क्रमबद्धता |
16. (1) मैं भी मानता हूँ कि
(य) खुले मैदान की ताजी हवा है,
(र) भाषा चिडियों के कण्ठ से निकला
(ल) भाषा बहता नीर है,
(व) ‘राम नाम के पहर’ में सवेरे का
(6) कलरव है।
(अ) य, ल, र, व
(ब) ल, य, र, व
(स) ल, य, व, र
(द) ल, र, व, य
17. (1) वह भाषा जो सार्वजनिक हो
(य) अर्थात् सारे राष्ट्र के निवासियों द्वारा
(र) और राजनीतिक कार्यों में जिसका प्रयोग किया जाए
(ल) बोली और समझी जा सके
(व) साथ ही साथ उसे संविधान द्वारा स्वीकृति प्राप्त हो
(6) ऐसी भाषा को हम राष्ट्रभाषा कहेंगे।
(अ) य, ल, र, व
(ब) र, ल, व, य
(स) ल, य, र, व
(द) व, र, य, ल
18. (1) धूप में चमकता
(य) हरा-भरा बगीचा
(र) वे पेड़ अब बहुत
(ल) दिख रहा है, सामने
(व) बड़े हो गए हैं
(6) जिन्हें बाबा ने लगाया था।
(अ) य, ल, र, व
(ब) र, ल, व, य
(स) ल, र, व, य
(द) व, य, र, ल
19. (1) हमारा उद्देश्य होगा, जीवन के
(य) करना कि हमारा सामाजिक जीवन
(र) हर सांस्कृतिक पहलू का इस प्रकार विकास
(ल) पुनर्गठित हो और वह सौंदर्य एवं आनन्द को
(व) स्वतंत्रता, समता और मानवता के आधार पर
(6) उपलब्ध करा सके।
(अ) व, र, ल, य
(ब) र, य, ल, व
(स) र, य, व, ल
(द) व, र, य, ल
20. (1) वही वृक्ष तल पर
(य) सहकर भी हरा-भरा, फल-फूलों से युक्त रह सकेगा
(र) उसी की मूल शक्ति दृढ़ रह सकती है, जो धरातल के बाहर
(ल) बिना अवलम्ब के अकेला खड़ा रहकर झंझा के प्रहारों को
(व) जिसकी मूल स्थित शक्तियाँ विकसित और सबल हैं और
(6) स्वच्छन्द वातावरण में साँस लेता है।
(अ) ल, य, र, व
(ब) ल, य, व, र
(स) व, ल, य, र
(द) य, र, व, ल
21. (1) वैसे देखा जाए तो
(य) प्रकृति स्वयं उस शक्ति का निर्माण करती है, जो
(र) नाना प्रकार के दाहक और पाचक रसों के रूप में
(ल) उदर के भीतर कोई अग्नि की ज्वाला नहीं है, किन्तु
(व) नाना भाँति के खाद्य पदार्थों अर्थात् भोज्य को
(6) पचा सकती है।
(अ) ल, य, र, व
(ब) य, र, व, ल
(स) ल, र, य, व
(द) र, य, व, ल
22. (1) राष्ट्रपति
(य) किसी न्यायालय के प्रति
(र) क्योंकि उसके सारे कार्य
(ल) उत्तरदायी नहीं है
(व) अपने अधिकारों के प्रयोग के लिए
(6) मंत्रिपरिषद् द्वारा किए जाते हैं।
(अ) य, व, ल, र
(ब) ल, व, र, य
(स) व, य, ल, र
(द) व, ल, र, य
23. (1) जाति, देश और काल की सीमाओं में
(य) साहित्यिक मूर्ल्यांकन प्रस्तुत करेंगे, तो
(र) सामयिक आवश्यकता-रागात्मक एकता
(ल) साहित्य के मूल उद्देश्य तथा
(व) बँधे रहकर यदि हम
(6) से ही दूर जा पड़ेंगे।
(अ) ल, र, य, व
(ब) व, य, ल, र
(स) व, र, ल, य
(द) य, ल, र, व
24. (1) गाँवों और जंगलों में
(य) लोक-कथाओं में
(र) स्वच्छन्द जन्म लेने वाले
(ल) मानवीय संस्कृति का
(व) लोक-गीतों और
(6) अमित भण्डार भरा है।
(अ) य, ल, र, व
(ब) ल, व, र, य
(स) र, व, य, ल
(द) व, ल, य, र
25. (1) मनुष्य पाँव से चलता है
(य) समुदाय से चलता है
(र) तब उसे जीवन कहते हैं,
(ल) प्राणों से चलता है
(व) तब उसे यात्रा कहते हैं,
(6) तब उसे समाज कहते हैं।
(अ) र, ल, व, य
(ब) य, ल, व, र
(स) व, ल, र, य
(द) व, य, र, ल
26. (1) कभी-कभी तय करना
(य) मानवीय विकास का इतिहास
(र) कठिन हो जाता है कि
(ल) षड्यन्त्रों से बना है या यह
(व) राजा-सम्राटों के युद्धों और
(6) सारी यात्रा आदि शब्द से शुरू होकर किताब-दर-किताब होती हुई हम तक आई है।
(अ) र, ल, य, व
(ब) व, ल, र, य
(स) र, य, व, ल
(द) ल, र, य, व
27. (1) सब जानते हैं कि हिन्दी
(य) सिद्ध होगी ही, अंग्रेजी, सह राजभाषा पद
(र) देर-सबेर भारत की एकमात्र राजभाषा
(ल) से हटेगी ही, तो उस स्थिति
(व) के अनुकूल अपने को बना लेने के लिए
(6) हम हिन्दी का अध्ययन कर रहे हैं।
(अ) र, य, ल, व
(ब) ल, र, व, य
(स) ल, य, र, व
(द) र, व, ल, य
28. (1) काव्य के विषय में द्विवेदी जी की एक
(य) विशेष प्रकार की रुचि बन गई थी और चूँकि वे
(र) कवि की दृष्टि से करते थे अतः अनेक नए काव्यों को, जो
(ल) काव्य का अध्ययन आलोचक की दृष्टि से नहीं वरन्
(व) उनके संस्कारों से मेल नहीं खाते थे, मुक्त भाव से स्वीकार करना
(6) उनके लिए कठिन हो जाता था।
(अ) य, र, ल, व
(ब) य, ल, र, व
(स) य, व, र, ल
(द) य, व, ल, र
29. (1) जीवन संघर्षमय अवश्य है, पर
(य) मनुष्य का यह जीवन-संघर्ष प्रकृति के साथ है,
(र) उसके सजातीय के साथ नहीं, क्योंकि समस्त मानव जाति
(ल) वह संघर्ष नहीं, जो पशु में था,
(व) परिस्थिति के साथ है, परिवेश के साथ है,
(6) एक शरीर के सदृश है।
(अ) ल, व, य, र
(ब) य, ल, व, र
(स) ल, य, व, र
(द) य, व, र, ल
30. (1) संयोग से यह निराशावादी
(य) किन्तु प्रायः सभी ज्ञानवान लोगों का भी है
(र) यहाँ तक कि
(ल) उन लोगों का भी जो कुछ कारणवश
(व) किन्तु अति सम्भाव्य दृष्टिकोण केवल मेरा ही नहीं है
(6) आशावादी प्रचार करना पसन्द करते हैं।
(अ) ल, व, र, य
(ब) व, य, र, ल
(स) व, र, य, ल
(द) य, र, व, ल