अपठित पद्यांश |
fनर्देश (पद्यांश १-३५) दिए गए पद्यांशों को ध्यान से पढ़िए और उसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के यथोचित उत्तर दीजिए।
पद्यांश १
है जन्म लेते जगह में एक ही
एक ही पौधा उन्हें है पालता
रात में उन पर चमकता चाँद भी
एक ही-सी चाँदनी है डालता
छेद कर काँटा किसी की अँगुलियाँ
फाड़ देता है किसी का वर वसन।
प्यार डूबी तितलियों के पर कतर
भौंर का है बेध देता श्याम तन
फूल लेकर तितलियों को गोद में
भौंर को अपना अनूठा रस पिला
निज सुगन्धों का निराले ढंग से
है सदा देता कली का जी खिला।
है खटकता एक सबकी आँख में
दूसरा है सोहता सुर-सीस पर।
किस तरह कुल की बड़ाई काम दे
जो किसी में हो बड़प्पन की कसर।
Aäास्ु र्ळैं
१. कवि ने ‘काँटे’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया है?
(१) सज्जन पुरुष (२) मित्र
(३) दुर्जन पुरुष (४) शत्रु
२. ‘फूल’ किसे कहा गया है?
(१) सज्जन पुरुष (२) मित्र
(३) दुर्जन पुरुष (४) शत्रु
३. पद्यांश में किसे महत्त्व दिया गया है?
(१) कुल गोत्र (२) चरित्र एवं स्वभाव
(३) चरित्र (४) स्वभाव
४. ‘बड़प्पन’ शब्द का आशय है
(१) बड़े होने का भाव (२) ऊँचे होने का भाव
(३) अमीर होने का भाव (४) महान् व श्रेष्ठ होने का भाव
५. पद्यांश का उचित शीर्षक होगा
(१) फूल का जीवन (२) काँटों का जीवन
(३) फूल और काँटे (४) फूल और जीवन
६. ‘बड़ाई’ में प्रयुक्त प्रत्यय है
(१) ई (२) डाई
(३) इ (४) आई
पद्यांश २
सुनता हूँ मैंने भी देखा,
काले बादल में हँसती चाँदी की रेखा।
काले बादल जाति-द्वेष के,
काले बादल विश्व-क्लेश के,
काले बादल उठते पथ पर
नवस्वतन्त्रता के प्रवेश के!
सुनता आया हूँ , है देखा
काले बादल में हँसती चाँदी की रेखा। चाँदी की रेखा, सुमित्रानन्दन पन्त
१. ‘‘काले बादल में रहती चाँदी की रेखा।’’ पंक्ति का भाव है
(१) बादलों के टकराने से बिजली चमकती है
(२) अँधेरे के बाद प्रकाश आता है
(३) काले बादलों में चाँदी की रेखा रहती है
(४) विपत्तियों के बीच आशा की किरण दिखाई देती है
२. ‘काले बादल’ प्रतीक है ….. के।
(१) मानसून द्वारा आने वाली खुशहाली (२) तूफान
(३) गर्मी से मुक्ति (४) जातिगत वैमनस्य
३. ‘काले बादल में रहती चाँदी की रेखा’ में कौन-सा अलंकार है?
(१) उत्प्रेक्षा अलंकार (२) श्लेष अलंकार
(३) उपमा अलंकार (४) रूपक अलंकार
४. निम्न में से ‘बादल’ का पर्यायवाची शब्द नहीं है
(१) घन (२) पयोधर
(३) जलज (४) जलद
५. ‘स्वतन्त्रता’ का विलोम शब्द है
(१) परतन्त्रता (२) पराधीनता
(३) परतन्त्र (४) गुलाम
६. कवि क्या सुनने और देखने की बात कहता है?
(१) आशा की किरण को (२) निराशा को
(३) बादलों को (४) बिजली को
पद्यांश ३
वह आता
दो टूक कलेजे के करता पछताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक
चल रहा लकुटिया टेक
मुठ्टी भर दाने को … भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का पैâलाता
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ पैâलाए
बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते
और दाहिना दया-दृष्टि पाने की ओर बढ़ाए।
भूख से सूख ओंठ जब जाते
दाता-भाग्य-विधाता से क्या पाते?
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए।
१. इस पद्यांश का शीर्षक होगा
(१) गरीबी (२) विषमता
(३) भिक्षुक (४) बेबसी
२. पद्यांश में किस पर व्यंग्य किया गया है?
(१) सामाजिक विषमता पर (२) आर्थिक न्याय पर
(३) राजनीतिक सत्य पर (४) मध्यवर्गीय जीवन पर
३. भिखारी की इच्छा है
(१) सोना पाने की (२) पैसा पाने की (३) अनाज पाने की (४) कपड़ा पाने की
४. बच्चे भिखारी के साथ क्यों हैं?
(१) घूमने के लिए (२) भीख माँगने के लिए
(३) रास्ता ढूँढने के लिए (४) पिता के साथ के लिए
५. भिखारी के बच्चों से कुत्ते क्यों होड़ करते हैं?
(१) जूठी पत्तल छीनने के लिए (२) चिढ़ाने के लिए
(३) लड़ने के लिए (४) भगाने के लिए
६. ‘झपट’ शब्द का समानार्थी है
(१) झाड़ना (२) छीनना
(३) फेंकना (४) इनमें से कोई नहीं
पद्यांश ४
जब नहीं था
इन्सान
धरती पर थे जंगल
जंगली जानवर, परिन्दे
इन्हीं सबके बीच उतरा
इन्सान
और घटने लगे जंगल
जंगली जानवर, परिन्दे
Aह्रास २ : AहढR्नन्न् हछस्श्च १७५
इन्सान
बढ़ने लगा बेतहाशा
अब कहाँ जाते जंगल,
जंगली जानवर, परिन्दे
प्रकृति किसी के साथ
नहीं करती नाइन्साफी
सभी के लिए बनाती है जगह
सो अब
इन्सानों के भीतर उतरने लगे हैं
जंगल, जंगली जानवर
और परिन्दे।
१. धरती पर इन्सान के आने के बाद क्या हुआ?
(१) जंगल घटने लगे
(२) जानवर घटने लगे
(३) पक्षी घटने लगे
(४) उपरोक्त सभी
२. ‘इन्सान बढ़ने लगा बेतहाशा’ का भाव है
(१) इन्सान खूब तरक्की करने लगा
(२) इन्सान खूब तेज भागने लगा
(३) इन्सान खूब बड़ा होने लगा
(४) इन्सान अपने पैरों पर चलने लगा
३. प्रकृति किसके प्रति नाइन्साफी नहीं करती?
(१) जंगल के प्रति (२) पशु-पक्षियों के प्रति
(३) इन्सानों के प्रति (४) ये सभी
४. कविता के अन्त में क्या व्यंग्य किया गया है?
(१) प्रकृति ने इन्सानों के प्रति नाइन्साफी की
(२) इन्सानों में अब इन्सानियत समाप्त हो गई है
(३) इन्सानों के भीतर जंगल की तरह पेड़ उग आए हैं
(४) इन्सानों ने जंगल उगाना शुरू कर दिया है
५. ‘अब कहाँ जाते जंगल’ का भाव है कि
(१) अब जंगल कहीं जाने लायक नहीं रहे
(२) अब जंगल खूब बढ़ने लगे
(३) अब जंगल समाप्त होने लगे
(४) अब जंगलों में परिन्दे नहीं रहते
६. ‘जंगल’ का पया&यवाची नहीं है
(१) बगीचा (२) वन (३) कानन (४) अरण्य
पद्यांश ५
रवि जग में शोभा सरसाता, सोम सुधा बरसाता ।
सब हैं लगे कम& में, कोई निष्क्रिय दृष्टि न आता ।
है उद्देश्य नितान्त तुच्छ तृण के भी लघु जीवन का ।
उसी पूर्ति में वह करता है अन्त कम&मय तन का ।।
तुम मनुष्य हो, अमित बुद्धि-बल-विलसित जन्म तुम्हारा।
क्या उद्देश्य रहित हो जग में, तुमने कभी विचारा?
बुरा न मानो एक बार सोचो तुम अपने मन में
क्या कत्त&व्य समाप्त कर लिया तुमने निज जीवन में?
जिस पर गिरकर उदर-दरी से तुमने जन्म लिया है,
जिसका खाकर अन्न सुधासम नीर, समीर पिया है
वही स्नेह की मूर्ति दयामयि माता तुल्य मही है
उसके प्रति कत्त&व्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नही है?
१. यह कविता क्या प्रेरणा देती है?
(१) देश-प्रेम (२) निरन्तर कम&
(३) निरन्तर गति (४) सोच-विचार
२. ‘सोम’ शब्द का पया&यवाची है
(१) शराब (२) शहद
(३) अमृत (४) चन्द्रमा
३. ‘निष्क्रिय’ शब्द का विपरीताथ&क लिखिए
(१) अक्रिय (२) सक्रिय
(३) क्रियान्वयन (४) क्रियान्वित
४. कवि को निरन्तर कम& करने की प्रेरणा कौन देता है?
(१) रवि (२) चन्द्रमा
(३) तृण (४) प्रकृति
५. ‘है उद्देश्य नितान्त तुच्छ तृण के भी लघु जीवन का’ पंक्ति का आशय है
(१) प्रत्येक व्यक्ति का महत्त्व है
(२) अमीर व्यक्तियों का महत्त्व है
(३) जीवन लक्ष्यहीन होता है
(४) केवल सभ्य व्यक्तियों का महत्त्व होता है
६. निष्क्रिय में प्रयुक्त उपसग& है
(१) नि (२) निस् (३) निति (४)इय
पद्यांश ६
हारा हूँ सौ बार
गुनाहों से लड़लड़कर
लेकिन बारम्बार लड़ा हूँ
मैं उठ-उठ कर
इससे मेरा हर गुनाह भी मुझसे हारा
मैंने अपने जीवन को इस तरह उबारा
डूबा हूँ हर रोज
किनारे तक आ-आकर
लेकिन मैं हर रोज उगा हूँ जैसे दिनकर
इससे मेरी असफलता भी मुझसे हारी
मैंने अपनी सुन्दरता इस तरह सँवारी।
१. कवि ने अपनी असफलताओं पर विजय वैâसे पाई है?
(१) संघष& न करके (२) निरन्तर संघष& करके
(३) सुन्दर बनकर (४) गुनाहों से लड़कर
२. ‘किनारे तक आकर डूबने’ का अथ& है
(१) काम तमाम होना
(२) प्रयत्न व्यथ& जाना
(३) सफलता के समीप होकर भी सफल न होना
(४) हार जाना
३. कवि सूय& का उदाहरण देकर क्या बताना चाहते हैं?
(१) हार के बाद फिर संघष& करना
(२) संसार में सुखों का प्रकाश पैâलाना
(३) क्रोध में आकर आग बरसाना
(४) उपरोक्त सभी
१७६ ण्ऊEऊ ु³ुदु ‘स्ड्डैं्नa ढप्Ýें&r ्रस्fस् E्श्च् ढारसस्ड्ड़
४. कवि ने अपना जीवन वैâसे सँवारा?
(१) जीत कर
(२) खुश रहकर
(३) सूय& की तरह चमक कर
(४) हार न मान कर निरन्तर संघष& करके
५. ‘उठ-उठ’ में अलंकार है
(१) अनुप्रास (२) पुनरुक्तिप्रकाश
(३) उपमा (४) रूपक
६. ‘असफलता’ में प्रयुक्त उपसग& है
(१) ता (२) अस
(३) लता (४) अ
पद्यांश ७
आँसू से भाग्य पसीजा, हे मित्र, कहाँ इस जग में।
नित यहाँ शक्ति के आगे, दीपक जलते मग-मग में।
कुछ तनिक ध्यान से सोचो, धरती किसकी हो पाई?
बोलो युग-युग तक किसने, किसकी विरुदावलि गाई?
मधुमास मधुर रुचिकर है, पर पतझर भी आता है
जग रंगमंच का अभिनय, जो आता सो जाता है।
सचमुच वह ही जीवित है, जिसमें कुछ बल-विक्रम है
पल-पल घुड़दौड़ यहाँ है, बल-पौरुष का संगम है।
दुब&ल को सहज मिटाकर, चुपचाप समय खा जाता
वीरों के ही गीतों को, इतिहास सदा दोहराता।
फिर क्या विषाद, भय, चिन्ता जो होगा सब सह लेंगे
परिवत&न की लहरों में, जैसे होगा बह लेंगे।
१. ‘‘आँसू से भाग्य पसीजा, हे मित्र, कहाँ इस जग में।’’ से क्या आशय है?
(१) रोने-धोने से कुछ नहीं होता
(२) रोने-धोने से लोग पसीज जाते हैं
(३) रोने-धोने से भाग्य नहीं बनता
(४) रोने-धोने से भाग्य भी रोता है
२. उपरोक्त पद्यांश में लोग किसकी आराधना करते हैं?
(१) समथ& लोगों की
(२) करुणावान लोगों की
(३) दुब&लों की
(४) दीन-दुखियों की
३. ‘‘पल-पल घुड़दौड़ यहाँ है’’ का आशय है
(१) हर पल बल-पौरुष की होड़ है
(२) यहाँ सदा नीचा दिखाने की होड़ है
(३) यहाँ हमेशा घोड़ों की दौड़ चलती है
(४) यहाँ हमेशा भागदौड़ मची रहती है
४. उपरोक्त कविता क्या प्रेरणा देती है?
(१) वीर बनो (२) गतिशील बनो
(३) करुणावान बनो (४) चिन्तनशील बनो
५. ‘विषाद’ शब्द का पया&यवाची लिखिए
(१) निराशा (२) पराजय
(३) दु:ख (४) नीरवता
६. मधुमास किस ऋतु को कहा जाता है?
(१) ग्रीष्म ऋतु (२) शीत ऋतु
(३) बसन्त ऋतु (४) वषा& ऋतु
पद्यांश ८
अन्धकार की गुहा सरीखी उन आँखों से डरता है मन
भरा दूर तक उनमें दारुण दैन्य दु:ख का नीरव रोदन।
वह स्वाधीन किसान रहा, अभिमान भरा आँखों में इसका
छोड़ उसे मँझधार आज संसार कगार सदृश बह खिसका।
लहराते वे खेत दृगों में हुआ बेदखल वह अब जिन से
हँसती थी उसके जीवन की हरियाली जिनके तृन-तृन से।
आँखों ही में घूमा करता वह उसकी आँखों का तारा
कारकुनों की लाठी से जो गया जवानी ही में मारा।
बिना दवादप&न के घरनी स्वरग चली-आँखें आती भर
देख-रेख के बिना दुधमुँही बिटिया दो दिन बाद गई मर।
१. कवि का मन जिन आँखों से डरता है वे वैâसी हैं?
(१) डरावनी आँखें
(२) अन्धकार-सी काली
(३) अन्धकार की गुफा-सी
(४) अन्धकार-सी दारुण
२. जिन आँखों का वण&न कवि ने किया है वे किसकी आँखें हैं?
(१) किसान की (२) अन्धकार की
(३) नीरव रोदन की (४) स्वाधीन भारत की
३. किसान की आँखों में अब भी क्या लहराता है?
(१) दैन्य-दु:ख का दारुण रोदन
(२) अपने खेत जिनसे वो बेदखल किया गया
(३) स्वाधीनता का अभिमान
(४) वह संसार जो कगार सदृश खिसक गया
४. इस पद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखिए
(१) किसान की पीड़ा
(२) दारुण दु:ख
(३) वे आँखें
(४) जीवन का अन्धकार
५. किसान के बेटे की मृत्यु वैâसे हुई?
(१) कारकुनों द्वारा लाठियों से पीटने के कारण
(२) देख-रेख के अभाव के कारण
(३) दवा-दर्पन के अभाव के कारण
(४) भूख के कारण
६. ‘अँधेरा’ शब्द का पर्यायवाची है
(१) तिमिर (२) तरु
(३) विटप (४) इनमें से कोई नहीं
पद्यांश ९
चींटियाँ ईर्ष्यालु नहीं होतीं
दौड़ती-भागती
एक-दूसरे को सन्देश पहुँचातीं
जीवन को परखती पहुँचती हैं वहाँ
जहाँ कोई नहीं पहुँचा कभी चींटियों से पहले।
संकेतों में करती हैं वे शब्द सन्धान
रास्ता नहीं भूलतीं कभी स्मृति में रखती हैं संजोकर
दोस्त और दुश्मन के चेहरे
Aह्रास २ : AहढR्नन्न् हछस्श्च १७७
बिखरती हैं कभी-कभार वे मगर हर बार
नए सिरे से टटोलती हैं वे पूर्वजों द्वारा छोड़ी गई गन्ध
फिर से एकजुट होते हुए। डण्ऊEऊ इां २०१५़
१. चींटियाँ आपस में बातचीत वैâसे करती हैं?
(१) छूकर (२) बोलकर
(३) सन्देशों से (४) संकेतों से
२. ‘ईर्ष्यालु’ किसे कहा जाता है?
(१) दूसरों से जलने वाला (२) सबसे घृणा करने वाला
(३) पाने की इच्छा करने वाला (४) कुछ भी न चाहने वाला
३. चींटियों के स्वभाव में नहीं है
(१) ईर्ष्या करना (२) सन्देश पहुँचाना
(३) दौड़-भाग करना (४) जीवन को परखना
४. बिखरी हुई चींटियाँ फिर से एकजुट वैâसे होती हैं?
(१) पूर्वजों की गन्ध से (२)रास्ता टटोलने से
(३) मित्रों के सहयोग से (४) शत्रुओं की चुनौती से
५. मित्र और शत्रु के चेहरों को चींटियाँ
(१) पहचानती नहीं हैं (२) बिखेर देती हैं
(३) भूल जाती हैं (४) याद रखती हैं
६. पद्यांश में ‘मगर’ का अर्थ है
(१) केवल (२) परन्तु (३) मगरमच्छ (४) घड़ियाल
पद्यांश १०
कहते आते थे यही सभी नरदेही
‘माता न कुमाता, पुत्र-कुपुत्र भले ही।’
अब कहें सभी यह हाय! विरुद्ध विधाता
‘है पुत्र-पुत्र ही, रहे कुमाता माता।’
बस मैंने इसका बाह्य मात्र ही देखा
दृढ़ हृदय न देखा, मृदुल गात्र ही देखा।
परमार्थ न देखा, पूर्ण स्वार्थ ही साधा
इस कारण ही तो हाय आज यह बाधा।
युग-युग तक चलती रहे कठोर कहानी
‘रघुकुल में भी थी एक अभागिन रानी।’
निज जन्म-जन्म में सुने जीव यह मेरा
‘धिक्कार! उसे था महा स्वार्थ ने घेरा।’
‘‘सौ बार धन्य वह एक लाल की माई
जिस जननी ने है जना भरत-सा भाई।’’
पागल-सी प्रभु के साथ सभा चिल्लाई
‘‘सौ बार धन्य वह एक लाल की माई।’’
१. अभागिन किसे कहा गया है?
(१) कौशल्या (२) सुमित्रा
(३) वैâकेयी (४) मन्थरा
२. रानी को किसने आकर घेरा?
(१) परमार्थ ने (२) महास्वार्थ ने (३) अध्यात्म ने (४) नि:स्वार्थ ने
३. रानी का कौन-सा भाव प्रकट हो रहा है?
(१) पश्चात्ताप का (२) खिन्नता का
(३) प्रसन्नता का (४) दुष्टता का
४. ‘सौ बार धन्य वह एक लाल की माई’ किसने कहा?
(१) लक्ष्मण ने (२) भरत ने
(३) शत्रुघ्न ने (४) राम ने
५. प्रभु के साथ चिल्लाए
(१) वैâकेयी (२) सभा में उपस्थित लोग
(३) भरत (२) विश्वामित्र
६. ‘स्वार्थ’ से बनने वाला विशेषण है
(१) स्व (२) अर्थहीन
(३) अस्वार्थ (४) स्वार्थी
पद्यांश ११
जीवन के इस मोड़ पर, कुछ भी कहा जाता नहीं।
अधरों की ड्योढ़ी पर, शब्दों के पहरे हैं।
हँसने को हँसते हैं, जीने को जीते हैं
साधन-सुभीतों में, ज्यादा ही रीते हैं।
बाहर से हरे-भरे, भीतर घाव मरार गहरे
सबके लिए गूँगे हैं, अपने लिए बहरे हैं।
१. ‘कुछ भी कहा जाता नहीं’—ऐसा क्यों?
(१) साधन-सुविधाओं के अभाव के कारण
(२) बन्धन और बेबसी के कारण
(३) गूँगा होने के कारण
(४) भीतर के घावों के कारण
२. कविता की पंक्तियों में मुख्यत: बात की गई है
(१) कुछ भी न कह पाने की विवशता की (२) घावों के हरे-भरे होने की
(३) गूँगा-बहरा होने की (४) साधन-सुभीतों की
३. ‘रीते’ शब्द से भाव है
(१) अपनेपन का (२) परायेपन का
(३) खालीपन का (४) खोखलेपन का
४. कविता की पंक्तियों के आधार पर कहा जा सकता है कि
(१) कवि कुछ भी कहने या सुन पाने की स्थिति में नहीं है
(२) कवि घावों के गहरे होने से दु:खी है
(३) कवि के जीवन में बहुत अभाव है
(४) कवि कुछ भी करने की स्थिति में नहीं है
५. ‘ड्योढ़ी’ का अर्थ है
(१) घर (२) देहरी
(३) दरवाजा (४) चौखट
६. ‘भीतर के घाव’ से तात्पर्य है
(१) शारीरिक क्षति (२) घर के भीतर की अशान्ति
(३) हृदय की पीड़ा (४) अन्दरूनी चोट
पद्यांश १२
मौको कहाँ ढूँढ़ें रे बँदे,
मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे वैâलास में।
ना तो कौनो – क्रिया-करम में, नािंह जोग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पल भर की तलास में।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में।
१. ‘कौनों’ का अर्थ है
(१) किसी भी (२) कोई भी
(३) कभी भी (४) कहीं भी
१७८ ण्ऊEऊ ु³ुदु ‘स्ड्डैं्नa ढर्प्Ýेंr ्रस्fस् E्श्च् ढारसस्ड्ड़
२. ‘ढूँढ़े’ शब्द है
(१) क्रिया-विशेषण (२) क्रिया (३) संज्ञा (४) विशेषण
३. कवि के अनुसार ईश्वर को धार्मिक स्थलों में नहीं पाया जा सकता है,
क्योंकि वह निवास करता है
(१) प्रत्येक प्राणी में (२) कर्मकांडों में
(३) तीर्थस्थलों में (४) योग-वैराग्य में
४. ‘मैं तो मेरे पास में’ रेखांकित शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
(१) मनुष्य (२) स्वयं कवि
(३) धार्मिक स्थल (४)ईश्वर
५. कवि के अनुसार ईश्वर तुरंत किसे मिल सकता है?
(१) प्रत्येक विद्वान को (२) सज्जन लोगों को
(३) समर्पित भक्त को (४) मोह-माया त्यागने वाले को
६. ‘सब स्वाँसों की स्वाँस में’ का आशय है
(१)ईश्वर सर्वव्यापी है (२) सबको श्वास लेते रहना चाहिए
(३)ईश्वर श्वास में निवास करता है (४)ईश्वर तीर्थाटन से मिलता है
पद्यांश १३
आम की थी डाल हरियल, मैं मगनमन झूमता था
कई पल्लव और भी थे, उन्हें जी भर चूमता था।
देख मेरा हरा यौवन मुस्कुराती नित्य डाली
गीत से मन जीत लेते कभी कोयल, कभी माली
बाग बस्ती में अचानक हुआ मेरा रंग पीला
खिलखिलाना बन्द, बजना बन्द, यह तन पड़ा ढीला।
हवा ने ऐसा हिलाया डाल का भी साथ छूटा
रह गया परिवार पीछे, एक पल्लव हाय! टूटा।।
जब हवा की गोद में कुछ दूर बगिया से बहा
देवता हो तुम पवन मेरी सुनो मैंने कहा।
जन्मभूमि बाग मेरी मूल माँ के चरण चूमूँ
खाद बनकर करूँ सेवा फिर किसी डाली पै झूमूँ।
पवन की करुणा-कृपा से बाग में उड़ लौट आया
वृक्ष के चरणों में पल्लव खाद बनकर मुस्कुराया।
१. ‘आम की हरियल डाली’ किसकी प्रतीक है?
(१) हरे-भरे वातावरण की (२) प्रकृति की
(३) वनस्पति की (४) भरे-पूरे खुशहाल जीवन की
२. ‘मैं’ किसका प्रतीक है?
(१) भारत का (२) व्यक्ति का
(३) पत्ते का (४) फूल का
३. ‘रह गया परिवार पीछे’ में परिवार किसे कहा गया है?
(१) पत्ते को (२) डालियों को
(३) पक्षी को (४) पक्षी, पेड़, डाली आदि को
४. बिछड़े पत्ते की चाह क्या थी?
(१) अपनी डाल पर फिर से लहराने की (२) खाद बन जाने की
(३) किसी प्रकार वृक्ष का साथ पाने की (४) समर्पण की
५. ‘यौवन’ शब्द का विलोम लिखिए
(१) बचपन (२) बुढ़ापा
(४) प्रौढ़ता (४) बाल्यकाल
६. ‘हरियल’ शब्द का अर्थ है
(१) हरि (२) तोता
(३) हरी (४) हारना
पद्यांश १४
साक्षी है इतिहास, हमीं पहले जागे हैं
जाग्रत सब हो रहे हमारे ही आगे हैं।
शत्रु हमारे कहाँ नहीं भय से भागे हैं?
कायरता से कहाँ प्राण हमने त्यागे हैं।
हैं हमीं प्रकम्पित कर चुके, सुरपति तक का भी हृदय।
फिर एक बार हे विश्व!
तुम, गाओ भारत की विजय।।
कहाँ प्रकाशित नहीं रहा है तेज हमारा
दलित कर चुके शत्रु सदा हम पैरों द्वारा।
बताओ तुम कौन नहीं जो हमसे हारा
पर शरणागत हुआ कहाँ, कब हमें न प्यारा।
बस युद्ध-मात्र को छोड़कर, कहाँ नहीं हैं हम सदय।
फिर एक बार हे विश्व! तुम गाओ भारत की विजय।
१. ‘पहले जागे हैं’ का भाव है
(१) हम सोकर उठे हैं (२) हमने कार्य पूर्ण किया है
(३) हमने विजय पाई है (४) हमने सर्वप्रथम ज्ञान पाया है
२. ‘हैं हमीं प्रकम्पित कर चुके, सुरपति तक का हृदय’ से हमारी किस
विशेषता का बोध होता है?
(१) वीरता, साहस (२) युद्ध-कौशल
(३) हार कर जीतना (४) ये सभी
३. हमारी दयालुता प्रकट होती है
(१) शत्रु को दलित करना
(२) शरणागत को आश्रय देना
(३) अपना तेज दिखाकर
(४) विश्व में जय-जयकार करवाकर
४. ‘हमारे आगे सबके जाग्रत होने’ का भाव है
(१) हमारे पश्चात् ज्ञानी होना (२) हमारे बाद सोकर उठना
(३) हमारे पीछे चलना (४) हमारे सामने झुकना
५. कवि किसे भारत की जय-जयकार करने को कह रहा है?
(१) भारतवासियों को (२) शत्रुओं को
(३) विश्व को (४) सेना को
६. ‘शत्रु’ शब्द का विपरीतार्थक है
(१) सखी (२) भाई
(३) पिता (४) मित्र
पद्यांश १५
तुम भारत, हम भारतीय हैं, तुम माता, हम बेटे
किसकी हिम्मत है कि तुम्हें दुष्टता-दृष्टि से देखे?
ओ माता, तुम एक अरब से अधिक भुजाओं वाली
सबकी रक्षा में तुम सक्षम, हो अदम्य बलशाली।।
भाषा, वेश, प्रदेश भिन्न हैं, फिर भी भाई-भाई
भारत की साझी
संस्कृति में पलते भारतवासी।
सुदिनों में हम एकसाथ हँसते, गाते, सोते हैं
दुर्दिन में भी साथ-साथ जगते पौरुष ढोते हैं।।
Aह्रास २ : AहढR्नन्न् हछस्श्च १७९
तुम हो शस्यश्यामला, खेतों में तुम लहराती हो प्रकृति प्राणमयि,
सामगानमयि, तुम न किसे भाती हो।
तुम न अगर होती तो धरती, वसुधा क्यों कहलाती?
गंगा कहाँ बहा करती, गीता क्यों गाई जाती?
१. इस कविता में किसे माता कहा गया है?
(१) अपनी माँ को (२) भारत को
(३) गऊ माता को (४) धरती को
२. भारत माँ की एक अरब से अधिक भुजाएँ क्यों बताई गई हैं?
(१) अत्यधिक जनसंख्या बताने हेतु
(२) एक अरब से अधिक नर बताने हेतु
(३) भारत के सपूतों की संख्या बताने हेतु
(४) एक अरब से अधिक सैनिक बताने हेतु
३. ‘सक्षम’ शब्द का पर्यायवाची है
(१) अक्षम (२) समर्थ
(३) योग्य (४) असमर्थ
४. ‘अदम्य’ का तात्पर्य है
(१) दब्बू (२) अत्यधिक
(३) जिसे दबाया न जा सके (४) जिसे रोका न जा सके
५. ‘साझी संस्कृति’ का तात्पर्य है
(१) भिन्न-भिन्न धर्मों वाली संस्कृति (२) भिन्न भाषाओं वाली संस्कृति
(३) भिन्न-भिन्न जातियों वाली संस्कृति (४) ये सभी
६. भारतवासी, बलशाली तथा दुष्टता, इन तीनों शब्दों में यह समानता है कि
(१) तीनों में उपसर्ग प्रयुक्त हुआ है (२) तीनों में प्रत्यय प्रयुक्त हुआ है
(३) एक-दूसरे के विपरीतार्थक हैं (४) तीनों पर्यायवाची शब्द है
पद्यांश १६
साकार, दिव्य गौरव विराट!
पौरुष के पुँजीभूत ज्वाल!
मेरी जननी के हिमकिरीट!
मेरे भारत के दिव्य भाल!
मेरे नगपति! मेरे विशाल!
युग-युग अजेय, निर्बन्ध, मुक्त,
युग-युग गर्वोन्नत नित महान,
निस्सीम व्योम में तान रहे,
युग से किस महिमा का वितान?
वैâसी अखण्ड यह चिर समाधि?
यतिवर! वैâसा यह अमर ध्यान?
तू महाशून्य में खोजर हा
किस जटिल समस्या का निदान?
उलझन का वैâसा विषम-जाल
मेरे नगपति! मेरे विशाल!
१. ‘हिमकिरीट’ का आशय है
(१) ठण्डा मुकुट (२) बर्फ का मुकुट
(३) चाँदी का मुकुट (४) स्वर्णिम मुकुट
२. ‘नगपति’ का विग्रह और समास होगा
(१)रत्नों (नग) का पति-तत्पुरुष
(२) नगों (पर्वतों) का पति है जो-कर्मधारय
(३) नगों (पर्वतों) का पति-तत्पुरुष
(४) नगों का पति है जो, ऐसा-बहुव्रीहि
३. किस पंक्ति में कहा गया है कि हिमालय शक्ति की ज्वालाओं का ढेर है?
(१) युग-युग अजेय, निर्बन्ध, मुक्त
(२) मेरे भारत के दिव्य भाल
(३) पौरुष के पुँजीभूत ज्वाल
(४) साकार, दिव्य गौरव विराट
४. ‘जिसे जीता न जा सके’ उसके लिए कविता में कौन-सा शब्द प्रयुक्त
हुआ है?
(१) अजेय (२) अखण्ड
(३) अमर (४) दिव्य
५. ‘निस्मीम’ शब्द में कौन-सी सन्धि है?
(१) स्वर (२) व्यंजन
(३) विसर्ग (४) दीर्घ
६. हिमालय को ‘यतिवर’! कहकर सम्बोधित किया गया है, क्योंकि वह
(१) भारत का प्रहरी है (२) पर्वतों का स्वामी है
(३) समाधि में लीन है (४) समस्या का हल ढूँढ़ रहा है
पद्यांश १७
ज्यों निकलकर बादलों की गोद से
थी अभी इक बूँद कुछ आगे बढ़ी।
सोचने फिर-फिर यही जी में लगी
आह! क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी।
दैव! मेरे भाग्य में है क्या बदा?
मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में।
जल उठूँगी गिर अँगारे पर किसी
चू पड़ूँगी या कमल के फूल में।
बह पड़ी उस काल इक ऐसी हवा
वह समन्दर ओर आई अनमनी।
एक सुन्दर सीप का था मुँह खुला
वह उसी में जा गिरी मोती बनी।
१. आह! शब्द किस भाव को व्यक्त करता है?
(१) दु:ख का (२) खुशी का भाव
(३) सुख का भाव (४) बुझे मन का भाव
२. बूँद की चिन्ता का विषय क्या है?
(१) गिरने का डर (२) अतीत के बुरे ख्याल
(३) वर्तमान स्थिति (४) भविष्य की चिन्ता
३. बूँद के साथ किन लोगों की समानता दिखाई देती है?
(१) जो अनिश्चय की स्थिति में रहते हैं
(२) जो निराश हैं
(३) जो वर्तमान से घिरे रहते हैं
(४) जो आलसी हैं
४. कवि ने किस सोच पर बल दिया है?
(१) डर की सोच (२) गलत विचारों की सोच
(३) सकारात्मक सोच (४) दु:ख मनाने की सोच
५. मोती बनने का क्या आशय है?
(१) सुखद अहसास होना (२) लक्ष्य मिलना
(३) जीवन का अन्त होना (४) अधूरी मंजिल मिलना
६. आह! क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी। किस प्रकार का वाक्य है?
(१) आज्ञासूचक (२) स्वीकारात्मक
(३) विस्मयबोधक (४) प्रश्नवाचक
१८० ण्ऊEऊ ु³ुदु ‘स्ड्डैं्नa ढर्प्Ýेंr ्रस्fस् E्श्च् ढारसस्ड्ड़
पद्यांश १८
चौड़ी सड़क गली पतली थी
दिन का समय घनी बदली थी
रामदास उस दिन उदास था
अन्त समय आ गया पास था
उसे बता यह दिया गया था उसकी हत्या होगी।
धीरे-धीरे चला अकेले
सोचा साथ किसी को ले ले
फिर रह गया, सड़क पर सब थे
सभी मौन थे सभी निहत्थे
सभी जानते थे यह उस दिन उसकी हत्या होगी।
खड़ा हुआ वह बीच सड़क पर दोनों हाथ पेट पर रख कर
सधे कदम रख करके आए लोग सिमट कर आँख गड़ाए
लगे देखने उसको जिसकी तय था हत्या होगी।
निकल गली से तब हत्यारा
आया उसने नाम पुकारा
हाथ तौलकर चाकू मारा
छूटा लोहू का फव्वारा
कहा नहीं था उसने आखिर उसकी हत्या होगी।
१. रामदास क्यों उदास था?
(१) उसे पता था कि उसकी हत्या होगी
(२) उसे कोई बचाने वाला नहीं था
(३) उसे किसी राजकीय सहायता का भरोसा नहीं था
(४) अपनी असहायता और लाचारी के कारण वह निराश था
२. रामदास ने अपने साथ और किसी को क्यों नहीं लिया?
(१) वह और किसी को संकट में नहीं डालना चाहता था
(२) उसे अन्य किसी पर भरोसा नहीं था
(३) उसे पता था कि कोई उसकी सहायता नहीं करेगा
(४) वह अपनी और अन्य सभी की लाचारी जानता था
३. सड़क पर हत्या होने में क्या व्यंग्य है?
(१) सब ओर गुण्डागर्दी है (२) पुलिस का नियन्त्रण समाप्त है
(३) लोग तमाशबीन हो चुके हैं (४) ये सभी
४. रामदास चिल्लाने की बजाय पेट पर हाथ रखकर क्यों खड़ा हो गया?
(१) वह हतोत्साहित था (२) उसे पेट चिरने का डर था
(३) वह स्वयं मरना चाहता था (४) वह कायर था
५. ‘आँख गड़ाने’ का आशय स्पष्ट कीजिए
(१) घूरना (२) ध्यान से देखना
(३) क्रोध से देखना (४) नजर रखना
६. जिनके हाथ खाली हों, उसे कहा जाता है
(१) हाथ खाली (२) खाली हाथ (३) निहत्था (४) २ और ३ दोनों
पद्यांश १९
कितनी करुणा कितने सन्देश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार-तार
अनुराग भरा उन्माद राग
आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार।
हँस उठते पल में आर्द्र नयन
धुल जाता होठों से विषाद
छा जाता जीवन में बसन्त
चिरसंचित विराग लुट जाता
आँखें देतीं सर्वस्व वार
जो तुम आ जाते एक बार। महादेवी वर्मा
१. रास्ते में करुणा और सन्देश क्या बनकर बिछ जाते?
(१) फूलों की पत्तियाँ (२) फूल
(३) फूलों की रज (४) फूलों के बीज
२. ‘अनुराग’ शब्द का विपरीतार्थक है
(१) राग (२) रागयुक्त (३) विराग (४) उन्माद
३. पल भर में किस प्रकार के नेत्र हँस उठते?
(१) भीगे हुए (२) मुँदे हुए (३) मुरझाए हुए (४) धुले हुए
४. ‘पखारना’ शब्द का अर्थ है
(१) बहाना (२) धो देना (३) देखना (४) सजा देना
५. चिरसंचित में उपसर्ग है
(१) चि (२) चित (३) संचित (४) चिर
६. कवि के अनुसार,‘एक बार आ जाने से’ जीवन में ….. छा जाता है।
(१) उन्माद (२) अनुराग (३) विराग (४) बसन्त
पद्यांश २०
रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है!
उलझनें अपनी बनाकर आप ही पँâसता,
और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।
जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते। रामधारी िंसह दिनकर
१. कौन स्वयं उलझनें पैदा कर पँâसता है?
(१) अनोखा जीव (२) आदमी (३) गगन का चाँद (४) मनु
२. ‘अनोखा जीव’ का समानार्थी है
(१) एक विशेष प्रकार का जानवर
(२) उलझन पैदा करने वाला
(३) एक विशिष्ट शारीरिक रचना वाला प्राणी
(४) विशिष्ट प्राणी
३. ‘चाँदनी’ का पर्यायवाची नहीं है
(१) कौमुदी (२) चन्द्रिका (३) ज्योत्स्ना (४) अंशुमाली
४. उपरोक्त पद्यांश में ‘मैं’ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
(१) चाँदनी के लिए (२) आदमी के लिए
(३) चाँद के लिए (४) स्वप्न के लिए
५. बेचैन में उपसर्ग है
(१) चैन (२) एन् (३) बे (४) बेच
६. ‘तुझ-से’ का आशय है
(१) तुझे (२) तेरे-को (३) तेरे-जैसे को (४) तुझसे या तुमसे
Aह्रास २ : AहढR्नन्न् हछस्श्च १८१
पद्यांश २१
यह धरती है उस किसान की,
जो मिट्टी का पूर्ण पारखी,
जो मिट्टी के संग साथ ही,
तप कर,
गल कर,
मर कर,
खपा रहा है जीवन अपना,
देख रहा है मिट्टी में सोने का सपना,
मिट्टी की महिमा गाता है,
मिट्टी के ही अंतस्तल में,
अपने तन की खाद मिला कर,
मिट्टी को जीवित रखता है,
खुद जीता है।
यह धरती है उस किसान की!
१. निम्न में से कौन-सा लयात्मक शब्दों का उदाहरण है?
(१) अपना-सपना (२) तप-गल
(३) गल-मर (४) गाता-जीता
२. किसान का जीवन किस पर आधारित है?
(१) कृषि कार्य पर (२) मिट्टी की महिमा गाने पर
(३) स्वप्न देखने पर (४) खाद-बीज के संग्रहण पर
३. किसान अपना जीवन किसमें लगा रहा है?
(१) प्रकृति का आनन्द लेने में (२) मिट्टी के साथ खेलने में
(३) मिट्टी की पहचान करने में (४) अन्न-साग-सब्जी उगाने में
४. कौन-सा शब्द भिन्न है?
(१) तपना (२) गलना
(३) सपना (४)रखना
५. कवि ने धरती को किसान की धरती क्यों कहा है?
(१) किसान धरती के लिए लड़ता है
(२) किसान धरती पर अथक परिश्रम करता है
(३) किसान को मिट्टी की परख होती है
(४) किसान धरती पर हल चलाता है
६. ‘अपने तन की खाद मिलाकर, मिट्टी को जीवित रखता है।’ पंक्ति में
रेखांकित अंश से आशय है
(१) अपने हाथों से िंसचाई करना
(२)रासायनिक खाद का प्रयोग करना
(३) अत्यधिक परिश्रम करना
(४)रासायनिक बीज बोना
पद्यांश २२
मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
बाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।
स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे
रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे,
रोकिए, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते जा रहे हैं वे
१. कवि के अनुसार किसकी जीभ में तेज धार होती है?
(१) स्वप्न की (२) विचारों की
(३) कल्पना की (४) स्वर्ग की
२. किसके हाथ में तलवार होती है?
(१) कल्पना के (२) स्वप्नवालों के
(३) विचारों के (४) स्वप्न के
३. कौन स्वर्ग की ओर बढ़ते चले जा रहे हैं?
(१) सम्राट (२) स्वर्ग के सम्राट
(३) आकाश (४) स्वप्न वाले
४. मनु-पुत्र में समास है
(१) अव्ययीभाव (२) द्विगु
(३) सम्बन्ध तत्पुरुष (४) द्वन्द्व
५. ‘आकाश’ शब्द का विलोम है
(१) नभ (२) क्षोभ
(३) पृथ्वी (४) पाताल
६. ‘स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है’ पंक्ति में अलंकार है
(१) विशेषोक्ति (२) विभावना
(३) दृष्टांत (४) मानवीकरण
पद्यांश २३
उपयुक्त उस खल को न यद्यपि मृत्यु का भी दण्ड है,
पर मृत्यु से बढ़कर न जग में दण्ड और प्रचण्ड है।
अतएव कल उस नीच को रण-मध्य जो मारूँ न मैं,
तो सत्य कहता हूँ कभी शस्त्रास्त्र फिर धारूँ न मैं।
अथवा अधिक कहना वृथा है, पार्थ का प्रण है यही,
साक्षी रहे सुन ये बचन रवि, शशि, अनल, अम्बर, मही।
सूर्यास्त से पहले न जो मैं कल जयद्रथ-वध करूँ,
तो शपथ करता हूँ स्वयं मैं ही अनल में जल मरूँ। मैथिलीशरण गुप्त
१. ‘खल’ शब्द का विपरीतार्थक है
(१) नायक (२) दुष्ट प्रवृत्ति का
(३) योद्धा (४) दण्ड
२. ‘कभी शस्त्रास्त्र फिर धारूँ न मैं’ पंक्ति का भावार्थ है
(१) युद्ध न करना (२) राजभवन में बैठना
(३) आत्मदाह करना (४) क्षत्रिय धर्म का त्याग
३. ‘वृथा’ शब्द का समानार्थक है
(१) उचित (२) व्यर्थ
(३) पाप (४) प्रण
४. पार्थ की क्या प्रतिज्ञा है?
(१) दुष्ट को मारने की
(२) जयद्रथ-वध करने की
(३) अस्त्र-शस्त्र धारण करने की
(४) आग में जलाकर मारने की
५. रवि, शा fश, अनल, अम्बर एव ं महा r व âे पर्या यवाचा r क्रमश: ह ैं
(१) सूर्य, रात्रि, वायु, आकाश, पाताल
(२) सूर्य, चन्द्रमा, वायु, आकाश, पाताल
(३) सूर्य, रात्रि, अग्नि, आकाश, पाताल
(४) सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि, आकाश, पृथ्वी
६. जयद्रथ को युद्ध-क्षेत्र के मध्य न मारने पर पार्थ क्या शपथ लेता है?
(१) जल में मरने की (२) मृत्युदण्ड की
(३) आत्मदाह करने की (४) इनमें से कोई नहीं
१८२ ण्ऊEऊ ु³ुदु ‘स्ड्डैं्नa ढर्प्Ýेंr ्रस्fस् E्श्च् ढारसस्ड्ड़
पद्यांश २४
नन्हीं-सी नदी हमारी टेढ़ी-मेढ़ी धार,
गर्मियों में घुटने भर भिगो कर जाते पार।
पार जाते ढोर-डँगर बैलगाड़ी चालू ,
ऊँचे हैं किनारे इसके, पाट इसका ढालू।
पेटे में झकाझक बालू कीचड़ का न नाम,
काँस फूले एक पार उजले जैसे घाम।
दिन भर किचपिच-किचपिच करती मैना डार-डार,
रातों को हुआँ-हुआँ कर उठते सियार। रवीन्द्रनाथ ठाकुर
१. ‘घाम’ शब्द का अर्थ क्या होगा?
(१) निवास (२) धूप (३) दिन (४) आश्रम
२. ‘किचपिच-किचपिच करती मैना’ से तात्पर्य है
(१) मैना का शोर मचाना (२) मैना का चहकना
(३) मैना का गाना गाना (४) इनमें से कोई नहीं
३. कवि ने ‘काँस’ की तुलना किससे की है?
(१) पानी (२) नदी (३) धूप (४) रेत
४. ‘ढोर-डँगर’ शब्द से तात्पर्य है
(१) ग्रामवासी (२) तैराक (३) पक्षी (४) मवेशी
५. नन्हीं-सी नदी के किनारे वैâसे हैं?
(१) चिकने (२) उजले
(३) ऊँचे (४) कीचड़ से भरे हुए
६. कविता का उपयुक्त शीर्षक हो सकता है
(१) वर्षा ऋतु (२) हमारी नदी (३) बसन्त ऋतु (४) हमारा गाँव
पद्यांश २५
अगर किसी दिन बैल तुम्हारा सोच-समझ अड़ जाए,
चले नहीं, बस, खड़ा-खड़ा गर्दन को खूब हिलाए।
घण्टी टुन-टुन खूब बजेगी, तुम न पास आओगे,
मगर बूँद भर तेल साँझ तक भी क्या तुम पाओगे?
मालिक थोड़ा हँसा और बोला कि पढ़क्कू जाओ,
सीखा है यह ज्ञान जहाँ पर, वहीं इसे पैâलाओ।
यहाँ सभी कुछ ठीक-ठाक है, यह केवल माया है,
बैल हमारा नहीं अभी तक मंतिख पढ़ पाया है। रामधारी िंसह दिनकर
१. शब्द ‘साँझ’ का समानार्थक शब्द है
(१) भोर (२) सूर्यास्त
(३) प्रात:काल (४) सूर्योदय
२. ‘बूँद भर’ का तात्पर्य है
(१) एक बूँद (२) काफी कम
(३) बिल्कुल नहीं (४) स्पष्ट नहीं कहा जा सकता
३. मालिक पढ़क्कू की किस बात पर हँसा?
(१) बैल को सिखाने की बात पर
(२) यदि बैल खड़ा-खड़ा गर्दन को हिलाए
(३) बैल अभी एक मंतिख नहीं पढ़ पाया है
(४) तुम साँझ तक एक बूँद भी तेल नहीं पाओगे
४. ‘माया’ शब्द प्रयुक्त है
(१) बैल के व्यवहार के लिए (२) तेल के लिए
(३) धन के लिए (४) किताबी ज्ञान के लिए
५. आपके अनुसार इस कविता का नायक कौन है?
(१) मालिक (२) पढ़क्कू
(३) बैल (४) इनमें से कोई नहीं
६. उपरोक्त पद्यांश में ‘खड़ा-खड़ा’ शब्द में कौन-सा समास है?
(१) तत्पुरुष (२) कर्मधारय (३) अव्ययीभाव (४) द्विगु
पद्यांश २६
अब न गहरी नींद में तुम सो सकोगे,
गीत गाकर मैं जगाने आ रहा हूँ।
अतल अस्ताचल तुम्हें जाने न दूँगा,
अरुण उदयाचल सजाने आ रहा हूँ।
कल्पना में आज तक उड़ते रहे तुम,
साधना से सिहरकर मुड़ते रहे तुम।
अब तुम्हें आकाश में उड़ने न दूँगा,
आज धरती पर बसाने आ रहा हूँ। सोहनलाल द्विवेदी
डण्ऊEऊ व्ल्ह २०११़
१. गहरी नींद में सोने का अर्थ है
(१) चिन्तायुक्त होना (२) मृत्यु को प्राप्त होना
(३) परिश्रमी होना (४) बेखबर होना
२. कवि लोगों को कहाँ नहीं जाने देगा?
(१) पतन की राह पर (२) पाताल में
(३) अतल गहराई में (४) जहाँ सूर्य अस्त होता है
३. कवि किस तरह के व्यक्तियों को सम्बोधित कर रहा है?
(१) जो आकाश की ऊँचाइयों को छूना चाहते हैं
(२) जो अत्यधिक प्रेरित हैं
(३) जो बहुत परिश्रमी हैं
(४) जो जीवन की कठोर वास्तविकताओं से बेखबर हैं
४. कवि लोगों को क्यों जगाना चाहता है?
(१) यह कवि का दायित्व है
(२) ताकि लोग गीत सुन सकें
(३) ताकि मनुष्यों में गतिशीलता आ सके और वे प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सकें
(४) सुबह हो गई है
५. ‘अतल अस्ताचल तुम्हें जाने न दूँगा’ इस पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
(१) अनुप्रास अलंकार (२) श्लेष अलंकार
(३) उपमा अलंकार (४) रूपक अलंकार
६. कविता का उपयुक्त शीर्षक हो सकता है
(१) जागृति (२) हर्ष (३) कोलाहल (४) आकाश
पद्यांश २७
हरा-भरा हो जीवन अपना स्वस्थ रहे संसार,
नदियाँ, पर्वत, हवा, पेड़ से आती है बहार।
बचपन, कोमल तन-मन लेकर,
आए अनुपम जीवन लेकर,
जग से तुम और तुमसे है ये प्यारा संसार,
हरा-भरा हो जीवन अपना स्वस्थ रहे संसार,
Aह्रास २ : AहढR्नन्न् हछस्श्च १८३
ढ्व्न्न् ्fस़् ‘| हब्र््नद व्E र्ळैं
वृन्द-लताएँ, पौधे, डाली
चारों ओर भरे हरियाली
मन में जगे उमंग यही है सृष्टि का उपहार,
हरा-भरा हो जीवन अपना स्वस्थ रहे संसार,
मुश्किल से मिलता है जीवन,
हम सब इसे बनाएँ चन्दन
पर्यावरण सुरक्षित न हो तो है सब बेकार
हरा-भरा हो जीवन अपना स्वस्थ रहे संसार। डण्ऊEऊ व्aह २०१२़
१. ‘हरा-भरा जीवन’ का अर्थ है
(१) खुशियों से परिपूर्ण जीवन (२) पेड़-पौधे से घिरा जीवन
(३) हरे रंगों से भरा जीवन (४) हरियाली-युक्त जीवन
२. कौन-सी चीजें बहार लेकर आती हैं?
(१) पेड़ों की हवा
(२) नदियों की आवाज
(३) पहाड़ों की चोटियाँ
(४) समस्त प्राकृतिक उपादान
३. कवि ने सृष्टि का उपहार किसे कहा है?
(१) पौधे व डालियाँ
(२) वृन्द-लताएँ
(३) हरा-भरा जीवन
(४) प्राकृतिक सुन्दरता और उससे उत्पन्न होने वाली खुशी
४. कवि यह सन्देश देना चाहता है कि
(१) चन्दन के पेड़ लगाने चाहिए
(२) जीवन में सब बेकार है
(३) पर्यावरण-संरक्षण में ही जीवन सम्भव है
(४) प्रकृति में पेड़-पौधे, नदियाँ, पर्वत शामिल हैं
५. ‘जग से तुम और तुम से है ये प्यारा संसार’ पंक्ति के माध्यम से कवि
कहना चाहता है कि
(१) संसार का अस्तित्व व्यक्तियों से स्वतन्त्र है
(२) व्यक्ति और संसार दोनों का अस्तित्व एक-दूसरे पर निर्भर करता है
(३) संसार चलाने के लिए व्यक्तियों की आवश्यकता होती है
(४) व्यक्ति का अस्तित्व संसार से स्वतन्त्र है
६. ‘अनुपम’ से अभिप्राय है
(१) जिसकी उपमा न दी जा सके (२) सुखद
(३) आनन्दमय (४) मनोहारी
पद्यांश २८
पूछो किसी भाग्यवादी से,
यदि विधि-अंक प्रबल है।
पद पर क्यों देती न स्वयं
वसुधा निज रतन उगल है। डण्ऊEऊ व्ल्त् २०१३़
१. ‘प्र’ उपसर्ग से बनने वाले शब्द-समूह है
(१) प्रत्युत्तर, प्रदेश, प्रपत्र (२) प्रत्येक, प्रभाव, प्रदेश
(३) प्रसाद, प्रत्येक, प्रपत्र (४) प्रभाव, प्रदेश, प्रपत्र
२. कवि ने किसकी महिमा का खण्डन किया है?
(१) रतनों का (२) विधि के विधान का
(३) भाग्यवाद का (४) वसुधा का
३. विधि-अंक से तात्पर्य है
(१) न्यायवादी (२) न्याय-अंक
(३) ‘विधाता’ लिखा होना (४) भाग्य का लिखा हुआ
४. कवि के अनुसार यदि भाग्य ही सब कुछ होता तो क्या होता?
(१) रत्न स्वयं प्रकाश युक्त हो उठते
(२) रत्न मिल जाते
(३) पैरों के नीचे वसुधा होती
(४) धरती स्वयं ही रत्नरूपी सम्पत्ति उगल देती
५. तुकबन्दी के कारण कौन-सा शब्द बदले हुए रूप में प्रयुक्त हुआ है?
(१) उगल (२) रतन
(३) प्रबल (४) स्वयं
६. इनमें से कौन-सा ‘वसुधा’ का समानार्थी है?
(१) जलधि (२) वसुन्धरा
(३) महीप (४) वारिधि
पद्यांश २९
नहीं झुका करते जो दुनिया से
करने को समझौता
ऊँचे-से-ऊँचे सपनों को
देते रहते जो न्योता,
दूर देखती जिनकी पैनी
आँख भविष्यत का तम चीर,
मैं हूँ उनके साथ खड़ी
जो सीधी रखते अपनी रीढ़। डण्ऊEऊ इां २०१४़
१. कविता की पंक्तियों के अनुसार कविता किसके पक्ष में खड़ी है?
(१) जो स्वाभिमानी, साहसी और निर्भीक हैं
(२) जो केवल सपनों में खोए रहते हैं
(३) जो उजाला पैâलाते हैं
(४) जो समझौता करके शान्ति पैâलाते हैं
२. व्यक्ति की दृष्टि वैâसी होनी चाहिए?
(१) अन्धकार को चीरने वाली
(२) दूर की चीजों को साफ-साफ देखने वाली
(३) दूरदर्शिता से लैस
(४) भविष्य का अँधेरा दूर करने वाली
३. ऊँचे-से-ऊँचे सपनों को निमन्त्रण देने का भाव है
(१) ऊँचे सपनों को आमन्त्रित करना
(२) उच्च कोटि के स्वप्न देखना और उन्हें साकार करने का प्रयास करना
(३) स्वप्नशील रहना
(४) सपनों को आमन्त्रित करना
४. ‘तम’ शब्द का पर्यायवाची है
(१) यामिनी (२)रात
(३) अन्धकार (४) निशा
५. ‘‘नहीं झुका करते जो दुनिया से’’ पंक्ति में किसके सामने न झुकने की बात
की गई है?
(१) विषम परिस्थितियों और अन्याय के सामने
(२) दुनिया के सभी देशों के सामने
(३) अन्यायी राजाओं के सामने
(४) दुनिया के व्यक्तियों के सामने
६. ‘सीधी रीढ़’ का आशय है
(१) आत्मनिर्भर होना
(२) सीधी बात कहना
(३) स्वाभिमानी और स्वावलम्बी होना
(४) अभिमानी होना
१८४ ण्ऊEऊ ु³ुदु ‘स्ड्डैं्नa ढर्प्Ýेंr ्रस्fस् E्श्च् ढारसस्ड्ड़
पद्यांश ३०
रोना और मचल जाना भी क्या आनन्द दिखाते थे?
बड़े-बड़े मोती-से आँसू, जयमाला पहनाते थे।
मैं रोई, माँ काम छोड़कर आई, मुझको उठा लिया।
झाड़-पोंछकर चूम-चूम गीले-गालों को सुखा दिया।
आ जा बचपन! एक बार फिर दे-दे अपनी निर्मल शान्ति।
व्याकुल व्यथा मिटाने वाली, वह अपनी प्राकृत विश्रान्ति
वह भोली-सी मधुर सरलता, वह प्यारा जीवन निष्पाप।
क्या फिर आकर मिटा सकेगा तू मेरे मन का सन्ताप?
मैं बचपन को बुला रही थी, बोल उठी बिटिया मेरी।
नन्दन-वन-सी फूल उठी, यह छोटी-सी कुटिया मेरी। डण्ऊEऊ एाज् २०१५़
१. ‘बचपन’ शब्द है
(१) विशेषण (२) क्रिया-विशेषण (३) सर्वनाम (४) संज्ञा
२. ‘नन्दन-वन-सी फूल उठी, यह छोटी-सी कुटिया मेरी’ का भाव है
(१) कुटिया सुन्दर हो गई (२) कुटिया में आनन्द उमड़ उठा
(३) कुटिया में शान्ति छा गई (४) छोटी कुटिया बड़ी हो गई
३. ‘मिटा सकेगा तू मेरे मन का सन्ताप।’
उक्त पंक्ति में ‘तू’ किसे कहा गया है?
(१) बचपन को (२) कवि को (३) पाठक को (४) बच्चे को
४. कवयित्री अपने बचपन को क्यों बुलाना चाहती है?
(१) अपनी बिटिया की याद में (२) बचपन के आनन्द की याद में
(३) बचपन के खेलों की याद में (४) अपनी माँ की याद में
५. बच्चे की आँखों से निकलते आँसुओं को देखकर क्या अनुभूति होती है?
(१) सुख की (२) विजय की (३) प्यार की (४) कष्ट की
६. ‘व्याकुल व्यथा मिटाने वाली’ में प्रयुक्त अलंकार है
(१) रूपक अलंकार (२) उपमा अलंकार
(३) अनुप्रास अलंकार (४) यमक अलंकार
पद्यांश ३१
हवा चले अनुकूल तो नावें नौसिखिए भी खे लेते हैं,
सहज डगर पर लँगड़े भी चल बैसाखी से लेते हैं।
मिट जाते जो दीप स्वयं रोशन कर लाख चिरागों को
नमन उन्हें है, जो लौटा लाते हैं गई बहारों को।
पैâलाकर के हाथ किसी के सम्मुख झुकना आसाँ है,
बहती नदिया से पानी पी प्यास बुझाना आसाँ है,
नित्य खोदकर नए कुएँ जो सबकी प्यास बुझाते हैं,
वही लोग हैं, जो सदियों तक जग में पूजे जाते हैं। डण्ऊEऊ एाज् २०१६़
१. कवि उन्हें नमन कर रहा है, जो
(१) दूसरों को प्रेरणा देकर मरते हैं (२) लाखों दीपक जलाते हैं
(३) लहरों पर नाव चला लेते हैं (४) सरल मार्गों पर चलते हैं
२. कविता में ‘बैसाखी’ का भावार्थ है
(१) एक महीना (२) सहारा
(३) सीढ़ी (४) एक फसल
३. ‘पानी पी प्यास बुझाना आसाँ है’—में अलंकार है
(१) अनुप्रास (२) मानवीकरण
(३) उपमा (४) रूपक
४. समाज उन्हें सदा सम्मानित करता है, जो
(१) प्यासे को पानी पिलाते हैं
(२) अपने कामों से सबका हित करते हैं
(३) सदियों तक पूजे जाते हैं
(४) नित्य नए कुएँ खोदते हैं
५. कवि के अनुसार उनका जीवन आसान नहीं है, जो
(१) लोगों के सामने हाथ पैâलाते हैं
(२) बैसाखी के सहारे चलते हैं
(३) परिश्रम से बीती बहारों को लौटा लाते हैं
(४) स्वयं अपने लिए ही साधन जुटाते हैं
६. ‘नौसिखिया’ है
(१) नौ विषय जानने वाला (२) नए विषय पढ़ने वाला
(३) नया सिखाने वाला (४) नया सीखने वाला
पद्यांश ३२
पूर्व चलने के बटोही,
बाट की पहचान कर ले।
है अनिश्चित किस जगह पर,
सरित गिरि गह्वर मिलेंगे
है अनिश्चित किस जगह पर
बाग वन सुन्दर मिलेंगे।
किस जगह यात्रा खत्म हो
जाएगी यह भी अनिश्चित
है अनिश्चित कब सुमन कब
कंटकों के शर मिलेंगे।
कौन सहसा छू जाएँगे
मिलेंगे कौन सहसा
आ पड़े कुछ भी रुकेगा
तू न ऐसी आन कर ले।
पूर्व चलने के बटोही,
बाट की पहचान कर ले। डण्ऊEऊ अम् २०१८़
१. कविता की पंक्तियों में यात्रा की किस विशेषता की ओर संकेत किया गया
है?
(१) साहस की ओर (२) कठिनाइयों की ओर
(३) सुखों की ओर (४) अनिश्चितता की ओर
२. कविता में आए ‘सुमन और कंटक’ किस भाव के प्रतीक हैं?
(१) प्रिय और अप्रिय (२) फूल और काँटे
(३) बाग और वन (४) सुख और दु:ख
३. कविता की पंक्तियों में कवि व्यक्ति को किस बात की प्रेरणा दे रहा है?
(१) हर स्थिति में आगे बढ़ने की (२) हर स्थिति में साहस दिखाने की
(३) पर्वतों को देखकर न डरने की (४) गहरी नदियों से न डरने की
४. इस जीवन-यात्रा में
(१) सब ओर सुख है (२) कुछ भी निश्चित नहीं है
(३) सब कुछ निश्चित है (४) सब ओर मुश्किलें हैं
५. नीचे दिए गए शब्दों में से ‘सरित’ का समानार्थी शब्द कौन-सा नहीं है?
(१) प्रवाह (२) तटिनी
(३) जयमाला (४) नद
६. ‘अनिश्चित’ शब्द में कौन-सा प्रत्यय आ सकता है?
(१) ता (२) ते
(३) ति (४) ती
Aह्रास २ : AहढR्नन्न् हछस्श्च १८५
पद्यांश ३३
विविध प्रान्त हैं अपनी-अपनी भाषा के अभिमानी हम,
पर इन सबसे पहले दुनियावालों हिन्दुस्तानी हम।
रहन-सहन में, खान-पान में, भिन्न भले ही हो कितने,
इसे मिट्टी को देते आए, मिल-जुलकर कुर्बानी हम।
सर्दियों से कुचले लाखों तूफान हमने पद तल से,
आज झुके कुछ टकराकर तो कल लगते फिर जागे से।
अण्डमान से कश्मीर भले ही दूर दिखाई दे कितना,
पर हर प्रान्त जुड़ा है। अपना अगणित कोमल धागों से।
जिस ओर बढ़ाए गए हमने, हो उधर भू नव मंगल।
आजाद वतन के बािंशदे, हर चरण हमारा है बादल।।
१. ‘पैर’ शब्द का समानार्थी नहीं है? डण्ऊEऊ व्ल्त् २०१९़
(१) चरण (२) नव (३) पग (४) पद
२. कविता के अनुसार विविधताओं के बीच भी हम एक हैं, क्योंकि सबसे
पहले हम
(१) स्वतन्त्र हैं (२) स्वाभिमानी हैं
(३) भारतीय हैं (४) वीर-बहादुर हैं
३. समास की दृष्टि से शेष से भिन्न पद है
(१) मिलना-जुलना (२) अपनी-अपनी
(३) रहन-सहन (४) खान-पान
४. ‘सर्दियों से कुचले लाखों तूफान हमने पद तल से’ पंक्ति में ‘तूफान’ का
भाव है
(१) लड़ाइयाँ (२) आँधियाँ (३) कठिनाइयाँ (४) आक्रमण
५. ‘अण्डमान से कश्मीर’, भारत में है
(१) क्रान्तिकारी राज्य (२) निकटस्थ राज्य
(३) दूरस्थ राज्य (४) बलिदानी राज्य
६. हम भारतीय जिधर भी अपने कदम बढ़ाते हैं, वहाँ
(१) शुभ कार्य होते हैं (२) क्रान्ति हो जाती हैं
(३) शान्ति हो जाती है (४) देश स्वतन्त्र हो जाते हैं
पद्यांश ३४
देशवासियों सुनों देश को नमन करो।
देश ही आधार है, प्यार देश से करो।
लड़ रहे हो आज क्यों छोटी-छोटी बात पर,
देश हित को भूलकर प्रान्त, भाषा, जात, पर,
मिटा के भेदभाव को, देश को सुदृढ़ करो।
भ्रष्टाचार की लहर उठ रही नगर-नगर,
घोर अँधकार से सूझती नहीं डगर,
ज्योति नीति-धर्म की आज तुम प्रखर करो।
देश आज रो रहा, देश का रुदन सुनो,
बाँट दर्द देश का, मित्र देश के बनो
प्रेम के पीयूष से, द्वेष का शासन करो। डण्ऊEऊ व्aह २०२१़
१. ‘पीयूष’ का विलोम शब्द है
(१) अमृत (२) विष (३) क्षीर (४) नीर
२. ‘भ्रष्टाचार’ का सन्धि-विच्छेद है
(१) भ्रष्ट + आचार (२) भ्रष्ट + अचार
(३) भ्रष्टा + चार (४) भ्रष्ट + चार
३. कविता के अनुसार देश को सुदृढ़ किया जा सकता है
(१) देश को नमन करके (२) देशभक्ति के गीत गाकर
(३) देश हित को भूलकर (४) समस्त भेदभाव दूर करके
४. कविता में नीति-धर्म की ज्योति प्रखर करने के लिए कहा गया है, ताकि
(१) आपसी भेदभाव दूर किया जा सके
(२) भ्रष्टाचार को दूर किया जा सके
(३) देश को प्रेम किया जा सके
(४) देश का दर्द बाँटा जा सके
५. ‘देश आज रो रहा है।’ पंक्ति का आशय है
(१) देश के नागरिक रो रहे हैं (२) देश में बाढ़ आई है
(३) देश में शान्ति का वातावरण है (४) देश में अशान्ति का वातावरण है
६. द्वेष का शमन किया जा सकता है
(१) धर्म द्वारा (२) शासन द्वारा
(३) प्रेम द्वारा (४) नीति द्वारा
पद्यांश ३५
विघ्नों को गले लगाते हैं।
काँटों में राह बनाते हैं।।
है कौन विघ्न ऐसा जग में
टिक सके आदमी के मग में,
खम ठोंक ठेलता है जब नर
पर्वत के जाते पाँव उखड़,
मानव जब जोर लगाता है।
पत्थर पानी बन जाता है।।
गुण बड़े एक से एक प्रखर
हैं छिपे मानवों के भीतर,
मेहंदी में जैसे लाली हो
वर्तिका बीच उजियाली हो,
बत्ती जो नहीं जलाता है।
रोशनी नहीं वह पाता है।। डण्ऊEऊ व्aह २०२२़
१. पद्यांश के अनुसार ‘पत्थर पानी’ बन सकता है।
(१) प्रेम द्वारा (२) धर्म द्वारा
(३) परिश्रम द्वारा (४) नीति द्वारा
२. ‘रोशनी’ का विलोम शब्द है
(१) अँधेरा (२) चमकीला
(३) प्रकाश (४) रश्मि
३. ‘विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं।’’ पंक्ति का भाव है—
(१) विपत्ति में सहनशक्ति नहीं रखते हैं।
(२) बाधाओं का धैर्य एवं परिश्रम से सामना करते हुए विजयी होना है।
(३) विपत्ति में पीठ दिखाकर भाग जाना है।
(४) राह में थककर सो जाते हैं।
४. कवि के अनुसार मनुष्यों में गुण किस प्रकार छिपे रहते हैं?
(१) मेहंदी में जैसे लाली हो (२) पूरब में जैसे सूरज हो
(३) प्रकृति में हरियाली हो (४) सागर में पत्थर हो
५. ‘वर्तिका’ का अर्थ है
(१) शूरवीर (२) बहादुर
(३) दीपक की बाती (४) सूरमा
६. ‘पाँव उखड़ना’ मुहावरे का सही अर्थ है
(१) पैरों पर खड़ा होना (२) पैरों पर ताकत लगाना
(३) ठनक जाना (४) हिम्मत हारना