खेलों, तुकबन्दियों और
खेलगीतों और बालगीतों का सृजन भी हो जाया करता था। उनकी ये रचनाएँ
चलने में आ जाया करती थीं, जबान पर चढ़ जाती थीं और सालों-साल
उनकी टोलियों के बीच बनी रहती थीं। समय के साथ उनमें कुछ कमी पाए
जाने पर संशोधित होती रहती थीं। डण्ऊEऊ अम् २०१८़
१. गीत-कविता बच्चों के जीवन में रच-बस जाएँ यह माता-पिता को
पसन्द नहीं है, क्योंकि इससे बच्चे
(१) केवल कविता ही लिखते रहेंगे
(२) पढ़ाई-लिखाई में बहुत पिछड़ सकते हैं
(३) माता-पिता द्वारा तय लक्ष्य को प्राप्त न कर सकेंगे
(४) केवल आनन्द में ही खोए रहेंगे
२. गीत-कविता स्कूलों को भी पसन्द नहीं है, क्योंकि उन्हें लगता है कि
(१) यह सीखना बहुत ही कठिन काम है
(२) स्कूली पढ़ाई-लिखाई से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है
(३) इससे बच्चों का बहुत समय नष्ट होता है
(४) इससे परीक्षा परिणाम देर से आएँगे
३. गीत-कविता के बारे में कौन-सा कथन सही नहीं है?
(१) समाज में इनकी व्यापक सहमति नहीं है
(२) ये संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है
(३) ये जीवन-शैली का स्वाभाविक हिस्सा है
(४) ये भाषा-सृजनात्मकता को पोषित करते हैं
४. शिक्षा-व्यवस्था गीत-कविता को किस दृष्टि से देखती है?
(१) सम्पूरक के रूप में (२) बाधक के रूप में
(३) साधक के रूप में (४) सहयोगी के रूप में
५. अनुच्छेद के आधार पर गीत-कविता के बारे में कौन-सा कथन सही
नहीं है?
(१) बच्चे इनका भरपूर आनन्द लेते हैं
(२) स्कूल और परिवार इनकी महत्ता को समझ नहीं रहे
(३) इनसे बच्चे अपनी राह से भटक जाएँगे
(४) ये बच्चों को शब्दों से खेलने का अवसर देते हैं
६. बच्चों के लिए लक्ष्य कौन निधा&रित करता है?
(१) शिक्षा अधिकारी (२) स्वयं बच्चे
(३) माता-पिता (४) स्कूल
७. ‘कविताएँ सुनी-सुनाई जाएँ’ में क्रिया है
(१) द्विकम&क (२) अकम&क
(३) सकम&क (४) प्रेरणाथ&क
८. ‘सांस्कृतिक’ में प्रत्यय है
(१) क (२) तिक
(३) कृतिक (४) इक
९. ‘मंजूर’ का समानाथी& शब्द है
(१) अच्छा (२) पसन्द
(३) प्रस्ताव (४) स्वीकार
गद्यांश २८
आधुनिक शिक्षा का नतीजा हमने देख लिया। हमने उस शिक्षा का नतीजा भी
देख लिया, जिसमें ‘विकसित विज्ञान’ का सबसे महत्त्वपूण& स्थान है, जिसके
कारण व्यक्ति को कहीं भी या कितना भी मिलने के बावजूद तृप्ति नहीं होती।
इसका कारण यही है कि शिक्षा के स्वाभाविक और आवश्यक अंगों को
छोड़कर हमने ऐसे विषयों पर अधिक ध्यान दिया, जो मनुष्य का एकतरफा
विकास करते हैं, जिनके कारण व्यक्तित्व का बड़े-से-बड़ा भाग अतृप्त रह
जाता है। बाल्यावस्था में भी कला-शिक्षा को अभी तक उचित स्थान नहीं
मिला है। जहाँ मिलता भी है, वहाँ बच्चा ग्यारह-बारह वर्ष का होते ही उसके
शिक्षा-क्रम में से कला-प्रवृत्तियों को निकाल दिया जाता है। ऐसा ही हरबर्ट
रीड ने कहा है
‘‘हमारा अनुभव हमें बताता है कि हर व्यक्ति ग्याहर साल की उम्र के बाद,
किशोर-अवस्था और उसके बाद भी सारे जीवन-काल तक किसी-न-किसी
कला प्रवृत्ति को अपने भाव-प्रकटन का जरिया बनाए रख सकता है। आज
के सभी विषय-जिन पर हम अपनी एकमात्र श्रद्धा करते हैं; जैसे-गणित,
भूगोल, इतिहास, रसायनशास्त्र और यहाँ तक कि साहित्य भी-जिस तरह
पढ़ाए जाते हैं, उन सबकी बुनियाद तार्किक है। इन पर एकमात्र जोर देने के
कारण कला-प्रवृत्तियाँ, जो भावना-प्रधान होती हैं, पाठ्यक्रम से करीब-करीब
निकल जाती हैं। ये प्रवृत्तियाँ केवल पाठ्यक्रम से ही नहीं निकल जाती, बल्कि
इन तार्किक विषयों को महत्त्व देने के कारण व्यक्ति के दिमाग से भी
बिल्कुल निकल जाती हैं। किशोर-अवस्था को इस तरह गलत रास्ते पर ले
जाने का नतीजा भयानक हो रहा है। सभ्यता रोज-ब-रोज बेढव होती जा रही
है। व्यक्ति का गलत विकास हो रहा है। उसका मानस अस्वस्थ है, परिवार
दु:खी है। समाज में फूट पड़ी है और दुनिया पर ध्वंस करने का ज्वर चढ़ा
है। इन भयानक अवस्थाओं को हमारा ज्ञान-विज्ञान सहारा दे रहा है। आज
की तालीम भी इसी दौड़ में साथ दे रही है।’’ डण्ऊEऊ अम् २०१९़
१. अनुच्छेद के आधार पर हमें किस पर सर्वाधिक ध्यान देने की
आवश्यकता है?
(१) विज्ञान पर (२) कला-प्रवृत्ति पर
(३) किशोरावस्था पर (४) बाल्यावस्था पर
२. अनुच्छेद के अनुसार गणित, भूगोल, इतिहास आदि विषय
(१) तर्क प्रधान हैं (२) भाव प्रधान हैं
(३) कला प्रधान हैं (४) बोध प्रधान हैं
३. ज्ञान-विज्ञान को बहुत अधिक महत्त्व देने के कारण
(१) समाज उन्नति कर रहा है (२) समाज में विभाजन हो रहा है
(३) व्यक्ति सृजन की राह पर है (४) व्यक्ति विध्वंस की राह पर नहीं है
४. किशोरावस्था तार्किकता की प्रधानता और भाव के अभाव में ……….
का रास्ता अपना रही है।
(१) पतन (२) ज्ञान
(३) प्रगति (४) कर्म
५. इनमें से कौन-सा शब्द समूह से भिन्न है?
(१) तार्किक (२) स्वाभाविक
(३) साहित्यिक (४) अभिव्यक्ति
६. ‘आज की तालीम भी इसी दौड़ में साथ दे रही है।’ वाक्य में निपात है
(१) आज (२) भी (३) इस (४) में
७. ‘विकसित’ शब्द में प्रत्यय है
(१) सित (२) इत (३) त (४) सत
८. अनुच्छेद के आधार पर कहा जा सकता है कि आधुनिक शिक्षा का
नतीजा
(१) सुखद है (२) दु:खद है
(३) औसत है (४) पता नहीं
९. आधुनिक शिक्षा में किस विषय को सबसे अधिक महत्त्व दिया जाता है?
(१) कला को (२) भाषा को
(३) विज्ञान को (४) इतिहास को
१७० ण्ऊEऊ ु³ुदु ‘स्ड्डैं्नa ढर्प्Ýेंr ्रस्fस् E्श्च् ढारसस्ड्ड़
Aह्रास १ : AहढR्नन्न् व्छस्श्च १७१
गद्यांश २९
यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारा जो व्यवहार होता है, उसी के अनुसार फल
भी मिलता है। जो समाज और संवेदना की नीतिमूलक स्थापनाओं को अपने
व्यवहार का हिस्सा बनाता है, वही शान्ति पाने का हकदार होता है। महावीर,
बुद्ध, क्राइस्ट, नानक, गाँधी अगर हमारे जीवन पर विराजमान हैं तो इसमें उनकी
सदाशयता, निरहंकार और व्यवहार का योगदान है। वे जिए समस्त प्राणियों,
प्रकृति और सृष्टि के लिए। उनके मन में किसी के लिए रत्ती भर भी भेदभाव
नहीं रहा।
अहंकार को विवेक से ही हटाया जा सकता है। गाँधीजी ने गुलामी से आजादी,
मनुष्यता की सेवा और विवेक से मित्रता को अपना लक्ष्य बनाया। सबके प्रति
समान दृष्टि का ही भाव और व्यवहार था कि गाँधी विश्व नेता बने। गीता में
कहा गया है कि जो समस्त प्राणियों के हित में सदा संलग्न रहता है, सबका
मित्र होता है।
महावीर सत्य की साक्षात अनुभूति में मैत्री की अनिवार्यता की घोषणा करते हैं।
यह अनुभूत सत्य है कि जो अपना मित्र होगा, वह हर किसी का मित्र होगा।
आप भी इसे आजमा कर देखें। महसूस होने लगेगा कि जिस शान्ति के लिए
भटक रहे हैं, वह कहीं बाहर नहीं आपके अन्दर ही है। डण्ऊEऊ व्aह २०२१़
१. कौन-सा शब्द भिन्न है?
(१) मित्र (२) वीरता
(३) मित्रता (४) मनुष्यता
२. सही शब्द चुनिए
सबसे प्रति ………… दृष्टि का भाव और व्यवहार होना चाहिए।
(१) भिन्न (२) अलौकिक
(३) सामान्य (४) समान
३. ‘अपना-पराया’ में समास है
(१) द्वन्द्व (२) अव्ययीभाव
(३) द्विगु (४) तत्पुरुष
४. हमें किसके अनुसार फल मिलता है?
(१) बुद्धि (२) वंश
(३) समाज (४) व्यवहार
५. शान्ति को कहाँ पाया जा सकता है?
(१) समाज में (२) धर्म में
(३) स्वयं में (४) परिवार में
६. इनमें से किसे गाँधीजी ने अपना लक्ष्य नहीं बनाया?
(१) विवेक से मित्रता (२) गुलामों से आजादी
(३) गुलामी से आजादी (४) मनुष्यता की सेवा
७. अनुच्छेद के अनुसार, किसे अपने व्यवहार का हिस्सा बनाना चाहिए?
(१) सत्य और असत्य की परिभाषा को
(२) अहंकार और विवेक की परिभाषा को
(३) समाज और संवेदनाओं के नैतिक मूल्य को
(४) गुरु नानक देव की शिक्षाओं को
८. गाँधीजी विश्व-नेता बने, क्योंकि
(१) वे अनुशासन प्रिय थे।
(२) सभी के प्रति उनकी समान दृष्टि व व्यवहार था।
(३) उन्होंने सत्याग्रह किया।
(४) वे स्वतन्त्रता आन्दोलन के नेता थे।
९. महावीर, बुद्ध, क्राइस्ट, नानक व गाँधीजी में क्या समानता है?
(१) सभी भारत में जन्में हैं। (२) सभी ने मानव-कल्याण किया।
(३) सभी धर्मगुरु हैं। (४) सभी संन्यासी हैं।
गद्यांश ३०
हमारी हीनता और श्रेष्ठता का सम्बन्ध देश की हीनता और श्रेष्ठता से जुड़ा
हुआ है। जब हम कोई हीन या बुरा काम करते हैं, तो हमारे माथे पर ही
कलंक का टीका नहीं लगता, बल्कि देश का भी सिर नीचा होता है और
उसकी प्रतिष्ठा गिरती है। जब हम कोई श्रेष्ठ कार्य करते हैं, तो उससे
हमारा ही सिर ऊँचा नहीं होता, बल्कि देश का भी सिर ऊँचा होता है और
उसका गौरव बढ़ता है। इसलिए हमें कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए
जिससे देश की प्रतिष्ठा पर आँच आए।
क्या आप चलती रेलों में, क्लबों में, चौपालों पर और मोटरबसों में कभी
ऐसी चर्चा करते हैं कि हमारे देश में यह नहीं हो रहा, वह नहीं हो रहा है
और यह गड़बड़ है, यह परेशानी है? साथ ही, क्या आप अपने देश की
तुलना किसी और देश से करते हैं कि कौन-सा देश श्रेष्ठ और कौन-सा
देश हीन है? यदि हाँ, तब आप को िंचता होगी कि देश की प्रतिष्ठा को
बनाए रखने के लिए हमें क्या करना चहिए।
क्या आप कभी केला खाकर छिलका रास्ते में फेंकते हैं? अपने घर का
कूड़ा बाहर फेंकते हैं? अपशब्दों का प्रयोग करते हैं? इधर की उधर, उधर
की इधर लगाते हैं? अपने घर, दफ्तर, गली को गन्दा रखते हैं? होटलों,
धर्मशालाओं में या दूसरे ऐसे ही स्थानों में, जीनों में, कोनों में पीक थूकते
हैं? उत्सवों, मेलों, रेलों और खेलों में ठेलम-ठेल करते हैं, निमन्त्रित होने
पर विलम्ब से पहुँचते हैं या वचन देकर भी घर आने वालों को समय पर
नहीं मिलते और इसी तरह शिष्ट व्यवहार के विपरीत आचरण करते हैं।
यदि आपका उत्तर ‘हाँ’ है, तो आप के द्वारा देश के सम्मान को भयंकर
आघात लग रहा है और राष्ट्रीय संस्कृति को गहरी चोट पहुँच रही है।
यदि आपका उत्तर ‘नहीं’ है, तो आपके द्वारा देश का सम्मान बढ़ेगा और
संस्कृति भी सुरक्षित रहेगी। डण्ऊEऊ व्aह २०२२़
१. ‘इधर की उधर लगाने’ का अर्थ है
(१) बातें बताना (२)हेराफेरी करना
(३) चुगली करना (४) आदान-प्रदान करना
२. गद्यांश के अनुसार, असल गड़बड़ है
(१) कमियों को उजागर करना
(२) शिष्ट आचरण करना
(३) दूसरे देशों की जानकारी रखना
(४) केवल िंनदा करना, सही व्यवहार न करना।
३. ‘संस्कृति’ का सन्धि-विच्छेद क्या है?
(१) सस् + कृति (२) सम् + कृति
(३) सं + स्कृति (४) सं + कृति
४. ‘श्रेष्ठता’ से तात्पर्य है
(१) शुद्धता (२) उत्कृष्टता
(३) स्वीकृति (४) सम्मान
५. ‘देश का सम्मान’ बढ़ने से क्या आशय है?
(१) शिष्ट व्यवहार (२) संस्कृति की सुरक्षा
(३)ईमानदारी (४) अच्छे दिन की शुरुआत
६. शिष्ट व्यवहार का उदाहरण है
(१) वचन न निभाना (२) अपशब्दों का प्रयोग करना
(३) कूड़ा बाहर फेंकना (४) समय का पाबंद होना
७. प्रत्यय की दृष्टि से भिन्न शब्द की पहचान अंकित कीजिए।
(१) मधुरता (२) प्रभुता
(३)हीनता (४)राष्ट्रीय
८. हमारी हीनता और श्रेष्ठता का सम्बन्ध किससे जुड़ा है?
(१) देश की हीनता और श्रेष्ठता से
(२) कोई हीन या बुरा काम करने से
(३) शिष्ट व्यवहार के विपरीत आचरण से
(४) देश की प्रतिष्ठा से
९. लेखक की दृष्टि में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है
(१) देश की श्रेष्ठता एवं प्रतिष्ठा
(२) अपने देश की दूसरे देश से तुलना करना
(३) शिष्ट व्यवहार की अनदेखी करना
(४)राष्ट्रीय संस्कृति की उपेक्षा करना

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